किंगमेकर हो सकते हैं बाबूलाल और सुदेश

राजनीतिक गलियारों में चर्चा अभी से ही हो रही है कि आजसू जितनी भी सीटें लाएं, जिसकी भी सरकार बने। सुदेश किंगमेकर बने रहेंगे। वहीं, बाबूलाल मरांडी ने अपना पत्ता नहीं खोला है। बहरहाल, चुनाव के बाद राजनीतिक परिस्थितियां क्या होगी? चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। पर यह तय माना जा रहा है कि आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो और झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी किंग मेकर की भूमिका में हो सकते हैं।

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झारखंड विधानसभा चुनाव के मैदान में भाजपा से अलग होकर आजसू पार्टी ताल ठोक रही है। दूसरी तरफ झारखंड विकास मोर्चा विपक्षी महागठबंधन से अलग होकर चुनावी जंग में है। आजसू का तल्ख तेवर भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है, वहीं, झाविमो का महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ना कांग्रेस और झामुमो के लिए बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। सूबे में भाजपा की पकड़ जरूर मजबूत है, लेकिन इतनी नहीं कि अकेले दम पर सरकार बना ले। पिछली बार भी उसे 81 में 37 सीटें ही मिली थीं। एनडीए के सहयोगी दल आजसू की सीटों को मिलाकर सरकार बनाने की स्थिति बनी और झाविमो के छह विधायकों के पाला बदलने से भाजपा मजबूत हुई। जाहिर है कि आजसू प्रत्यक्ष और झाविमो परोक्ष रूप से किंगमेकर की भूमिका में आया।

इसबार बाबूलाल मरांडी ने विपक्षी गठबंधन से अलग रहकर यह गुंजाइश रखी है कि सरकार बनाने में सहयोग की जरूरत पड़ी, तो परोक्ष नहीं, प्रत्यक्ष रूप से किंगमेकर की भूमिका में आएंगे। इधर, आजसू ने सीटों के तालमेल के सवाल पर एनडीए से नाता जरूर तोड़ा है, लेकिन आपसी संबंध बिगाड़े नहीं हैं। इसे बगावत नहीं, बल्कि दोस्ताना संघर्ष कहा जा सकता है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार बनाने के समय वे फिर एकजुट हो जाएंगे। आजसू की सीटें ज्यादा नहीं होतीं, लेकिन बहुमत के आकड़े में रिक्त स्थान को भरने के लिहाज से बेशकीमती और महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। इसी वजह से झारखंड गठन के बाद से उसकी भूमिका किंगमेकर की रही है और सत्तासुख का रास्ता खुलता रहा है।

बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने, तो भाजपा में थे। उनकी सरकार गिरा दी गई,तो उन्होंने अपनी अलग पार्टी झाविमो बनाई। इसके बाद उन्होंने कभी भाजपा के साथ गठजोड़ नहीं किया। लेकिन उन्हें यह अहसास हो चुका है कि वे अकेले दम पर झारखंड में कोई लहर नहीं पैदा कर सकते। सरकार नहीं बना सकते। वे किंगमेकर जरूर बन सकते हैं और इसी रास्ते सत्ता में भागीदारी कर सकते हैं। 2014 के चुनाव में रघुवर दास सरकार को टिकाए रखने में आजसू के साथ झाविमो के छह विधायकों का भी सहयोग रहा है। तब एनडीए में शामिल होने का आजसू को लाभ मिला। लेकिन झाविमो के हाथ कुछ नहीं लगा। इधर, आजसू का दुर्भाग्य यह रहा कि पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो स्वयं चुनाव हार गए।
इस बार आजसू ने एनडीए से स्वयं को अलग जरूर कर लिया है, लेकिन मुख्यमंत्री रघुवर दास की सीट पूर्वी जमशेदपुर पर अपना प्रत्याशी नहीं दिया है। भाजपा ने भी इसके प्रत्युत्तर में सुदेश महतो की सिल्ली सीट पर प्रत्याशी नहीं दिया है। जाहिर है कि दूरी बढ़ी है, लेकिन आपसी सहयोग का रिश्ता बरकरार है। सुदेश महतो तल्ख तेवर अपनाते हैं, लेकिन राजनीतिक शत्रुता की स्थिति नहीं बनने देते। लिहाजा झामुमो गठबंधन के साथ भी उनके संबंध कटु नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी संभावनाओं के सारे दरवाजे खुले रखे हैं। झारखंड राज्य के गठन के बाद 2005 में जब पहली विधानसभा का चुनाव हुआ, तो आजसू के दो विधायक चुनकर आए थे। अर्जुन मुंडा की सरकार बनाने में सहयोग कर सुदेश महतो राज्य के गृहमंत्री बन गए।

चंद्र प्रकाश चौधरी भी कैबिनेट मंत्री बन गए। 2009 के चुनाव में आजसू के पांच विधायक चुनाव जीते। सरकार बनाने में सहयोग के ईनाम में उन्हें डिप्टी चीफ मिनिस्टर का पद मिला। फिर 2011 में हटिया सीट पर उपचुनाव मे जीत दर्ज कर 6 हो गए। 2014 में 5 सीटों पर जीत दर्ज की। इसबार सुदेश महतो को ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद है। इसीलिए वे तालमेल में ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थे। भाजपा 65 पार का नारा जरूर दे रही है, लेकिन रघुवर दास भी जानते हैं कि यह आसान नहीं है। सरकार बनाने के लिए सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा अभी से ही हो रही है कि आजसू जितनी भी सीटें लाएं, जिसकी भी सरकार बने। सुदेश किंगमेकर बने रहेंगे। वहीं, बाबूलाल मरांडी ने अपना पत्ता नहीं खोला है। बहरहाल, चुनाव के बाद राजनीतिक परिस्थितियां क्या होगी? चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। पर यह तय माना जा रहा है कि आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो और झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी किंग मेकर की भूमिका में हो सकते हैं।

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