सुनील सौरभ
हाँ, अब अयोध्या बदल रहा है। वही अयोध्या, जिसे देश की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राजधानी मानी जाती है। जहाँ से देश की राजनीति शुरू होती है और जहाँ पर जाकर समाप्त होती है। हाँ, वही अयोध्या, जहाँ से किसी शासन व्यवस्था की तुलना और मानव मर्यादा की बात की जाती है। पिछले पाँच दशक से जो देश की राजनीति का केंद्रबिंदु रहा है, मैं उसी अयोध्या की बात कर रहा हूँ। भगवान श्रीराम जन्मभूमि की लंबी लड़ाई के बाद जब फैसला आया, तब लगा कि अयोध्या एक बार जरूर जाना चाहिए! ऐसे तो बचपन से ही अयोध्या के बारे में पढ़ता- सुनता रहा हूँ, रामलीला के माध्यम से भी अयोध्या की गौरव गाथा सुनते रहा हूँ, लेकिन अयोध्या जाकर उसे देखने-सुनने का मौका नहीं मिला था। कुछ महीने से मैं, हिन्दुस्तान टाईम्स के श्री अनिल ओझा, सामाजिक कार्यकर्ता श्री मुनिराम दुबे इस बात की चर्चा किया करते थे कि इस बार अयोध्या चला जाये! अयोध्या चलने की बात आयी, तो एक और सामाजिक कार्यकर्ता श्री रामप्रवेश शर्मा को भी साथ ले चलने का निर्णय लिया गया, क्योंकि वे हर महीने अयोध्या जाते हैं। उनके साथ रहने से घूमने-फिरने में सहूलियत होगी, इस ख्याल से उन्हें साथ जोड़ा गया।
नौ दिसम्बर, 2019 को हम चारों गाड़ी लेकर सड़क मार्ग से निकल पड़े अयोध्या के लिए। गया से सुबह 10 बजे यात्रा की शुरुआत हुई। रास्ते में रुकते-राकते रात 11.30 बजे अपने गंतव्य अयोध्या के श्रीरघुनाथ कुंज मठ में पहुँचे। पूर्व सूचना थी, इसलिए वहाँ के स्वामी जी जगे हुए थे। हमलोगों के लिए प्रसाद (मठ में बनने वाले खाने को प्रसाद कहा जाता है) भी रखा था, परन्तु देर होने के कारण हमलोग रास्ते में ही खा लिए थे। स्वामी जी से इसके लिए क्षमा याचना कर हम सभी अपने कमरे में चले गए। तय हुआ कि सुबह घूमने की बात की जाएगी!
सुबह उठकर सीधे सरयू नदी और राम की पैड़ी चलने का निर्णय हुआ। तभी मुनिराम दुबे जी की बात उनके गाँव के एक चाचाजी से हुई, जो अयोध्या में ही रहते हैं। उन्होंने कहा कि सभी को चाय के लिए मेरे घर ले आएँ, फिर, सरयू में स्नान कीजियेगा। हमलोग उनके घर पहुँच गये। चाय पीकर और कुछ देर बातें कर हमलोग निकल पड़े सरयू नदी के तट की ओर। राम की पैड़ी और सरयू नदी के घाट पर पहुँचकर ऐसा लगा कि हम सभी त्रेतायुग में पहुँच गए। सच पूछिए, राम राज्य की कल्पना में ही डूबते चले गए!
सरयू नदी में डुबकी लगाने के बाद तो असीम शांति की अनुभूति हुई। लगा, जाने-अनजाने जो भी गलती हुई होगी, उन सभी को सरयू ने धो डाला है। यहीं पर देश के विभिन्न स्थानों से आये लोगों से बदलते अयोध्या पर बातें होने लगी तो, लोगों को संकल्प कराने के लिए बैठे ब्राह्मणों ने भी कहा कि ”अब अयोध्या बदल रहा है। दशकों से जो साधु-संत, महात्मा-महंथ और अयोध्यावासी निराशा और असमंजस में थे, पिछली सरकारों की नीतियों से राम जन्मभूमि पर उम्मीद की किरण नहीं देखने की बात करते थे, उन सभी को अब एहसास हो गया कि भगवान के घर में देर है, अँधेर नहीं। आप पहले यदि अयोध्या आ चुके हैं और आज अयोध्या आएँ हैं, तो यह स्प्ष्ट नजर आ जाएगा कि अब अयोध्या में बदलाव हो रहा है। पुनः अयोध्या त्रेतायुग के अयोध्या के रूप में स्थापित होगा!”
हमलोगों की टोली सरयूजी में स्नान कर और पंडित जी से संकल्प लेकर रामजन्मभूमि का दर्शन करने चल पड़ी। रामप्रवेश जी ने कहा कि पहले हनुमानगढ़ी चल कर हनुमानजी का दर्शन किया जाए। लेकिन, समय 11 बजे का हो गया था, इसलिये पहले रामलला का दर्शन करने का निर्णय लिया गया। प्रवेश द्वार पर पहुँचा, तो पता चला कि 11 से एक बजे तक दर्शन बन्द रहता है। तब, हमलोगों ने हनुमानगढ़ी जाकर हनुमानजी का दर्शन किया और दोपहर का प्रसाद (खाना) ग्रहण करने के लिए रघुनाथ कुंज लौट आये। प्रसाद ग्रहण करने के बाद हम सभी अपने कमरे में आराम करने चले गए। अपराह्न तीन बजे रामलला का दर्शन करने के लिए हम सभी निकल पड़े। करीब सवा किलोमीटर की दूरी तय कर रामलला का दर्शन किये। सोचने लगे कि जिनके नाम पर राजनीति कर, रोजी रोजगार कर, राम नाम का झंडा फहरा कर, बड़े-बड़े भवन में लोग रह रहे हैं, परन्तु भगनान श्रीराम को एक टेंट में रहने को विवश होना पड़ रहा है। सनातन धर्म की सहिष्णुता का मतलब यह नही कि उनके आराध्य को उपेक्षित रखा जाए!
मेरे इस सवाल पर कई अयोध्यावासी ने कहा कि धैर्य की परीक्षा हो गयी, अब अयोध्या बदल रहा है। भगवान का सम्मान अब और बेहतर होगा, भव्य राम मंदिर बनेगा! रामजन्मभूमि से निकलते समय जब मैं कुछ लोगों से बातें कर रहा था, तब सुरक्षा बल के एक पदाधिकारी ने कहा कि अब जल्द ही भव्य मंदिर बनेगा, पहले पूरे 67 एकड़ भूमि को समतल किया जाएगा, उसके बाद मंदिर निर्माण कार्य शुरू होगा।
रामजन्मभूमि से निकलने के बाद निर्णय हुआ कि नंदी ग्राम और भारत कुंड का दर्शन कर लिया जाए। अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर है यह स्थान। हम लोग वहाँ पहुँचे, तो शाम हो चुकी थी। लेकिन, अद्भुत लगा। माना जाता है कि भगवान राम के भाई भरत ने राम के वनवास से लौटने के लिए यहाँ तपस्या की थी। यहीं पर भाई भरत ने श्रीराम की खड़ाऊँ को प्रतीक के तौर रखकर अयोध्या का राजपाट चलाया था।यहीं पर भरत से हनुमानजी की भेंट हुई थी। भरत-हनुमानजी के मिलन के उसी रूप की मूर्ति स्थापित है। यहीं पर राम-भरत मिलन के बाद महाराज दशरथ ने प्राण त्याग किया था। यहीं पर पिता के पिंडदान के लिए श्रीराम ने एक कुंड का निर्माण कराया था, जो आज भी विद्यमान है। इस कुंड को गया कुंड के रूप में भी जाना जाता है। हमलोग कुंड को देख ही रहे थे कि रामप्रवेश जी और मुनिराम दुबे जी के एक परिचित गया जी के पंडा मिल गए। उन्होंने बताया कि इस कुंड में गयाजी में पिंडदान करने के लिए जाने वाले इस क्षेत्र के लोग पहले पिंडदान करते है। भाई भरत और हनुमानजी के मिलन वाले गुफ़ा मंदिर के सामने स्थित एक चाय की दुकान में बैठकर हमलोगों ने चाय पी और वापस अयोध्या की ओर लौट पड़े। लेकिन, नंदी ग्राम और भरत कुंड क्षेत्र की शासकीय उपेक्षा पर मन दुःखी हो गया।
शाम सात बजे यहाँ से निकलकर हम सीधे कनक भवन पहुँचे। दिन क्या रात में भी कनक भवन की भव्यता और रौनक अद्भुत दिख रही थी। माता सीता और भगवान श्रीराम की स्थापित मूर्ति जीवंतता की प्रतीक लग रही थी। अयोध्या के इस सबसे प्राचीन कनक भवन की महत्ता इतना है कि यहाँ के संतों का मानना है कि आज भी भगवान श्रीराम, माता सीता के साथ इस परिसर में विचरण करते हैं। कनक भवन मंदिर सुंदर निर्माण शैली और विशाल प्रांगण में बना यह महल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। कहा जाता है कि कनक भवन राम विवाह के पश्चात माता कैकई के द्वारा सीताजी को मुँह दिखाई में दिया गया था। उस समय का यह भवन चौदह कोस में फैले अयोध्या नगरी में सबसे दिव्य और भव्य महल था। कहा जाता है कि महाराज दशरथ जी द्वारा विश्वकर्मा की देख रेख में श्रेष्ठ शिल्पकारों के द्वारा कनक भवन का निर्माण कराया गया था।भगवान श्रीराम के श्रीधाम जाने के बाद पुत्र कुश ने कनक भवन में राम-सीता की अति सुंदर मूर्तियां स्थापित कीं। किंतु, समय के चक्र में यह भवन भी जर्जर हो गया। वर्तमान कनक भवन का निर्माण ओरछा के राजा सवाई महेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी बृष भानु कुंवरि की देखरेख में कराया गया था, जो आज भी अद्भुत है।
कनक भवन से निकलने के बाद हमलोग सरयू जी के तट पर स्थित झुनकी घाट गए। रात को भी यह घाट सुंदर लग रहा था।इसी घाट पर गया जी से ताल्लुक रखने वाले प्रवचनकर्ता प्रभंजनानंद जी का आश्रम है। मुनिराम दुबे जी ने कहा कि यहीं पर मेरे गांव का एक भाई भी रहता है, उससे मिल लें। हमलोग उनके यहाँ पहुंच गए। चाय-नाश्ता के साथ उन्होंने आवभगत किया। जानकारी मिली कि हमलोग जहाँ बैठे हैं, वह विश्व हिन्दू परिषद का प्रशिक्षण स्थल है और दुबे जी के गाँव का भाई वहाँ के मंदिर का पुजारी है। अब तक रात के नौ बज गए थे। खाना दुबे जी के चाचा जी के यहाँ था, हम सभी उनके यहाँ पहुँच गए। खाने के दौरान अयोध्या, राम मंदिर, राजनीति से लेकर बहुत सी बातें हुईं। यहाँ भी लोगो ने कहा कि अब अयोध्या में भी बदलाव की उम्मीद बढ़ गई है, अयोध्या भी अब बदल रहा है। यहाँ के लोगो को पूरा विश्वास है कि पुनः अयोध्या त्रेतायुग वाला गौरव प्राप्त करेगा!