रांची : झारखंड में महागठबंधन की जीत के बाद एक ओर भाजपा खेमे में निराशा की लहर है, वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस, झामुमो और राजद खेमे में हर्ष व्याप्त है। विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी बात यह रही कि महागठबंधन में शामिल दलों के राज्यस्तरीय कद्दावर नेता जी-जान से लगे रहे। स्टार प्रचारकों का आगमन अंतिम चरण में हुआ। स्थानीय नेता ही विपक्ष के वोटों के बिखराव को रोकने में पूरी तरह सफल रहे। तभी कांग्रेस 6 से 16 सीटों तक और झामुमो 18 से 30 सीटों तक पहुंच पाया।
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और कांग्रेस के दिग्गज नेता सुबोधकांत सहाय ने भाजपा को सत्ता से बाहर करने का संकल्प पूरा करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। श्री सहाय स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे थे। इसलिए उनके पास सभी विधानसभा क्षेत्रों का निरंतर दौरा करने का पर्याप्त समय था। वहीं, हेमंत सोरेन स्वयं दो सीटों से खड़े होने के बावजूद महागठबंधन के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरे राज्य की परिक्रमा करते रहे। कांग्रेस आलाकमान की ओर से सुबोधकांत सहाय को चुनाव कैंपेन कमिटी की जिम्मेदारी दी गई थी। जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। उनकी कोशिशें रंग लाईं। जिन सीटों पर महागठबंधन के प्रत्याशी जीत नहीं सके, वहां भी कांटे की टक्कर दी। रांची में महागठबंधन की प्रत्याशी महुआ माजी ने भाजपा के सीपी सिंह जैसे दिग्गज नेता के पसीने छुड़ा दिए। हटिया से अजय नाथ शाहदेव आजसू के सीटिंग एमएलए नवीन जायसवाल को भले हरा नहीं सके, लेकिन तकरीबन एक लाख वोट लाकर पार्टी की ताकत दिखा दी। सुबोधकांत सहाय ने अपने समर्थकों को रांची से महागठबंधन प्रत्याशी झामुमो नेत्री महुआ माजी, हटिया से कांग्रेस प्रत्याशी अजयनाथ शाहदेव. खिजरी से राजेश कच्छप और कांके से सुरेश बैठा के पक्ष में पूरी ताकत झोंक देने की हिदायत दी थी। कांग्रेस के वोट महागठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में शत-प्रतिशत पड़े, इस मामले में वे बेहद सजग रहे। हेमंत सोरेन ने भी सुबोधकांत सहाय के 40 साल के राजनीतिक जीवन के अनुभवों का लाभ उठाने का कोई मौका हाथ से नहीं निकलने दिया।
उल्लेखनीय है कि महागठबंधन की चुनावी रणनीति बनाने में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। लिहाजा जीत के बाद हेमंत सोरेन और सुबोधकांत सहाय लालू प्रसाद से मिलने गए और सरकार के स्वरूप और भावी रणनीति पर उनसे रायशुमारी की। सुबोधकांत कांग्रेस पार्टी की सांगठनिक ढांचे को मजबूत करने में भी सक्षम रहे हैं। संगठन को सशक्त बनाने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान अपने कर्त्तव्यों का बखूबी निर्वहन करते हुए वे पार्टी हित में भी जुटे रहे। संभावना जताई जा रही है कि विगत तकरीबन चार दशक के राजनीतिक जीवन के अनुभव से झारखंड में सत्ता की राजनीति को भी सुबोधकांत सहाय एक नई दिशा प्रदान करेंगे।