लोक आस्था के महापर्व छठ की महत्ता जगजाहिर है। इसका बहुत व्यापक फलक है। यह पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का भी संदेश देता है। छठ पूजा में शुद्धता और स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। चार दिवसीय छठ महापर्व के आयोजन के हर चरण में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाता है। छठ व्रतधारी अपने घरों में, पूजा स्थल से लेकर तालाबों, नदियों, पोखरा पर बने अर्ध्य स्थल तक स्वच्छता को लेकर सजग, सतर्क रहते हैं। स्वच्छता और शुद्धता के प्रति व्रतधारियों और श्रद्धालुओं में गंभीरता देखी जाती है। यह पर्व हमें नारी सशक्तिकरण, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जीवन जीने के विभिन्न बेहतर तौर-तरीकों का भी एहसास कराता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी और सप्तमी के दिन मनाया जाने वाला यह राष्ट्रीय त्योहार पूरी तरह से आडंबर रहित होता है। वैसे सूर्य को तो हम प्राय: हर दिन अर्ध्य देते हैं, लेकिन यह एकमात्र ऐसा अवसर होता है, जब हम सूरज को संज्ञा सहित अर्ध्य देते हैं। आडंबर रहित इस महापर्व में पंडित जी का पतरा नहीं, छठव्रतियों का अंचरा ही सबसे महत्वपूर्ण होता है। लोकगीतों और लोक जीवन के उत्सव के रूप में छठ व्रत को हम मनाते हैं। छठ पर्व के अवसर पर घर परिवार से लेकर समाज के हर तबके के लोगों की सक्रिय सहभागिता रहती है। नदी, तालाब, पोखर आदि जलाशयों की सफाई युद्धस्तर पर की जाती है। छठ पर्व के अवसर पर स्वच्छता को लेकर जो जनभागीदारी दिखती है, इससे सामाजिक समरसता का भाव भी उत्पन्न होता है। त्यौहार के दौरान स्वच्छता को लेकर सभी वर्ग के लोगों में जो सजगता दिखाई देती है, इसका हमारे दैनिक जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लोक आस्था और श्रद्धा की अद्भुत मिसाल है छठ व्रत का आयोजन। इस महापर्व के पावन अवसर पर हमें हर स्तर पर स्वच्छता बनाए रखने का संकल्प लेने की भी आवश्यकता है। बांस के सूप में केला, नारियल सहित आटा और गुड़ से बने ठेकुआ रखकर नदी या तालाब के किनारे खड़े हो कर अर्ध्य देते व्रती को देखकर संपूर्ण सात्विकता की प्रतिमा साकार हो जाती है। इस पर्व के मौके पर कोई बाहरी आडंबर नहीं दिखता है। छठ पर्व की मौलिकता अद्भुत छटा बिखेरती है। वहीं, दूसरी तरफ यह पूर्ण रूप से इको फ्रेंडली त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। यह हमारे सामाजिक जीवन का एक ऐसा त्यौहार है जो रूढ़िवादिता से बिल्कुल मुक्त है। चार दिवसीय इस लोक महापर्व के आयोजन के अवसर पर हमें पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेते हुए जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता बनाए रखने हेतु छठ पर्व की महत्ता को समझने की आवश्यकता है। आएं, हम सब आस्था के इस चार दिन के महापर्व को खान-पान से लेकर अपने आचार-व्यवहार तक में सात्विकता बरतने का संकल्प लें, तभी इस महापर्व की सार्थकता सिद्ध होगी।