Friday, May 17, 2024
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शांति सिंह ने पेश की परोपकार की मिसाल

हैप्पी चिल्ड्रेन स्कूल परिसर में लगातार दो माह तक गरीबों के लिए चलाया लंगर

रांची : वैश्विक महामारी कोविड-19 के खिलाफ युद्ध में शामिल हैं राजधानी के तुपुदाना स्थित आरके मिशन रोड निवासी शांति सिंह और उनके पुत्र दिलबाग सिंह। समाजसेवा के क्षेत्र में मां-बेटे की विशिष्ट पहचान स्थापित है। नामचीन समाजसेवी शांति सिंह के पुत्र दिलबाग सिंह अपनी मां के पदचिन्हों पर चलते हुए समाजसेवा के लिए सदैव समर्पित रहते हैं। कोरोना से बचाव के लिए किए गए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा होते ही मां-बेटे प्रभावित गरीबों व जरूरतमंदों की सेवा में जुट गए। शांति सिंह ऑल इंडिया वीमेन्स कांफ्रेंस की हटिया-तुपुदाना शाखा की अध्यक्ष हैं। वहीं, उनके पुत्र दिलबाग सिंह एक सामाजिक कार्यकर्ता व लाइट हाउस कैफे एंड किचन रेस्टोरेंट के संचालक हैं। पीड़ितो की सेवा के प्रति मां-बेटे के जज्बे और जुनून को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो जनसेवा को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा है। जरूरतमंदों, गरीबों, बेघर और बेसहारा लोगों की सेवा करना मां-बेटे की दिनचर्या में शुमार है।

लाॅकडाउन के दौरान गरीबों के लिए उनके आवासीय परिसर स्थित हैप्पी चिल्ड्रेन स्कूल में विगत 24 मार्च से प्रतिदिन दोपहर में भोजन की व्यवस्था उपलब्ध रही। यह सिलसिला 25 मई तक जारी रहा। इस दौरान सैंकड़ों जरूरतमंदों के बीच उनके सौजन्य से खाद्यान्न व अन्य उपयोगी सामान भी बांटे गए। समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं और समाजसेवियों की ओर से भी इसमें सहयोग किया गया। लाॅकडाउन के चार चरणों में उन्होंने अब तक आसपास के लगभग सोलह हजार गरीबों को भोजन कराने के अलावा सैंकड़ों जरूरतमंदों को खाद्यान्न व अन्य सामग्री भी मुहैया कराया।श्रीमती सिंह ग्रामीणों को कोरोना से बचाव के लिए घरों में रहने की हिदायत देती हैं। वहीं, उनके पुत्र दिलबाग लाॅकडाउन के दौरान फंसे लोगों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कोरोना काल में खासकर बेसहारा,बीमार, लाचार व गरीबों की सेवा के प्रति मां-बेटे का समर्पण अनुकरणीय ही नहीं, बल्कि प्रेरणास्रोत भी बना है। शांति सिंह कहती हैं कि समाज में हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार पीड़ितों की सेवा कर देश और समाज के प्रति समर्पित भाव से जिम्मेदारी निभानी चाहिए। श्रीमती सिंह ने समाजसेवा को ही अपना ओढ़ना-बिछौना बना रखा है। दया की प्रतिमूर्ति शांति सिंह दीन-दुखियों के दर्द को अपना दर्द समझते हुए उनकी मददगार के रूप में हमेशा तत्पर रहती हैं।

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