Saturday, May 11, 2024
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सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना का पर्व है धनतेरस:पूनम सिंह

धनतेरस हमारे देश के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही महर्षि धन्वंतरि का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। दीपावली पर्व का शुभारंभ धनतेरस से होता है। इस संबंध में मान्यता है कि ऋषि धनवंतरी जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरी कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसीलिए इस अवसर पर बर्तन आदि खरीदने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और मृत्यु देव यमराज की भी पूजा-अर्चना को विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन को धन्वंतरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के संबंध में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार यह तिथि विशेष रूप से व्यापारियों के लिए अति शुभ माना जाता है। महर्षि धन्वंतरि को स्वास्थ्य के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक समुद्र मंथन के समय महर्षि धन्वंतरि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। इसीलिए इस दिन बर्तन या धातु खरीदने की प्रथा प्रचलित है। इस संबंध में माना जाता है कि धनतेरस के शुभ अवसर पर चल या अचल संपत्ति खरीदने से 13 गुना वृद्धि होती है। धनतेरस के बारे में एक और कथा प्रचलित है कि एक समय भगवान विष्णु द्वारा श्राप दिए जाने के कारण देवी लक्ष्मी को 13 वर्षों तक एक किसान के घर पर रहना पड़ा था। माता लक्ष्मी के उस किसान के घर जाने से उसका घर धन संपदा से परिपूर्ण हो गया। 13 वर्षों के बाद जब भगवान विष्णु मां लक्ष्मी को लेने आए, तो किसान ने मां लक्ष्मी से वहीं रुक जाने का अनुनय-विनय किया। इस पर देवी लक्ष्मी ने किसान से कहा कि कल त्रयोदशी है और अगर वह अपने घर की साफ-सफाई कर दीप प्रज्वलित करके उनका आह्वान करेगा, तो किसान को धन-वैभव,संपदा की प्राप्ति होगी। जैसा मां लक्ष्मी ने कहा, किसान ने वैसा ही किया और उसे धन -वैभव की प्राप्ति हुई। तभी से ही धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन की प्रथा प्रचलित है।
धनतेरस का पावन पर्व हमें सामाजिक समरसता का संदेश भी देता है। समाज के सभी वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए धनतेरस की महत्ता है।
धनतेरस पूजन विधि : शास्त्रों के मुताबिक धनतेरस की संध्या में यमदेव निमित्त दीपदान किया जाता है। फलस्वरूप उपासक और उसके परिवार को मृत्यु देव यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है। विशेष रूप से यदि गृहलक्ष्मी इस दिन दीपदान करें, तो पूरा परिवार आरोग्य एवं समृद्धि से परिपूर्ण होता है। इस अवसर पर बर्तन या धातु खरीदने की परंपरा को लोग शुभ मानते हैं। विशेषकर पीतल और चांदी के बर्तन, सोने के सिक्के आदि खरीदने की परंपरा है। इस संबंध में कहा जाता है कि महर्षि धन्वंतरि का प्रिय धातु पीतल रहा है। इसलिए इस दिन पीतल के बने बर्तन खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। वहीं, व्यापारी वर्ग इस विशेष दिन में नए बही-खाता खरीदते हैं। जिनका पूजन दीपावली के अवसर पर किया जाता है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी विशेष परंपरा है। इसके पीछे यह कारण बताया जाता है कि चंद्रमा का प्रतीक चांदी मनुष्य को जीवन में शीतलता प्रदान करता है। वहीं, चांदी कुबेर की प्रिय धातु है। धनतेरस पर चांदी खरीदने से घर में यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और संपदा में वृद्धि होती है। संध्या के समय घर के मुख्य द्वार पर आंगन में दीप प्रज्वलित कर धनतेरस के अवसर पर माता लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है।

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