Sunday, May 19, 2024
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“स्वस्थ मन हीं, स्वस्थ जीवन का रहस्य है”:-अनंतधीश अमन

गया । जीवन के उतार चढ़ाव में इंसान स्वंय को कब खो देता है, पता चलता हीं नहीं। कभी अपने बचपन के सुनहरे पलों को, कभी अपने प्रेम प्रसंग को, तो कभी अपने असफलताओं के भय में, या फिर कभी जीवन के संघर्षों के अवसाद में, या कभी अपने के खो देने पर। इंसान इन सारे परिस्थितियों में इस कदर टूटता है या स्वंय को खो देता है की वह अपने अस्तित्व का हीं अंत करने को आतुर और व्याकुल हो उठता है।
यह जो सारे परिस्थितियां होती है उसमें वह सिर्फ अपने अनुकूल विचारों को हीं रेखांकित करता है और यदि उससे विपरीत विचार उसके पास आते है तो वह और भी व्याकुल हो उठता है और अपने अस्तित्व को हीं अंत करने का कदम उठाने का फैसला कर लेता है।

किंतु क्या यह सही है ? बिल्कुल भी नहीं!

अध्यात्म और वैज्ञानिक तौर में मनोविज्ञान इन्हीं सब अवसादों से मानव के जीवन मुक्त करने का पद्धति है। मन के विकारों से तन रोगी हो जाता है, मन के शुद्ध विचारों से तन निरोगी हो जाता है।

श्री मद भगवत् गीता में एक श्लोक इस प्रकार आया है,
मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।
मनकी प्रसन्नता, सौम्य भाव, मननशीलता, मनका निग्रह और भावोंकी शुद्धि — इस तरह यह मन-सम्बन्धी तप कहा जाता है।

यदि हम मन को अच्छे विचार और व्यव्हार का आहार देंगे तो जीवन के इन सभी विपरीत परिस्थितियों में वह हमें निकलने में सहायता भी प्रदान करेगा और साथ हीं तन को भी स्वस्थ रखने में सहायक होगा जिससे हम सफल और सार्थक जीवन यापन कर सकेंगे।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की बहुत बहुत बधाई एंव शुभकामनाएं सभी स्नेहिल मित्रों को……

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