गया । इस संसार में हर विधमान वस्तु, स्थान, जीव, जन्तु, यहाँ तक की काल के घटनाक्रम भी अंततः कथा हो जाते है यह इस संसार की प्रकृति है। किंतु मानव सभ्यता का यदि निरिक्षण करें तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी की मानव अपने कर्म के अनुसार जीवन मूल्यों को सिंचित कर अपने कथा को अजर अमर करते आया है यह मानव की प्रवृत्ति रहीं है और यही मानव की संस्कृति भी है जो इस संसार में उसे सर्वोच्च स्थान प्राप्त कराता है। मानव का जीवन वृत्त हीं इस संसार को अनुसंधान केन्द्र मानता है और वह नित्य कुछ नया खोजने के कार्य में लगा रहता है जिससे उसका जीवन आसान हो जाए इस प्रवृत्ति से कभी-कभी इस संसार की प्रकृति पर हीं प्रहार हो जाता है जिससे इस संसार को क्षतिग्रस्त का भार भी ढोना पङता है। जिस तरह से मानव अपने बेहतरीन स्मृतियों के साथ जीवन में उल्लास पाता है और कङवी स्मृतियों के साथ जीवन में दुख अनुभव करता है ठीक उसी प्रकार यह संसार भी अपने बेहतरीन स्मृतियों के साथ आनंद पाता है और कटु स्मृतियों के साथ व्यथित रहता है। संस्कृत में एक श्लोक है “अन्ते वयं सर्वे कथा भवेम” जिसका अर्थ है ‘अंत में हम सब कहानी बन जाते है’ इसलिए हम सभी को चाहिए की अपने जीवन वृत्त में कुछ ऐसा नहीं करें की जिससे जीवन के साथ-साथ अपनी कहानी को भी क्षणभंगुर न कर दें जो आने वाले कल के लिए भी उपयोगी न रहें।