Tuesday, May 14, 2024
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परमाणु विकिरण पीड़ितों के दर्द से रूबरू कराता ‘रूई लपेटी आग’

आज परमाणु शक्ति परीक्षण ने विश्व की मानवीय संवेदना व मनुष्यता को रुई के समान आग में लपेट कर रख दिया है। ऐसे में मनुष्यता कैसे सुरक्षित रह सकती है?

प्रख्यात साहित्यकार अवधेश प्रीत ने परमाणु विकिरण से जूझते जनों की दर्द भरी कहानी को अपने उपन्यास ‘रूई लपेटी आग’ में बड़े ही जबरदस्त ढंग से उठाया है। भारत सरकार के समय समय पर परमाणु परीक्षण पर देशभर में एक जश्न का माहौल बन जाता है। सरकार की वाहवाही भी बहुत होती है। वहीं पड़ोसी मुल्क पर भी सरकार का दबदबा बढ़ जाता है। वहीं दूसरी ओर परमाणु विस्फोट से उत्पन्न विकिरण का आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों पर क्या प्रतिकूल प्रभाव छोड़ जाता है ? इस प्रतिकूल प्रभाव और सच को उपन्यास के लेखक अवधेश प्रीत ने लंबे शोध के बाद ‘रूई लपेटी आग’ में दर्ज किया किया है। उपन्यास का नामकरण लेखक ने बहुत ही सूझबूझ के साथ रखा है। इस उपन्यास को राजकमल प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। यह उपन्यास प्रकाशन के साथ ही चर्चा में आ गई। उपन्यासकार अवधेश प्रीत ने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह उपन्यास लिखा, तहलका मचा दिया है। इस उपन्यास का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जबरदस्त ढंग से चर्चा हो रही है। ‘रूई लपेटी आग’ अपने शीर्षक से ही सब कुछ बयां कर जाता है। रूई एक ऐसी वस्तु है, जिसे जरा भी आग का संपर्क मिल जाए तो धू धू कर जल जाती है। आज परमाणु शक्ति परीक्षण ने विश्व की मानवीय संवेदना व मनुष्यता को रुई के समान आग में लपेट कर रख दिया है। ऐसे में मनुष्यता कैसे सुरक्षित रह सकती है? कहने के तो हम परमाणु संपन्न देश बन जाते हैं, लेकिन इस परमाणु संपन्नता की कोख से उपजने वाली विभिषिका पर यह उपन्यास नए सिरे से वैश्विक स्तर पर गंभीर चर्चा की वकालत करता है। यह उपन्यास वैश्विक स्तर पर परमाणु परीक्षणों की होड़, उनसे उपजी त्रासदी और मनुष्यता के सामने उपस्थित संकट को संबोधित करता है। साथ ही यह उपन्यास मनुष्यता पर आए इस संकट के खिलाफ उठ खड़े होने का भी आह्वान करता है। ‘रूई लपेटी आग’ विनाश बनाम सृजन के मध्य परमाणु विकिरण से जूझ रहे जनों की पीड़ा को आम जनों के बीच रखने में पूरी तरह सफल है।

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‘रूई लपेटी आग’ उपन्यास पर चर्चा को आगे बढ़ाएं, उससे पहले यह जानना जरुरी हो जाता है कि देश में पहला परमाणु विस्फोट 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में हुआ था। तब श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं । फिर दूसरा परमाणु भूमिगत विस्फोट 1998 में 11 और 13 मई को पांच चरणों में पोखरण में हुआ था । तब अटल बिहारी वाजपेई देश के प्रधानमंत्री थे। 1998 में परमाणु पोखरण विस्फोट के मुख्य वैज्ञानिक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम थे। इस परमाणु विस्फोट के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई भी पोखरण में ही मौजूद थे। इस परमाणु विस्फोट की खबर को देश भर के सभी अख़बारों ने लीड खबर के रूप में प्रकाशित किया था। टेलीविजन पर भी यह खबर कई दिनों तक चलती रहीं थीं। 1998 के इस पोखरण परमाणु विस्फोट पर अमेरिका कई पाबंदियां भारत पर लगा दिया था। हालांकि उस समय भारत सरकार ने यह घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों के लिए होगा। यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किया गया है। ‘रूई लपेटी आग’ भारत सरकार के उक्त घोषणा पर से भी पर्दा उठाने में सफल होता है। यह उपन्यास अपने पात्रों के माध्यम से परमाणु विस्फोट के औचित्य पर भी सवाल खड़ा करता है। एक ओर संगीत जो मनुष्य को मनुष्य के और करीब लाता है। वहीं दूसरी ओर परमाणु परीक्षण मनुष्यता को ही लीलने को आतुर है।

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उसी दौरान उपन्यास के लेखक अवधेश प्रीत को अखबार में छपी एक छोटी सी खबर ने उद्वेलित कर दिया था । खबर यह थी कि पोखरण परमाणु विस्फोट के मुख्य वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम एक संगीत प्रेमी हैं। तब लेखक के मन में यह सवाल उठा कि एक संगीत प्रेमी व्यक्ति कैसे विनाश के कारक परमाणु बम विस्फोट के परीक्षण का माध्यम बन सकता है?
इस विषय को लेकर अवधेश प्रीत ने काफी शोध के उपरांत एक लंबी कहानी लिख डाली। पिछले दिनों कथाकार रतन वर्मा के दिए इंटरव्यू में अवधेश प्रीत ने कहा कि ‘उन्होंने कहानी प्रकाशानार्थ हेतू ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव को भेज दिया था । कहानी पढ़ने के बाद राजेंद्र यादव ने अवधेश प्रीत को सुझाव दिया कि यह एक बड़े कैनवास की कहानी है। इस विषय पर उपन्यास लिखा जाना चाहिए।’ अवधेश प्रीत ने राजेंद्र यादव के इस सुझाव को बहुत ही गंभीरता के साथ लिया। उन्होंने इस विषय को लेकर कई दिनों तक विमर्श भी किया। उन्होंने उसी इंटरव्यू में कहा कि ‘इतनी मेहनत से लंबी कहानी लिखने के बाद उस मन: स्थिति में वापस जाना आसान नहीं, नए सिरे से सोचना होता है’।

‘रुई लपेटी आग’ उपन्यास परमाणु विस्फोट से उत्पन्न विकिरण से जूझ रहें जनों की अनकही कहानी है । यह उपन्यास सत्य की कसौटी पर पूरी तरह खरी नजर आती है । लेखक ने स्वीकार किया है कि उपन्यास को पठनीय बनाने के लिए कल्पना का भी सहारा लिया गया है। उपन्यास के पात्र,उनके नाम और जगहों के विवरण से प्रतीत होता है कि सत्य की पृष्ठभूमि पर बुनी गई हैं। उपन्यास के पाठन से प्रतीत होता है कि लेखक अवधेश प्रीत ने बहुत ही मेहनत, शोध और यात्रा के बाद ही इस निष्कर्ष तक पहुंच पाए हैं। लेखक इस उपन्यास के माध्यम से संपूर्ण मानव जाति पर आए परमाणु विकिरण के संकट को बताने सफल रहे हैं। परमाणु शक्ति संपन्न देश बनने की होड़ में मनुष्यता दरकिनार कर दी जा रही है। यह उपन्यास इसी मनुष्यता को बचाने के लिए एक वैश्विक विमर्श क्रांति का भी आह्वान करता है।
पोखरण जहां यह परमाणु विस्फोट हुआ। आम लोगों को वहां आना जाना माना है। यह पूरा क्षेत्र फायरिंग रेंज के नाम से जाना जाता है। लेखक पोखरण गए। पोखरण परमाणु विस्फोट विकिरण पीड़ितों से मिले । परमाणु विकिरण ने असमय लोगों की जिंदगियां छीन लीं। लोग कैंसर से पीड़ित हैं। विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हैं। बच्चे लुल्हे – लंगड़े और विक्षिप्त पैदा हो रहे हैं। काफी संख्या में लोग इस क्षेत्र से पलायन कर चुके हैं। जो गरीब, असहाय और लाचार लोग हैं, वे यहां रहने को विवश हैं । वे कैसे यहां जिंदगी गुजर रहे हैं ? लेखक बहुत ही मानवीय दृष्टिकोण के साथ उनकी समस्याओं को ‘रूई लपेटी आग’ में रखने में सफल होते हैं। पोखरण में परमाणु विस्फोट बाद क्या-क्या समस्याएं आप लोगों के जनजीवन आईं ? यह उपन्यास उसकी भी पड़ताल करता है। परमाणु विस्फोट के पूर्व पोखरण कैसा था ? वहां के लोग कितने अमन चैन के साथ रहते थे। इसकी भी बात यह उपन्यास बताता है।
‘रूई लपेटी आग’ उपन्यास जिस विषय को लेकर लिखा गया है। अधिकांश पाठक ऐसे विषयों पर लिखीं किताबों को पढ़ना पसंद नहीं करते हैं। लेखक ने इस उपन्यास को पठनीय बनाने के लिए कई रोचक प्रेम प्रसंग और नूतन विषयों को इस उपन्यास का अंश बनाया है। अव्यक्त प्रेम कथाओं को इस उपन्यास में दर्ज किया गया है। अरुंधति इस उपन्यास की नायिका हैं। वहीं दूसरी ओर कलीमुद्दीन अंसारी इस उपन्यास के नायक हैं । दोनों अलग-अलग विधा के पारंगत है। अरुंधति पखावज संगीत की विदुषी हैं। वहीं कलीमुद्दीन परमाणु वैज्ञानिक हैं। दोनों के विधाओं में कोई मेल व तारतम्य में नहीं है। इसके बावजूद दोनों के बीच एक अव्यक्त प्रेम है, जो एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। यह प्रेम उपन्यास के अंत तक अव्यक्त ही बना रहता है। उपन्यास स्त्री प्रधान भी प्रतीत होता है। यह उपन्यास बहुत सी बातें अपने स्त्री पात्रों को माध्यम से कहता है। मोटे तौर पर कलीमुद्दीन इस उपन्यास के नायक प्रतीत होते हैं । कलीमुद्दीन एक परमाणु वैज्ञानिक होने के साथ ही एक संगीत प्रेमी भी है। उपन्यासकार, परमाणु वैज्ञानिक कलीमुद्दीन के बहाने कई सवालों को खड़ा करता है कि एक ओर परमाणु परीक्षण जैसी विभिषिका उसके मस्तिष्क से उभर कर बाहर आती है, तो दूसरी ओर वह संगीत को भी उतना पसंद करता है । आज मनुष्य जिस चौराहे पर खड़ा है, अमृत और विष दोनों साथ लिए खड़ा है। तब मनुष्य अपनी मनुष्यता को कैसे कायम रख सकता है ?
उपन्यास की नायिका अरुंधति ऐसे परमाणु परीक्षण विस्फोटों के खिलाफ होती हैं। वह इसे रोकना भी चाहती हैं। लेकिन इसे रोक पाना उसके पहुंच के बाहर होती हैं। उपन्यासकार अवधेश प्रीत ने पखावज की विदुषी अरुंधति राय के माध्यम से मर्म को छूने वाली बात संप्रेषित की गई है। उपन्यास की नायिका अरुंधति सवाल उठाती हैं कि ‘यह एक विचित्र संजोग है कि इसी राजस्थान में नाथद्वारा है। जहां पखावज वादन की परंपरा समृद्ध हुईं । जहां सृजन की जड़े मजबूत हुईं । इस राजस्थान के इस पोखरण क्षेत्र में विनाश की व्यवस्था की गई हैं परमाणु बमों का परीक्षण किया गया है । जहां भगवान श्रीनाथजी के मंदिर में वात्सल्य शांति और भक्ति की रस धारा बही, इस धरती के इस छोर पर जिंदा लोगों को जिंदा – जी मार देने का उपक्रम किया जाना एक भियावह विडंबना हैं।’
उपरोक्त संवाद के माध्यम से उपन्यासकार अवधेश प्रीत ने निचोड़ कर उपन्यास का सार संक्षेप रख दिया है। पोखरण परमाणु विस्फोट के पूर्व सरकार ने यह घोषणा की थी कि इस क्षेत्र में बेहतर मेडिकल फैसेलिटीज उपलब्ध कराए जाएंगे। इस क्षेत्र के लोगों की बुनियादी समस्याओं को दूर किया जाएगा। बरसों बीत जाने के बाद भी सरकारी घोषणाएं सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह पाई हैं। जमीन पर पोखरण के निवासियों की घिसटती जिंदगियां ही दिखाई पड़ रही है। यह उपन्यास देश की वर्तमान राजनीति पर से भी पर्दा उठाता है। सत्ता पर काबिज पार्टियां वोट लेने के लिए घोषणाएं जरूर करती हैं, लेकिन उनकी घोषणाएं फाईलों तक ही सिमट कर रह जाती है। अवधेश प्रीत, कथाकार रतन वर्मा को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि ‘इस उपन्यास को मैंने जिया है, मित्र! इसलिए तुम्हें लग रहा है कि कहीं यह वास्तविक तो नहीं । एक-एक पात्र के साथ गहरे से जुड़ा हूं, मैं।’

Vijay Keshari
Vijay Kesharihttp://www.deshpatra.com
हज़ारीबाग़ के निवासी विजय केसरी की पहचान एक प्रतिष्ठित कथाकार / स्तंभकार के रूप में है। समाजसेवा के साथ साथ साहित्यिक योगदान और अपनी समीक्षात्मक पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं।
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