Thursday, May 16, 2024
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इतिहास के अद्वितीय सम्राट थे “अशोक”

सम्राट अशोक के जन्म जयंती पर विशेष

सम्राट अशोक भारत में मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक थे जिन्होंने 269 ईसापूर्व से 232 ईसा पूर्व तक भारत के लगभग सभी महाद्वीपों पर शासन किया था। सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य के दूसरे राजा बिंदुसार और रानी सुभद्रांगी के पुत्र थे।

मौर्य साम्राज्य के दूसरे राजा बिंदुसार की करीब 16 पटरानियां और 101 पुत्र थे। लेकिन उनके 101 पुत्रों में से केवल अशोक, तिष्य और सुशीम का ही उल्लेख इतिहास के पन्नों में मिलता है। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानाम्प्रिय’ अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। सम्राट अशोक बौद्ध धर्म से अत्याधिक प्रभावित थे, उन्होंने बौद्ध धर्म का  पूरी दुनिया में जमकर प्रचार-प्रसार भी किया था। इसलिए, उनकी ख्याति बौद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में भी फैल गई थी।

परिवार

सम्राट अशोक की 5 पत्नियां देवी, कारुवाकी, पद्मावती, असंधिमित्रा और तिष्यरक्षिता ।

सम्राट अशोक के 3 पुत्र महेंद्र, कुणाल और तिवाला और दो पुत्रियाँ थी संघमित्रा और चारुमती। 

जन्म 

इतिहास के सबसे ताकतवर योद्धाओं में से एक सम्राट अशोक का जन्म करीब 304 ईसा पूर्व बिहार के पाटिलपुत्र में हुआ था । हालांकि इनके जन्म की तारीख के बारे में कोई सटीक प्रमाण मौजूद नहीं है। जब सम्राट अशोक का जन्म हुआ था तो उसने अपनी माता सुभद्रांगी को बहुत कम कष्ट दिया था जिससे माता सुभद्रांगी ने उसका नाम अशोक रखा। अशोक देखने में सुंदर नहीं था, जिसके कारण पिता बिंदुसार उसे पसंद नहीं करते थे। एक दिन, राज्य के भावी राजा को जानने के लिए बिंदुसार ने पिंगलवत्स-जीव नाम के एक ज्योतिष को बुलाया। सभी 101 राजकुमारों को पिंगलवत्स-जीव के समक्ष एक बगीचे में बुलाया गया। परंतु, अशोक जाना नहीं चाहता था क्योंकि उसके पिता उसे पसंद नहीं करते थे तो उसकी माता ने उसे वहां जाने के लिए कहा। अशोक को देखने के पश्चात तपस्वी पिंगलवत्स-जीव को आभास हुआ कि आने वाले समय में यही राजकुमार मौर्य साम्राज्य का सम्राट बनेगा। परंतु, राजा की नाराज़गी के कारण उन्होंने कुछ स्पष्ट जवाब नहीं दिया और एक इशारा करते हुए कहा कि जिस राजकुमार के पास अच्छा घोड़ा, गद्दी, पेय, पात्र और भोजन होगा वह राजा बनेगा। सभा समाप्त हो जाने के बाद तपस्वी ने सुभद्रांगी को चुपके से बताया कि अशोक ही राजा बनेगा। इस बाद सुभद्रांगी ने तपस्वी को जल्द से जल्द महल छोड़ने के लिए कहा क्योंकि बिंदुसार अस्पष्ट जवाब से क्रोधित हो सकता था।

बचपन

राजपरिवार में पैदा हुए सम्राट अशोक बचपन से ही बेहद प्रतिभावान और तीव्र बुद्धि के बालक थे। शुरु से ही उनके अंदर युद्ध और सैन्य कौशल के गुण दिखाई देने लगे थे, उनके इस गुण को निखारने के लिए उन्हें शाही प्रशिक्षण भी दिया गया था। इसके साथ ही सम्राट अशोक तीरंदाजी में शुरु से ही कुशल थे, इसलिए वे एक उच्च श्रेणी के शिकारी भी कहलाते थे। अशोक के अंदर लकड़ी की एक छड़ी से ही एक शेर को मारने की अद्भुत क्षमता थी। सम्राट अशोक की विलक्षण प्रतिभा और अच्छे सैन्य गुणों की वजह से उनके पिता बिन्दुसार भी बेहद प्रभावित थे, इसलिए बिंदुसार ने सम्राट अशोक को बेहद कम उम्र में ही मौर्य वंश की राजगद्दी सौंप दी थी।

शिक्षा

सम्राट अशोक जन्म से ही एक महान शासक थे, उसके साथ ही वे ज्ञानी और महान शक्तिशाली शासक भी थे. महान सम्राट अशोक अर्थशास्त्र और गणित के महान ज्ञाता थे. सम्राट अशोक को महान अशोक बनाने में आचार्य चाणक्य ने प्रमुख भूमिका निभाई है। सम्राट अशोक को एक कुशल और महान सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य का बहुत बड़ा योगदान रहा है, आचार्य चाणक्य ने उनके अंदर एक महान शासक के सारे गुण विकसित किए गए थे।सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार के लिए कई स्कूल और कॉलेज की स्थापना भी की थी. सम्राट अशोक ने 284 ई.पू बिहार में एक उज्जैन अध्ययन केंद्र की स्थापना की थी. इतना ही नहीं इन सबके अलावा भी उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की थी. सम्राट स्वयं शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महान कार्य किये थे जिनकी वजह से उन्हें एक महान शासक के नाम से जाना जाता है. 

तक्षशिला के विद्रोह में सम्राट अशोक की परीक्षा 

बिंदुसार ने अशोक को तक्षशिला के विद्रोह को शांत करने के लिए भेजा। बिंदुसार ने उसे हाथी, घोड़े, सेना, रथ तो दिए परंतु, अन्य कोई हथियार नहीं दिये और अशोक ने हथियारों की मांग भी नहीं की। तक्षशिला जाते हुए रास्ते में दैवीय शक्तियों ने अशोक को हथियार प्रदान किए। जब अशोक तक्षशिला पहुंचा तो वहां के लोगों ने उसका स्वागत किया और बताया कि वे राजा के खिलाफ नहीं है बल्कि मंत्रियों के खिलाफ हैं।

उज्जैन का वायसराय और विवाह 

बिंदुसार ने अपने पुत्र अशोक को उज्जैन का वायसराय नियुक्त किया था। उज्जैन से पाटलिपुत्र के रास्ते में विदिशा नाम का एक शहर आता था। जहां पर वह एक बार अशोक आराम करने के मक़सद से रुका था और इसी बीच एक सुंदर लड़की को देख उसके प्रेम में पड़ गया। उस लड़की का नाम देवी था जो व्यापारी की बेटी थी। उसने अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को जन्म दिया। उस समय अशोक की उम्र 20 वर्ष थी। अशोक 14 वर्षों तक उज्जैन का वायसराय रहा था।

अशोक से बना सम्राट अशोक  

सुसिम, बिंदुसार का सबसे प्रिय और ज्येष्ठ पुत्र था जिसने प्रधानमंत्री को भरी सभा में थप्पड़ मार कर अपमानित किया था। इस रूखे व्यवहार से, प्रधानमंत्री ने सुसिम को एक अयोग्य राजा मान लिया था और अशोक को राजा बनाने के लिए उन्होंने 500 मंत्रियों का एक समूह बनाया।

जब अशोक उज्जैन का वायसराय था तब एक बार फिर तक्षशिला में विद्रोह पनप उठा था। जिसे दबाने के लिए बिंदुसार ने ना चाहते हुए अपने प्रिय ज्येष्ठ पुत्र सुसिम को भेजा। उसके जाने के बाद बिंदुसार का स्वास्थ्य कमजोर हो गया। उसी समय अशोक उज्जैन से पाटलिपुत्र आ गया था । बिंदुसार अपने प्रिय पुत्र सुसिम को राजा बनाना चाहता था तो अपनी स्थिति को देखते हुए उसने अशोक को तक्षशिला जाने और सुसिम को वापस बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों ने बताया कि अशोक भी बीमार पड़ गया है तो वह तक्षशिला नहीं जा पाएगा। सुसिम की अनुपस्थिति में मंत्रियों ने अशोक को सम्राट बनाने का प्रस्ताव रखा परंतु बिंदुसार ने मना कर दिया। कुछ दिनों बाद बिंदुसार का स्वास्थ्य और खराब हो गया था और उसकी मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद, अशोक ने अपने अन्य भाइयों का कत्ल कर दिया और खुद को मौर्य साम्राज्य का सम्राट घोषित कर दिया। हालांकि, सुसिम को जब यह बात पता चली तो वे पाटलिपुत्र की ओर रवाना हुआ। परंतु, उसे रास्ते में ही प्रधानमंत्री राधागुप्त ने मरवा दिया। 

इस तरह, अशोक ने अपने सगे भाई विताशोका को छोड़कर अन्य 99 भाइयों का कत्ल करके मौर्य साम्राज्य के शासन पर अधिकार कर लिया।

शासनकाल

268 ईसा पूर्व के मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने अपने मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने के लिए करीब 8 सालों तक युद्ध लड़ा। इस दौरान सम्राट ने भारत के सभी उपमहाद्धीपों तक मौर्य सम्राज्य का विस्तार किया, उत्तर से हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी तक और पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में इराक और अफगानिस्तान तक अशोक का राज्य विस्तार था। सम्राट अशोक का राज्य वर्तमान के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और ईराक तक विस्तृत था। इस तरह सम्राट अशोक का शासन धीरे-धीरे बढ़ता ही चला गया और उनका साम्राज्य उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य बन गया।उनके साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (मगध, आज का बिहार) और साथ ही उपराजधानी तक्षशिला और उज्जैन भी थी। वर्तमान कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ही ऐसे राज्य थे जो अशोक के शासन में नहीं थे। मौर्य वंश में 40 साल के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सम्राट अशोक ही एक मात्र शासक थे।  

कलिंगयुद्ध 

261 ईसापूर्व  में सम्राट अशोक ने अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार करने के लिए अपने राज्याभिषेक के 7 वे वर्ष ही कलिंग (वर्तमान ओडिशा) राज्य पर आक्रमण कर दिया । सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख के अनुसार इस भीषण युद्ध में में दोनों तरफ से करीब 1 लाख लोगो की मौत हुई थी और डेढ़ लाख से ज्यादा लोग घायल हुए थे साथ ही युद्ध में शामिल हजारों जानवर भी मारे गए थे । इस तरह सम्राट अशोक कलिंग पर अपना कब्जा जमाने वाले मौर्य वंश के सबसे पहले शासक तो बन गए, लेकिन इस युद्ध के रक्तपात को देख काफी दुखी हुए।कलिंग में हुए विध्वंशकारी युद्ध में कई सैनिक, महिलाएं और मासूम बच्चों की मौत एवं रोते-बिलखते घर परिवार देख सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया। इसके बाद सम्राट अशोक ने सोचा कि यह सब लालच का दुष्परिणाम है और उसने शपथ ली कि आने वाले समय में कभी युद्ध नहीं करेगा।इसके उपरांत सम्राट अशोक ने अपने राज्य में सामाजिक और धार्मिक प्रचार करना आरम्भ कर दिया।कलिंग युद्ध अशोक के जीवन का आखरी युद्ध था, जिससे उनका जीवन ही बदल गया था।

हृदय परिवर्तन एवं बौद्ध धर्म 

263 ईसा पूर्व में मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक ने धर्म परिवर्तन का मन बना लिया था। अशोक ने बौद्ध धर्म के लोगों को एक बार अपने महल में बुलाया। उसने महल में आये हुए सभी लोगों से एक प्रश्न दिया। परंतु उनमें से कोई भी उस प्रश्न का जवाब नहीं दे सका। अशोक ने निगोराधा नाम के बौद्ध सन्यासी को देखा जो असल में उसी का भतीजा था परंतु उसे पता नहीं था। उसे विद्या सीखाने के लिए अशोक ने उसको कहा। परंतु, निगोराधा ने कुछ धनराशि की मांग की। अशोक ने उसे 4 लाख सिल्वर के सिक्के और रोजाना 8 चावलों के अंश दिए। सम्राट अब बौद्ध उपासक बन गया। इसके बाद, वह एक “मोग्गलीपुत्तातिस्सा” नाम के एक बौद्ध शिक्षक से मिला। उसने “मोग्गलीपुत्तातिस्सा” से बहुत सारी ज्ञान की बातें व बौद्ध धर्म के बारे में जाना। उन से प्रभावित होकर उसने अपने आप को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया एवं ईमानदारी, सच्चाई एवं शांति के पथ पर चलने की सीख के साथ-साथ वे अहिंसा के पुजारी हो गये। मौर्य साम्राज्य के सभी लोगों को अहिंसा और समाजसेवा के मार्ग अपनाने की सलाह दी । ब्राह्मणों को खुलकर दान देने के साथ-साथ जरूरतमंदों के इलाज के लिए अस्पताल खोला एवं सड़कों का निर्माण करवाया। हृदय परिवर्तन के बाद सम्राट अशोक ने पूरे एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इसके लिए उन्होंने कई धर्म ग्रंथों का सहारा लिया। इस दौरान सम्राट अशोक ने दक्षिण एशिया एवं मध्य एशिया में भगवान बुद्ध के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए करीब 84 हजार स्तूपों का निर्माण भी कराया।हर एक स्तूप  में भगवान बुद्ध के अवशेषों को सोने, चांदी के बक्सों में रखा गया। इन स्तूपों को उन शहरों में बनवाया गया जिनकी जनसंख्या एक लाख से ज्यादा थी। इन स्तूपों व विहारों के साथ ही उसने बहुत सारे मंदिरों का भी निर्माण करवाया।

सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गये मठ और स्तूप राजस्थान के बैराठ में मिलते हैं । वाराणसी के पास स्थित सारनाथ एवं मध्य प्रदेश का सांची स्तूप काफी मशहूर है जहां आज भी भगवान बुद्ध के अवशेषों को देखा जा सकता है। बुद्ध का प्रचार करने हेतु उन्होंने अपने राज्य में जगह-जगह पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की। बौध्द धर्म को सम्राट अशोक ने विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई।

बौध्द धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा तक को भिक्षु-भिक्षुणी के रूप में अशोक ने भारत के बाहर, नेपाल, अफगानिस्तान, मिस्त्र, सीरिया, यूनान, श्रीलंका आदि में भेजा। वहीं बौद्ध धर्म के प्रचारक के रुप में सबसे ज्यादा सफलता उनके बेटे महेन्द्र को मिली, महेन्द्र ने श्री लंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म के उपदेशों के बारे में बताया, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना दिया।अशोक से प्रेरित हो कर तिस्स ने उन्हें ‘देवनामप्रिय’ की उपाधि दी थी ।यही नहीं उन्होंने नेपाल में बुद्ध के जन्मस्थल लुम्बिनी में स्मारक के रुप में अशोक स्तंभ का निर्माण भी  करवाया था। नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौध्द धर्म के संदेश अंकित थे।सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को लेकर 20 विश्वविद्यालयों की नींव रखी।

मृत्यु 

सम्राट अशोक ने करीब 40 सालों तक मौर्य वंश का शासन संभाला। करीब 232 ईसा पूर्व के आसपास उनकी मौत पाटलिपुत्र में हुई थी । मृत्यु के समय उसकी उम्र 71-72 वर्ष थी। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य वंश का सम्राज्य करीब 50 सालों तक चला।

सम्राट अशोक के सामाजिक कार्य 

सम्राट अशोक ने अपने सिद्धांतों को धम्म नाम दिया था। एक बार सम्राट अशोक बोधि वृक्ष की यात्रा पर गये। वहाँ से आने के बाद धम्मका विस्तार करना शुरू किया। अशोक ने सामाजिक कार्यों में लोगों की भलाई के लिए कुछ नियम बनाए थे जिन्हें धम्म कहा जाता है। 

धम्मके नियम 

  1. कोई भी जीव किसी भी जीव की हत्या नहीं करेगा।
  2. पेड़ पौधे लगाना, कुओं व विश्राम ग्रहों का निर्माण करवाना।
  3. शाही रसोई घर में जीव हत्या पर अंकुश।
  4. इंसानों व पशुओं के लिए औषधि की  सुविधा।
  5. माता-पिता के आदेशों का पालन करना ।
  6. गरीब व वृद्ध लोगों के लिए अलग से सहायता।
  7. सभी के साथ भलाई का कार्य करना।

मनुष्य और पशुओं के इलाज के लिए औषधियों व अस्पतालों का निर्माण करवाया गया। हर गांव व शहर में पीने के पानी, भोज्य पदार्थों का इंतजाम किया गया। राहगीर को कोई भी परेशानी न हो इसलिए हर सड़क के पास कुओं व आश्रयों का निर्माण किया गया। 

उसने संन्यासियों को बड़े स्तर पर भोजन व आवास प्रदान करना शुरू कर दिया। अब बहुत सारे नकली संन्यासी भी असली संन्यासियों के संग में जुड़ने लग गए। असली संन्यासियों ने नकली संन्यासियों के साथ रहने से इनकार कर दिया जिसके कारण 7 वर्षों तक उपोस्थ पर्व आयोजित नहीं किया गया। 

एक महान व्यक्तित्व 

सम्राट अशोक ने अपने-आप को कुशल प्रशासक सिद्ध करते हुए बेहद कम समय में ही अपने राज्य में शांति स्थापित की। उनके शासनकाल में देश ने विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की। उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा अहिंसा और सच्चाई के मार्ग पर चलने लगी। चोरी और लूटपाट की घटनाएं बिलकुल ही नहीं होती थी ।  सम्राट अशोक दिन-रात जनता की भलाई के लिए काम  किया करते थे। उन्हें विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी। सम्राट प्रतिदिन एक हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात ही खाते थे। 

ऐतिहासिक धरोहरअशोक चक्रएवंत्रिमूर्ति’  

भारत का राष्ट्रीय चिह्न “अशोक चक्र” तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही देन है। ये कृतियां अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं। सम्राट अशोक का अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है, हमें भारतीय गणराज्य के तिरंगे के बीच में भी दिखाई देनेवाला चक्र भी सम्राट अशोक के इस धर्म चक्र से प्रेरित है। ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौध्द स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामूर्तियों की प्रतिकृति है।

शिलालेख

भारत के महान शासक सम्राट अशोक मौर्य ने अपने जीवन में कई निर्माण कार्य कराए थे. सम्राट अशोक ने अपने जीवन में कई शिलालेख भी खुदवाये जिन्हें इतिहास में सम्राट अशोक के शिलालेखों के नाम से जाना जाता है. मौर्य वंश की पूरी जानकारी उनके द्वारा स्थापित इन्ही मौर्य वंश के शिलालेखों में मिलती है। सम्राट अशोक ने इन शिलालेखो को ईरानी शासक की प्रेरणा से खुदवाए थे. सम्राट अशोक के जीवनकाल के करीब 40 शिलालेख इतिहासकारों को मिले हैं जिसमे से कुछ शिलालेख तो भारत के बाहर जैसे अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, वर्तमान बांग्लादेश व पाकिस्तान इत्यादि देशों में मिले हैं. भारत में मौजूद सम्राट अशोक के शिलालेख एवं उनके नाम निम्नलिखित हैं –

शिलालेखस्थान
रूपनाथजबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश
बैराटराजस्थान के जयपुर ज़िले में, यह शिला फलक कलकत्ता संग्रहालय में भी है।
मस्कीरायचूर ज़िला, कर्नाटक
येर्रागुडीकर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
जौगढ़गंजाम जिला, उड़ीसा
धौलीपुरी जिला, उड़ीसा
गुजर्रादतिया ज़िला, मध्य प्रदेश
राजुलमंडगिरिबल्लारी ज़िला, कर्नाटक
गाधीमठरायचूर ज़िला, कर्नाटक
ब्रह्मगिरिचित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
पल्किगुंडुगवीमट के पास, रायचूर, कर्नाटक
सहसरामशाहाबाद ज़िला, बिहार
सिद्धपुरचित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
जटिंगा रामेश्वरचित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
येर्रागुडीकर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
अहरौरामिर्ज़ापुर ज़िला, उत्तर प्रदेश
दिल्लीअमर कॉलोनी, दिल्ली
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