Sunday, June 16, 2024
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बढ़ती गर्मी, सूखते जल स्रोतों पर अंकुश के लिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी

संपूर्ण देश के भूगर्भ जल स्रोत नीचे की ओर चलते चले जा रहे हैं। आग बरसाती गर्मी, भूगर्भ जल स्तर का नीचे जाना, इन दोनों का संबंध सीधे तौर पर देश की बढ़ती जनसंख्या से जुड़ी हुई है।

आग बरसाती गर्मी, सूखते जल स्रोतों पर अंकुश के लिए बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण बहुत ही जरूरी हो गया है। अगर समय रहते इन तीनों पर अंकुश नहीं लगाया गया तब इसके परिणाम और भी भयावह होते चले जाएंगे। देश की राजधानी दिल्ली सहित सभी प्रांतों के तापमान में लगातार काफी वृद्धि हो रही है । यह भीषण गर्मी निरंतर बढ़ती चली जा रही है । भीषण गर्मी के कारण कई जाने जा रही है। कई लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ रहे है। लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है। गर्मी के दिनों में लोगों को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। ऐसे समय में लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। संपूर्ण देश के भूगर्भ जल स्रोत नीचे की ओर चलते चले जा रहे हैं। आग बरसाती गर्मी, भूगर्भ जल स्तर का नीचे जाना, इन दोनों का संबंध सीधे तौर पर देश की बढ़ती जनसंख्या से जुड़ी हुई है। सच्चे अर्थों में ये सारी परेशानियां जनसंख्या वृद्धि के कारण लगातार बढ़ती चली जा रही है। यहां यह लिखना जरूरी हो जाता है कि अगर देश की जनसंख्या कम होती तब जंगलों की इतनी अवैध कतई नहीं होती। प्राकृतिक संसाधनों का इतना दोहन नहीं होता । गर्मी पड़ती, लेकिन गर्मी नियंत्रण में होती है । जल स्रोतों के सूखने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती।
प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र, नई दिल्ली ने एक रिपोर्ट जारी किया है, जिसमें दर्ज है कि दिल्ली सहित पूरे देश के लिए बरसाती गर्मी एक भयावह स्थिति पैदा करती चली जा रही है। यह सब कुछ जंगलों की धड़ल्ले से हो रही कटाई के परिणाम हैं। देश की बढ़ती जनसंख्या के निर्वाह के लिए प्राकृतिक संसाधनों का जबरदस्त दोहन के कारण हो रहा है। यह भीषण गर्मी और जल स्रोतों का सूखना उसी के परिणाम है।
मेरी दृष्टि में आग बरसाती गर्मी के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं । कहीं न कहीं हम सबों से ही यह पर्यावरणीय भूल हो रही है । हम सब जानकर भी अंजान बने हुए हैं। हम सबों ने जंगलों को काट कर कंक्रीट के मकान जरूर बना लिए हैं । मकान में सारी सुविधाएं कर लिए हैं। देश के कुछ चुनिंदा लोगों ने अपने लिए कमरे और गाड़ियों में ए.सी. लगा लिया हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसी व्यवस्था से खुद को भीषण गर्मी से निजात पा सकते हैं ? इसका एक ही जवाब है , कदापि नहीं । मौसम परिवर्तन की मार से बच नहीं सकते हैं। हम चाहे कितने ए.सी.अपने कमरे में लगवा लें । फिर भी आग बरसाती गर्मी के इफेक्ट से नहीं बच सकते हैं। ए.सी.का लाभ कुछ घंटे तक ही लें सकते हैं। यह एक अस्थाई व्यवस्था है ।
भीषण गर्मी और भीषण लू के बढ़ते प्रभाव पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है । हम सब इस भीषण गर्मी को कैसे कम कर सकते हैं‌ ? बहुत तेजी से सुख रहे जल स्रोतों की गति कैसे धीमी कर सकते हैं ? देश में लोकसभा के चुनाव चल रहा है। यह विषय चुनावी मुद्दा होना चाहिए। लेकिन पक्ष और विपक्ष दोनों के नेताओं ने एक पंक्ति भी इस गंभीर विषय पर नहीं बोला। और न ही जनता द्वारा इस तरह के सवाल उठाने की मांग की जा रही है।
हमारे नेता गण ए.सी.घर में रहते हैं । ए.सी कार पर में चलते हैं। उनसे मेरा सीधा सवाल है कि शेष देश के लोग तपती गर्मी में काम करने के लिए किस छांव में जाकर आश्रय लें ? हम सबों ने पहले ही अपनी सुख सुविधा के लिए पेड़ पौधों को काटकर रेगिस्तान बना दिया है । आज देश भर के करोड़ों मजदूर भीषण गर्मी में काम करने के लिए मजबूर है। ‌ इन मजदूरों की आवाज सुनेगा कौन ?
1947 में जब देश को आजादी मिली थी, हमारी आबादी लगभग 32 करोड़ थी। आज देश की आबादी बढ़कर 140 करोड़ के आसपास पहुंच गई है । हमारे पास जमीन उतने ही हैं । संसाधन भी सीमित ही हैं। लेकिन हमारी आबादी बेतहाशा बढ़ती चली जा रही है इसलिए जरूरी है कि सबसे पहले देश की बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण लगाई जाय। जहां तक हमारी आबादी पहुंच गई है, इससे अधिक आगे नहीं बढ़े । इस पर ध्यान देने की जरूरत है । अगर ऐसा नहीं होता है, तब हम सब लाख कोशिशें कर लें, आग बरसाती गर्मी से निजात नहीं पा सकते हैं। जल स्रोतों को सूखने से नहीं बचाया जा सकता। क्या हम सब आने वाली पीढ़ी को आग बरसाती गर्मी और बूंद बूंद पानी के लिए तरसते भयावह भविष्य छोड़ जाएंगे ? देश में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बहुत पहले बन जाना चाहिए था। नरेंद्र मोदी की सरकार जब भी जनसंख्या नियंत्रण पर बात शुरू करती है, देश भर में विपक्षी पार्टियों का जमकर विरोध होना शुरू हो जाता है। सच्चे अर्थों में जनसंख्या नियंत्रण पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए बल्कि पक्ष – विपक्ष दोनों को इस विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार कर जनसंख्या नियंत्रण पर एक कड़ा कानून लाना चाहिए।
जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबध हमारे संसाधनों से है। हमारी जनसंख्या जितनी बढ़ेगी, उनके लिए भोजन,आवास एवं अन्य सामग्रियों की जरूरत पड़ेगी । मनुष्य के जीवन निर्वाह की ये सामग्रीय हम सबों को खेत, खलिहानों, जंगलों और भूगर्भ से प्राप्त होती है। तब खेत, खलिहानों, जंगलों और भूगर्भ की रक्षा की जवाबदेही पर है ?
विकास के नाम पर जंगलों की कटाई बहुत ही तीव्र गति से हो रही है । सड़कों के निर्माण के लिए बेतहाशा जंगल काटे जा रहे हैं। ‌ इस संबंध में केंद्र सरकार के वन मंत्रालय ने आश्वासन दिया था कि सड़क निर्माण में जितने जंगल कट रहे हैं, उसी अनुपात में पौधे लगाए जाएंगे । वन विभाग का यह आश्वासन कागजी ही साबित हुआ हैं। इस समस्या का बस एक ही समाधान है, सबसे पहले देश की बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाई जाए । जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक कानून बनाया जाए। विकास के नाम पर जो जंगलों की अवैध कटाई हो रही है,उस पर तत्काल रोक लगाई जाए । जंगल फिर से लगाया जाएं । कंक्रीट के बने घरों में छोटे-छोटे पौधे कैसे लगाए जाएं । इसकी तकनीक हम सबों को विकसित देशों से लेनी चाहिए । विकसित देशों में बने घरों में बहुत ही शानदार तरीके से छोटे-छोटे पौधे घर के अंदर और बाहर भी लगे मिलते हैं, जो देखने में भी सुंदर होते हैं, और हमारे पर्यावरण को भी बेहतर बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं।
यहां यह लिखना जरूरी हो जाता है कि केंद्र सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपए वन रोपण में खर्च करती है । लेकिन इस खर्चे का आउटपुट क्या उभर कर सामने आता है ? इस पर केन्द्र सरकार को ध्यान देने की जरूरत है । वृक्षारोपण के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के पॉकेट में चले जाते हैं। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है
जंगलों पर हमारी निर्भरता कम से कम हो, इस विषय पर ध्यान देने की जरूरत है । देश के जितने भी पहाड़ बचें हैं, सभी यथावत रहें, ऐसी योजना बनाई जाए। जंगलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। कड़े कानून बनाने की जरूरत है।
आग बरसाती गर्मी भविष्य की गंभीर चेतावनी की ओर इशारा कर रही है। मैं पूर्व में दर्ज कर चुका हूं कि गर्मी से आम जनजीवन परेशान हैं ही वहीं दूसरी ओर देश में पीने के पानी की जबरदस्त की किल्लत भी देखी जा रही है।‌ झारखंड प्रांत के हजारीबाग, चतरा, लातेहार ,गढ़वा, डाल्टनगंज, पलामू आदि जिलों में पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है । एक ओर भीषण गर्मी है, दूसरी ओर पीने के पानी की बेहद किल्लत है। हाल के बर्षों में दूध 15 रूपए लीटर मिला करते थे । आज इसी झारखंड में 20 रूपए लीटर पीने के पानी के बोतल बिक रहे हैं। एक दिन अगर नगर पालिका / नगर निकाय द्वारा पानी की सप्लाई किसी कारण वश रूक जाती है,तब हाहाकार मच जाता है। यह सब बढ़ी जनसंख्या के परिणाम है। इसलिए मैं, प्रस्तुत आलेख के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री सहित पक्ष और विपक्ष के तमाम नेताओं से आग्रह करता हूं कि जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने पर गंभीरता पूर्वक विचार करें। शीघ्र ही जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाएं। । ताकि प्राकृतिक संसाधन जो हमारे जीवन के आधार हैं, उसे संरक्षित किया जा सके।

Vijay Keshari
Vijay Kesharihttp://www.deshpatra.com
हज़ारीबाग़ के निवासी विजय केसरी की पहचान एक प्रतिष्ठित कथाकार / स्तंभकार के रूप में है। समाजसेवा के साथ साथ साहित्यिक योगदान और अपनी समीक्षात्मक पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं।
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