उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के फुलराई गांव में दो जुलाई को एक सत्संग कार्यक्रम के समामन के बाद मची भगदड़ में एक सौ पचास से अधिक लोगों की कुचल कर मौत हो गई। इस हृदय विदारक घटना में हजारों की संख्या में लोग घायल हो गएं। सैकड़ो की संख्या में लोग गंभीर अवस्था में विभिन्न अस्पतालों में इलाज रत हैं। जैसे ही यह हृदय विदारक घटना की खबर टेलीविजन पर आई, सारा देश स्तब्ध रह गया। मंगलवार को जब यह घटना घटी थी, तब देश का संसद चल रहा था। यह घटना इतनी गंभीर थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीच में अपनी बातों को रोक कर इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त करना पड़ा था। हाथरस हादसा के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल पर राज्य के उच्चाधिकारियों की एक टीम और मंत्री को भेज दिया । राज्य के उच्चाधिकारियों की एक टीम और मंत्री के वहां पहुंचने के पूर्व ही सत्संग कार्यक्रम के समापन के बाद मची भगदड़ में सैकड़ो जाने जा चुकी थी । बस ! मृतकों का पोस्टमार्टम होना बाकी था। असल सवाल यह है कि सत्संग कार्यक्रम से पूर्व राज्य सरकार अथवा जिला प्रशासन मौन क्यों थे ? अगर राज्य सरकार पूर्व से ही सक्रिय होती तब शायद इतनी बड़ी हृदय विदारक घटना जन्म ही न ले पाती।
इस भगदड़ में सैकड़ो की संख्या में लोग घायल हो गए। जिन्हें अस्पतालों तक पहुंचाया गया। जिसमें कई घायल बीच में ही दम तोड़ दिए। घायलों को अस्पतालों में भारती करने के लिए बेड कम पड़ गए। स्ट्रेचर भी कम पड़ गए । ऐसी अवस्था में घायल मरीजों को चिकित्सकीय सुविधा प्राप्त करने में कितनी दिक्कत हुई होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य सरकार के पहल पर कई मरीजों का इलाज निजी अस्पतालों में चल रहा है।
हाथरस जिले के फुलराई गांव में जहां साकार हरि बाबा का एक दिवसीय सत्संग कार्यक्रम चल रहा था। सत्संग कार्यक्रम समापन के बाद ही यह घटना घाटी थी। अगर इस सत्संग कार्यक्रम के आयोजक मंडल के सदस्य गण और जिला प्रशासन श्रद्धालुओं की जुटी भीड़ के प्रति चौकस रहते, तब शायद इतनी बड़ी घटना घटती ही नहीं । आयोजक मंडल का यह कहना कि हाथरस के एसडीएम को अस्सी हजार श्रद्धालुओं के जुटने की सूचना दी गई थी। इस आवेदन पर हाथरस के एसडीएम ने सत्संग करने की अनुमति भी दी थी । तेरह वर्ष पूर्व भी फुलराई गांव में साकार हरि बाबा का सत्संग कार्यक्रम हुआ था, जिसमें भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटे थे। तब हाथरस के एसडीएम ने सत्संग कार्यक्रम के लिए चुस्त सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं की ? इस विषय पर भी योगी सरकार को विचार करने की जरूरत है।
हाथरस हादसा के बाद सत्संग आयोजन मंडल का यह कहना कि इस घटना के लिए आयोजन मंडल के सदस्य गण जिम्मेवार नहीं है। उनका यह कहना पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना लगता है। आयोजन मंडल का यह कहना कि बारह हजार के लगभग सेवादारों को श्रद्धालुओं की भीड़ को संचालित करने के लिए लगाया गया था। अगर सत्संग आयोजन मंडल के बारह हजार सेवादार ईमानदारी पूर्वक ड्यूटी में लगे होते, तब शायद इतनी बड़ी घटना घटती ही नहीं। आयोजन मंडल को यह पूर्व में ही विचार करना चाहिए था कि देश में कितनी भीषण गर्मी पड़ रही है । इतनी भीषण गर्मी में क्यों सवा लाख श्रद्धालुओं को यहां बुलाकर एक दिवसीय सत्संग कार्यक्रम करने का निर्णय लिया । गर्मी पूरी तरह बीत जाती तब ऐसे आयोजन करने का निर्णय लेते। अगर आयोजन मंडल ने सवा लाख श्रद्धालुओं को बुलाकर सत्संग करने का निर्णय लिया, तब उस अनुकूल व्यवस्था क्यों नहीं किया ? इस तरह के अनगिनत सवाल उठ रहे हैं, जिसका जवाब सत्संग आयोजन मंडल को देना होगा।
हाथरस हादसा रिपोर्ट यह बताता है कि सत्संग के दौरान गर्मी के कारण सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु स्त्री, पुरुष और बच्चें बेहोश हो गए थे। उन सबों के प्राथमिक इलाज तक की कोई बेहतर व्यवस्था आयोजन स्थल पर नहीं की गई थी। गर्मी से बेहोश हो रहे लोगों को निकट के अस्पतालों में भारती भी किया गया। आयोजन मंडल के सदस्य गण इस घटना की नैतिक जवाब देही से बच नहीं सकते हैं । वहीं दूसरी ओर यह भी सवाल खड़ा होता है कि जब हाथरस के जिला प्रशासन को यह जानकारी थी कि हाथरस के फुलराई गांव में होने वाले सत्संग में एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं की जुटने की संभावना है । तब जिला प्रशासन ने इन श्रद्धालुओं की सुरक्षा में इतनी लापरवाही क्यों बरती ? जबकि हाथरस के जिला प्रशासन की नैतिक जवाब देही बनती थी कि फुलराई गांव में सत्संग के दौरान पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था प्रदान की जाए। साथ ही यातायात व्यवस्था को भी पूरी तरह निरंतर में रखी जाए। इसके साथ ही श्रद्धालुओं के लिए चिकित्सा और एंबुलेंस आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए थी। लेकिन जिला प्रशासन ने अपनी जवाब देही को सत्संग आयोजन मंडल के सेवादारों के जिम्मे में छोड़ दिया गया। यह हाथरस के जिला प्रशासन से एक एक बड़ी भूल हुई , जिसका प्रतिफल यह हुआ कि इतनी बड़ी घटना घट गई।
सत्संग के बाद मची भगदड़ के संदर्भ में यह जानकारी मिली कि साकार हरि बाबा के जाने के तुरंत बाद, बाबा के चरण धूल लेने और गर्मी से निजात पाने के लिए वहां से जल्द से जल्द निकलना चाहते थे। इस निकलने की कोशिश के चलते ही भगदड़ मच गई थी। मंगलवार को हल्की बारिश भी हुई थी। इस कारण आने जाने के रास्ते में कहीं कहीं कीचड़ बन गया था । निकलने के दरमियान कुछ लोग उस कीचड़ में गिर गए। भीड़ इतनी अधिक थी कि जल्दी निकलने के क्रम में कई श्रद्धालु नीचे गिर गए। नीचे गिरे श्रद्धालुओं को उठाने के बजाय लोग उस पर ही चढ़कर निकलने लगे। अगर सेवादार और पुलिस की संयुक्त रूप से चुस्त सुरक्षा व्यवस्था होती, तब शायद इतनी बड़ी घटना नहीं घाट पाती । विचारणीय यह है कि जिस पल यह घटना घटी होगी, वह पल कितना दर्दनाक रहा होगा ? जो श्रद्धालू मानव सेवा की सीख ले रहे थे ,आज उनके ही पैरों तले मानव कुचले जा रहे थे। जमीन पर गिरे श्रद्धालु अपनी जान बचाने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे। नीचे तब रहे बच्चें, महिलाएं, बूढ़े और युवा जिंदगी की भीख मांग रहे थे। लेकिन श्रद्धालुओं के पैर उनको रौंदते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे ।
हाथरस हादसा से देश के सभी राज्य सरकारों को सबक लेने की जरूरत है। भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां विभिन्न धर्म, पंथ और विचार के लोग एक साथ रहते हैं। हर दिन देश के किसी न किसी हिस्से में सत्संग व धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। इन कार्यक्रमों में हजारों – लाखों की संख्या में लोग जुड़ते रहते हैं। आयोजन मंडल और राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि आयोजित होने वाले कार्यक्रम में कितनी संख्या में श्रद्धालु जुटेंगे ? संख्या के अनुकूल आयोजन स्थल पर बैठने की कितनी जगह है ? श्रद्धालुओं के लिए आने-जाने का मार्ग सुगम होना चाहिए। आयोजन स्थल पर बने पंडाल में अग्नि विरोधी सुरक्षा का होना हर हाल में अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है । साथ ही एंबुलेंस सहित चलंत अस्पताल की भी व्यवस्था करने की जरूरत है। पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल का भी होना जरूरी है । ताकि श्रद्धालुओं के लिए आने-जाने में कोई दिक्कत न हो । अगर ऐसी व्यवस्था होती है, तभी हाथरस जैसी घटना अस्तित्व में नहीं आ पाएगी।
हाथरस में भगदड़ में मारे गए लोगों के लिए राज्य सरकार ने दो-दो लाख रुपए दिए जाने की घोषणा की हैं। वहीं दूसरी ओर घायलों को पचास हजार देने की घोषणा की हैं। केंद्र सरकार ने भी अपनी ओर से मृतकों को दो-दो लाख रुपए देने की घोषणा की है। रुपए तो मृतकों के परिवारों को मिल जाएंगे। क्या इन रूपयों से पीड़ित परिवार इस विपत्ति से सामना कर पाएंगे ? जैसे कि जानकारी मिली है कि साकार हरि बाबा के सत्संग में गरीब, दलित, वंचित वर्ग के ही लोग ज्यादे संख्या में शामिल होते रहे हैं। इस वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर नहीं है । जिस पीड़ित परिवार में कमाने वाला एक और खाने वाला आठ दस होगा । ऐसे परिवार के लोगों की जान चली गई होगी, तब ऐसे परिवारों का पालन पोषण कैसे होगा ? इस विषय पर उत्तर प्रदेश सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
आयोजन मंडल ने यह स्पष्ट कर दिया कि इस घटना के लिए आयोजन मंडल और उनके सेवादार जवाब देह नहीं है। हाथरस हादसे के लिए राज्य सरकार जवाब देह है । इस तरह के बयान से आयोजन मंडल अपनी नैतिक जवाबदेही से बच नहीं सकते। राज्य सरकार और केंद्र सरकार मृतकों को दो-दो लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए जरूर दे देगी। लेकिन राज्य सरकार और केंद्र सरकार अपनी नैतिक जवाब देही से बच नहीं सकते हैं । उत्तर प्रदेश की सरकार ने एक जांच समिति का भी गठन किया है । जांच समिति शीघ्र ही हाथरस भगदड़ के कारणों का पता लगाकर एक रिपोर्ट सरकार को देगी। इसके साथ ही राज्य सरकार को यह भी जानना चाहिए कि इस भगदड़ में जिन परिवारों के मुखिया की मौत हुई है, उन परिवारों के आश्रितों को सरकारी नौकरी दी जानी चाहिए। ताकि उन परिवारों का भरण पोषण हो सके। सिर्फ दो लाख दे देने से राज्य सरकार अपनी जवाब देही से बच नहीं सकती है।
देशवासियों को कदापि यह नहीं भूलना चाहिए कि 13 अक्टूबर 2013 में मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई थी। इस भगदड़ में सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस तरह की घटनाओं की लंबी सूची है। ऐसे आयोजनों से आए दिन कई लोगों की जान चली जाती है। ऐसी घटनाओं के घटने के बाद राज्य सरकार सक्रिय होती है। बाद में उनकी सक्रियता ढीली क्यों पड़ जाती है ? इस पर भी विचार करने की जरूरत है । हाथरस जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, देश की राज्य सरकारें सुनिश्चित करें।
‘हाथरस हादसा’ से राज्य सरकारों को सबक लेने की जरूरत है
हाथरस हादसा के बाद सत्संग आयोजन मंडल का यह कहना कि इस घटना के लिए आयोजन मंडल के सदस्य गण जिम्मेवार नहीं है। उनका यह कहना पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना लगता है।