Sunday, May 12, 2024
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तालिबान का अफगानिस्तान पर क़ब्ज़ा : विश्व शक्ति बनने की चाह में अमानवीय खेल को शह देना कहीं आत्मघाती न बन जाए।

पूरे विश्व के ताकतवर कहे जाने वाले देश के तथाकथित ताकतवर लोग देखते रह गए और तालिबान ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर एक बार फिर से अफगानिस्तान को अपने क़ब्ज़े में ले लिया।

भारत के मित्र देशों में गिने जाने वाले अफगानिस्तान के बारे में कई पौराण‍िक और ऐतिहासिक मान्यताएं हैं. आज के अफगानिस्तान का मानचित्र 19वीं सदी के अन्त में तय हुआ था. भारत और अफगानिस्तान का संबंध काफी मित्रता और भाईचारे वाला है. भारत ने अफगानिस्तान के साथ कई प्रकार के विकासीय समझौते किए हैं, इसलिए भारत और अफगानिस्तान दोनो एक दूसरे का हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन करते हैं. बता दें क‍ि साल 1919 में अफगानिस्तान ने विदेशी ताकतों से एक बार फिर स्वतंत्रता पाई. आधुनिक काल में 1933-1973 के बीच का समय  यहां का सबसे अधिक व्यवस्थित काल माना जाता रहा है. ये वो वक्त था जब ज़ाहिर शाह का शासन था, पर पहले उसके जीजा और बाद में कम्युनिस्ट पार्टी के सत्तापलट के कारण देश में फिर से अस्थिरता आ गई.

90 के दशक में तालिबान के अमानवीय आतंक के कारण पहली बार अफगानिस्तान पर पूरे विश्व की निगाहें गई। जिसमें अमेरिका ने अपनी दख़ल देकर अफगानिस्तान को 2001 में तालिबानी आतंक से मुक्ति दिलाई, हालाँकि अमेरिका अपने ऊपर हुए हमले के कारण तालिबान को नष्ट करना चाहता था। लेकिन अपने आपको विश्व शक्ति कहने वाला अमेरिका को एक छोटे से देश में आतंकियों पर नियंत्रण पाने में भी पूरी कामयाबी नहीं मिल सकी।लेकिन अमेरिका की इस कोशिस ने अफगानिस्तान के वाशिंदों को कुछ दिनों के लिए अमन की ज़िंदगी दे गया।

लेकिन विश्व शक्ति का ताज को लेकर हुई जंग ने एक बार फिर अफगानिस्तान के वाशिंदों का अमन चैन छीन ले गया। पूरे विश्व के ताकतवर कहे जाने वाले देश के तथाकथित ताकतवर लोग देखते रह गए और तालिबान ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर एक बार फिर से अफगानिस्तान को अपने क़ब्ज़े में ले लिया।तालिबान की दरिंदगी की ऐसी सैकड़ों उदाहरण हैं जिसे सुनकर अमानवीय क्रूरता की हद भी शर्मा जाए।ऐसे में अफगानिस्तान में हो रही घटना पर तमाशबीन बने रहना ख़तरनाक ही नहीं बल्कि आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।क्यूँकि यही तालिबान कल को अपना पैर पसारते हुए पड़ोसी देशों से होकर अन्य देशों में भी पहुँचेगा जो शांति और अमन के लिए कभी भी हितकर नहीं हो सकता।

अमेरिका भले ही यह सोचकर खुश हो रहा होगा की उसके सैनिक भली भाँति वापस लौट रहे हैं और अमेरिका के हथियार भी मनचाहे जगह पर पहुँच चुके हैं।लेकिन शायद अमेरिका अपना पूर्व इतिहास को भूल चुका है । जब ऐसी ही परिस्थिति में अल क़ायदा को अमेरिका के द्वारा बढ़ावा देने के बाद पेंटागन में हुए हमले के रूप में भुगतना पड़ा था।

चीन की चुप्पी भी तालिबान को मौन समर्थन की ओर इशारा कर रही है।हो सकता है कि चीन अपने सहयोगी पाकिस्तान को इस मामले से लाभ मिलता देख खुश हो रहा होगा। लेकिन आज नहीं तो कल चीन को भी तालिबान से नुक़सान ही होगा।

तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़े की ख़बर के बाद चीन ने कूटनीति में व्यवहारिकता और हस्तक्षेप न करने की नीति अपना रहा है. अमेरिका और रूस की तरह चीन ने कभी अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन उसकी सीमा अफ़ग़ानिस्तान के साथ सटी हुई है. ईरान और पाकिस्तान के मुक़ाबले चीन अफ़ग़ानिस्तान के साथ सीमा का छोटा-सा हिस्सा ही साझा करता है, लेकिन रणनीतिक तौर पर ये हिस्सा उसके लिए बेहद अहम है. चीन का शिन्ज़ियांग प्रांत अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से जुड़ा है जिसे चीन ऐसे इलाक़े के रूप में देखता है जो आतंकवाद, कट्टरपंथ और अलगाववाद का केंद्र है. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद वहां की राजनीति में जो खालीपन आया है उसे लेकर चीन को बेहद सतर्क होना चाहिए. चीन की सरकारी मीडिया में हाल में आए संपादकीयों में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान ‘साम्राज्यों के क़ब्रिस्तान की तरह है’ और चीन को चेताया है कि वो अमेरिका और सोवियत संघ के पदचिन्हों पर न चले. ग्लोबल टाइम्स में छपे संपादकीय में कहा गया है, “हम मानते हैं कि चीन अफ़ग़ानिस्तान में अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल सतर्कता के साथ करेगा.” कम समय में चीन अर्थव्यवस्था और व्यापार के मुद्दों को लेकर तालिबान के साथ संबंध बनाना जारी रखेगा और यह आश्वासन चाहेगा कि तालिबान सरकार वीगर मुसलमान समुदाय से जुड़े विद्रोही ताकतों का समर्थन नहीं करेगी. बदले में चीन अफ़ग़ानिस्तान के मसलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा क्योंकि वो मानता है कि “आप अपने देश पर कैसे शासन करते हैं, इससे तब तक हमारा कोई लेना-देना नहीं है, जब तक ‘आतंकवादी’ हमारे दरवाज़े तक न पहुंच जाएं.”

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रभावशाली होने के बाद सबसे ज़्यादा चिंता महिलाओं की स्थिति को लेकर लगाई जा रही है क्योंकि तालिबान कट्टर इस्लाम में यकीन रखते हैं और महिलाओं पर पाबंदियों की हिमायत करते रहे हैं. 20 साल पहले अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में आने के बाद तालिबान ने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगा दी थीं. पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों जगह तालेबान ने या तो इस्लामिक क़ानून के तहत सज़ा लागू करवाई या ख़ुद ही लागू की- जैसे हत्या के दोषियों को सार्वजनिक फाँसी, चोरी के दोषियों के हाथ-पैर काटना. पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा गया जबकि स्त्रियों को बुर्क़ा पहनने के लिए कहा गया. तालेबान ने टीवी, सिनेमा और संगीत के प्रति भी कड़ा रवैया अपनाया और 10 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर भी रोक लगाई.

अफगानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद पूरे विश्व में राजनीतिक हलचल:

  1. रविवार को राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के देश छोड़ कर भागने के बाद तालिबान ने राजधानी काबुल पर कब्ज़ा कर लिया था.
  2. भारत ने काबुल में अपने राजदूत और दूतावास कर्मचारियों को वापस बुलाने का फ़ैसला किया है.
  3. काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के एक दिन बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को बाहर निकालने के अपने फ़ैसले का समर्थन किया है.
  4. बाइडन ने चेतावनी दी है कि यदि तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों पर हमला किया तो अमेरिका ‘पूरी विध्वंसक शक्ति के साथ अपने लोगों की रक्षा करेगा.’
  5. अमेरिकी सेना के काबुल हवाई अड्डे का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के बाद वहां से उड़ानों को दोबारा चालू किया गया.
  6. काबुल हवाई अड्डे पर कल पूरे दिन अफ़रातफ़री का माहौल रहा. अफ़ग़ानिस्तान छोड़ना चाह रहे हज़ारों लोग हवाई अड्डे पहुंचे.
  7. अफ़ग़ानिस्तान में फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए अमेरिका ने 1,000 अतिरिक्त सैनिक वहां भेजे.
  8. 60 से अधिक देशों ने एक साझा बयान जारी कर तालिबान से आम लोगों को नुक़सान न पहुंचाने की अपील की है और कहा है कि जो लोग जाना चाहें उन्हें सुरक्षित जाने दिया जाए.

अफगानिस्तान से जल्द से जल्द निकलना चाहते हैं वहाँ के लोग :

  1. काबुल में तालिबान के कब्ज़े के बाद वहां से निकलने की कोशिश में हज़ारों लोग काबुल हवाई अड्डे पहुंचे. इस कारण वहां भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई. मिल रही रिपोर्टों के अनुसर हवाई अड्डे पर पांच लोगों की मौत भगदड़ मचने के कारण हुई है.
  2. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदा हालातों को देखते हुए काबुल में मौजूद भारतीय राजदूत और दूतावास कर्मचारियों को तुरंत भारत वापस लाने का फ़ैसला किया गया है.
  3. अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने नागरिकों को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने के लिए अपने विशेष सैन्य दस्ते भेजे हैं. ब्रिटेन में 200 सैनिक और अमेरिका ने 1,000 अतिरिक्त सैनिक अफ़ग़ानिस्तान के लिए रवाना किए हैं.
  4. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के फ़ैसले का समर्थन किया और माना कि अफ़ग़ानिस्तान में स्थिति जितनी उम्मीद थी उससे कहीं अधिक तेज़ी से पलटी है.
  5. काबुल हवाई अड्डे से जाने वाली सभी उड़ानों को रद्द कर दिया गया था जिसके बाद सोमवार को अमेरिकी सेना ने हवाई अड्डे का नियंत्रण अपने हाथ में लिया और इसे दोबारा चालू किया.
  6. बाइडन ने चेतावनी दी कि यदि तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों पर हमला किया तो अमेरिका ‘पूरी विध्वंसक शक्ति के साथ अपने लोगों की रक्षा करेगा.’ बाइडन ने कहा है कि अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान की मदद करना जारी रखेगा और हिंसा और अस्थिरता न हो इसके लिए प्रांतीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयास जारी रखेगा.
  7. अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिकों का तालिबान के शासन में रहने के अपने ख़ौफ़ के बारे में कई लोगों का कहना है कि वो यहां से जल्द से जल्द बाहर निकलने की कोशिश में हैं. बीते 48 घंटों में सैंकड़ों की संख्या में अफ़ग़ान सुरक्षाबल देश की सीमा पार कर उज़्बेकिस्तान पहुंचे हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक को लेकर पाकिस्तान ने भारत पर लगाए आरोप :

सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर चर्चा के लिए एक विशेष बैठक बुलाई , पाकिस्तान भी इस बैठक में शामिल होना चाहता था मगर उसे रोक दिया गया. जिसे लेकर भारत और पाकिस्तान आमने सामने आ गए हैं. पिछले सप्ताह भी सुरक्षा परिषद ने अफ़ग़ानिस्तान पर आपात बैठक बुलाई थी और उसमें भी पाकिस्तान को आने से रोक दिया गया था. पाकिस्तान इसके लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है क्योंकि भारत अगस्त महीने के लिए सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है.

भारत के अध्यक्षता ग्रहण करने के बाद 10 दिनों के भीतर सुरक्षा परिषद को दूसरी बार अफ़ग़ानिस्तान पर आपात बैठक करनी पड़ी है. भारत ने पाकिस्तान के आरोप पर चुप्पी साधी हुई है लेकिन पाकिस्तान लगातार भारत पर हमले कर रहा है. सोमवार को भी परिषद की बैठक के बाद संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी दूत मुनीर अकरम ने आरोप लगाया कि भारत उन्हें अफ़ग़ानिस्तान पर होने वाली चर्चाओं में शामिल नहीं होने दे रहा. अकरम ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान की एक अहम भूमिका है, मगर भारत जान-बूझकर हमें अफ़ग़ानिस्तान के बारे में नहीं बोलने दे रहा.”

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने भी एक बार फिर भारत की आलोचना की है. क़ुरैशी ने ट्वीट कर लिखा है- “अफ़ग़ानिस्तान की नियति के इस अहम मौक़े पर भारत की पक्षपातपूर्ण और बाधा डालने वाली हरकतें और इस बहुसदस्यीय मंच का बार-बार राजनीतिकरण करना, जिसका मक़सद ही शांति लाना है, ये दिखाता है कि अफ़ग़ानिस्तान और इस क्षेत्र को लेकर उनका इरादा क्या है.”

सुरक्षा परिषद की बैठक में तालिबान से अपील की गई कि वो इस संघर्ष का अंत राजनीतिक हल निकाल कर करे और अफ़ग़ानिस्तान को एक बार फिर चरमपंथियों की पनाहगाह ना बनने दे. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि वहाँ किसी की भी स्वीकार्यता और वैधता के लिए ये ज़रूरी है कि ‘वहाँ एक राजनीतिक समाधान निकले और जो कि महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों का पूरी तरह से समाधान करता हो’.

बैठक में चीन के प्रतिनिधि ने अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा हालत पर चिंता जताई और सदस्य देशों से वहाँ मानवीय आपदा की स्थिति को रोकने की अपील की. चीन के स्थायी प्रतिनिधि ज़ांग जुन ने साथ ही बैठक में पाकिस्तान को शामिल नहीं किए जाने पर अफ़सोस भी प्रकट किया. उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध की समाप्ति केवल अफ़ग़ान लोग ही नहीं चाहते बल्कि ये पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इच्छा है.

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