आलोक पुराणिक
रिजोर्ट, कोर्ट, खरीद-फरोख्त, रेट, ऊपर-नीचे, रेट बढ़ गये, रिट गिर गये, सही रेट लग रहे हैं-यह विमर्श किसी मंडी का लग सकता है, किसी कंपनी के सौदों के विमर्श का लग सकता है।
पर ये सब तो राजनीतिक विमर्श है।
सरोकार, मूल्य, विचारधारा-जी ये विमर्श-बिंदु हुआ करते थे, राजनीति में।
हाहाहाहाहाहा-किस जमाने की बात करते हैं।
विधायक जी कोर्ट गये हैं फिर रिजोर्ट जायेंगे, फिर मोबाइल पर रेट सुनेंगे-टाइप बातें ही पालिटिक्स है। जैसलमेर गये हैं फिर जोधपुर भी जा सकते हैं। पटना भी आ सकते हैं, कलकत्ता भी जा सकते हैं। साधु संत पुराने वक्त में घूमते फिरते रहते थे-चरैवति चरैवति। अब यह काम विधायक कर रहे हैं। एक रिजोर्ट से दूसरे रिजोर्ट, एक पार्टी से दूसरी पार्टी। रिजोर्ट ही राजनीति है। राजनीति ही रिजोर्ट है। रिजोर्ट है, फुल मस्ती है, मौज है। राजनीतिक दलों के पास हर तरह का बल होना चाहिए। कोर्ट बल होना चाहिए, रिजोर्ट बल होना चाहिए। बिन रिजोर्ट सब सून। रिजोर्ट जिस तरह से भारतीय राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आये हैं, उसे देखते हुए लगता है कि भविष्य की राजनीति के सूत्र उसके पास होंगे जिसके पास रिजोर्ट होंगे। हर पार्टी आठ दस रिजोर्टवानों को रखेगी। कब जरुरत पड़ जाये, कहां जरुरत प़ड़ जाये। रिजोर्ट में विधायकों को ले जाना ही काफी नहीं है, उस पर निगाह रखनी पड़ती है। क्या पता कोई बहका कर ले जाये। कोई फुसलाकर ले जाये। विधायक फिसल सकते हैं, फुसलाये जा सकते हैं। विधायक क्या जी पूरा लोकतंत्र ही फुसलाया जा सकता है। उस नेता को जब मैंने वोट दिय़ा था, वह इस पार्टी में था। अब वह इस पार्टी की परम विरोधी पार्टी में है। पर दिल पे ना लें, क्या पता शाम तक वापस घऱ वापसी कर ले, ना ना, घऱ वापसी ना हो रही है इन दिनों। रिजोर्ट वापसी हो रही है। विधायक घऱ पर ना मिल रहे हैं,रिजोर्ट में मिल रहे हैं। लोकतंत्र अद्भुत हो गया है। पब्लिक कोरोना से मर रही है। विधायकजी रिजोर्ट में जमा हैं, अंत्याक्षरी खेल रहे हैं, फिल्म देख रहे हैं। रिजोर्ट में जमा एक विधायक से मैंने पूछा कि घर में क्यों ना रहते, पब्लिक के आदमी हो, पब्लिक से मिलो। विधायक हंसने लगा और बोला-जी हम तो रिजोर्ट के आदमी हैं, कई हफ्तों से यहीं हैं।
विधायकजी कभी पब्लिक में जाते ही नहीं हैं, तो पब्लिक को भी फर्क ना पड़ता है कि कहां हैं विधायकजी। रिजोर्ट में रहो, कोर्ट में रहो, विदेश में रहो, ऐश में रहो। पांच साल में एक बार वोट ले जाओ, और क्या कर सकते हैं विधायकजी।
मुख्यमंत्री विधायकों को संभाल रहा है। विधायक खुद को संभाल रहे हैं। जनता को संभालने के लिए खुद जनता है। जनता ने चुने थे विधायक कि विधानसभा जाकर विधायक उनके मसले हल करेंगे। विधायकों से अपने ही मसले ना हल हो पा रहे हैं, वो कोर्ट-रिजोर्ट जाकर अपने मसले समझ रहे हैं। विधायक अपने मामले समझेगा, जनता अपने मामले समझ ले। कोरोना किसी की समझ में ना आ रहा है। कोरोना से जुड़े आठ दस घपले सामने आ जायें, तो फिर कोरोना की विभीषिका खत्म मान ली जायेगी, फिर अखबार-चैनल सिर्फ कोरोना वैक्सीन खरीद कांड, कोरोना फंड घपला कांड ही बतायेंगे। तब कोरोना का डर खत्म हो जायेगा। कोरोना के घपलों से भारत में कोई ना डरनेवाला, घपलों की बहुत पुरानी आदत है जी।