Monday, May 13, 2024
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झंझावातों को झेलते हुए फर्श से अर्श तक पहुंचे सरफे आलम



रांची। कहते हैं कि ईमानदारी, मेहनत, लगन और सकारात्मक सोच के साथ समाज के लिए कुछ बेहतर करने का जज्बा और जुनून हो, तो मुश्किल राहें भी आसान हो जाती है। इसे सच साबित कर दिखाया है राजधानी रांची के हिंदपीढ़ी निवासी जाने-माने उद्यमी व सामाजिक कार्यकर्ता सरफे आलम ने। उनकी पृष्ठभूमि राजनीतिक और सामाजिक रही है। अपने जीवन में संघर्षों और चुनौतियों का सामना करते हुए सरफे आलम ने जो मुकाम हासिल किया है, वह खासतौर पर युवाओं के लिए अनुकरणीय ही नहीं, बल्कि प्रेरणास्रोत भी है।
सरफे अपनी कर्तव्यनिष्ठा और बुलंद हौसले के बलबूते सफलता की सीढ़ियां-दर- सीढ़ियां चढ़ते गए। अपनी पारिवारिक, व्यावसायिक गतिविधियों का बखूबी निर्वहन करते हुए सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना भी उनकी दिनचर्या में शुमार है। सर्वधर्म-समभाव के सिद्धांतों को आत्मसात कर अपने जीवन पथ पर सफलतापूर्वक अग्रसर होते हुए समाज के सभी वर्ग के लोगों के प्रति वे सहानुभूति रखते हैं।
सरफे आलम की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा राजधानी रांची स्थित गुरुनानक स्कूल से हुई। वहां से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्चात आगे की शिक्षा के लिए दिल्ली का रुख किया। दिल्ली के हंसराज कॉलेज से उन्होंने प्लस टू व स्नातक की डिग्री हासिल की। इस दौरान रांची में रह रहे उनके पिता का देहांत वर्ष 1994 में हो गया। बचपन में पिता का साया उठ जाने से उन्हें काफी सदमा लगा। हालांकि उनके परिजन उन्हें आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहे। स्नातक की डिग्री लेने के बाद सरफे आलम दिल्ली से वापस रांची लौट आए। यहां कंप्यूटर के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का बिजनेस प्रारंभ किया। शुरुआती दौर में उन्हें आर्थिक संकटों का भी सामना करना पड़ा। मात्र 50 हजार रुपए की पूंजी से उन्होंने कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना व्यवसाय आरंभ किया। शहर के अंजुमन प्लाजा काॅमर्शियल काॅम्प्लेक्स में दुकान खोलकर इस क्षेत्र में क़दम रखा। उनकी मेहनत रंग लाई और कंप्यूटर का व्यवसाय फलने-फूलने लगा। धीरे-धीरे व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ने से उन्होंने राजधानी के मेन रोड पर अवस्थित मखीजा टावर में इन्फोटेक कंप्यूटर सिस्टम नामक एक प्रतिष्ठान का शुभारंभ किया। जहां कंप्यूटर व लैपटॉप निर्माण के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी एचपी, डेल सहित अन्य कंपनियों के कंप्यूटर, लैपटॉप, प्रिंटर व अन्य एसेसरीज का व्यवसाय होता है।
व्यावसायिक गतिविधियों के अलावा वह समाजसेवा के लिए भी समय निकालते हैं। गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करना, पीड़ित मानवता के सेवार्थ शिविर लगाकर उन्हें हर संभव मदद करना भी उनकी दिनचर्या में शामिल है।
सरफे आलम सामाजिक कार्यों को गति देने के उद्देश्य से और गरीबों को मदद करने के लिए “हेल्प फॉर हेल्पलेस” नामक संस्था का भी संचालन करते हैं। वे इस संस्था के संस्थापक हैं। कोरोना संक्रमण काल के दौरान उनकी संस्था की ओर से गरीबों और जरूरतमंदों के बीच आवश्यक सामग्रियों का वितरण किया गया। कोरोना संक्रमण से पीड़ित बेहद गरीब मरीजों को अस्पताल पहुंचाना, उन्हें आवश्यक दवाइयां व अन्य सामग्री मुहैया कराना आदि कार्यों में वह सतत प्रयासरत रहे। सरफे आलम की विशेषता है कि वह सभी धर्म व संप्रदाय के लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि शहर में किसी भी धर्म व संप्रदाय के धार्मिक त्योहारों व अन्य सामाजिक आयोजनों के अवसर पर वह वहां स्वयं मौजूद रहते हैं। सामाजिक संस्थाओं की ओर से स्वागत शिविर लगाना, सेवा शिविर लगाना आदि सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी तत्परता देखते ही बनती है।
सरफे युवाओं के बीच भी खासे लोकप्रिय हैं। सामाजिक कार्यों को अंजाम देने में उनके साथ समाजसेवा की भावना से ओतप्रोत व समर्पित कार्यकर्ताओं की एक सशक्त टीम है, जो उन्हें कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करती है। राजधानी रांची के हर वर्ग के युवाओं के लिए सरफे आलम प्रेरणास्रोत हैं। सरफे चार भाई हैं। इनमें तीन भाई समाजसेवा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जबकि एक भाई (शमशेर आलम) लोकप्रिय राजनेता हैं।

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