पटना:
मत्स्य निदेशालय,पटना के द्वारा बिहार के सभी मत्स्य पालकों को ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया। मत्स्य विभाग मत्स्य पालन को लेकर लगातार सजग रहा है और बिहार में नीली क्रांति को लेकर किसानों को जागरूक करने में अहम भूमिका रही है।
कोरोना के कारण ऑफ़्लाइन प्रशिक्षण नहीं हो पाने के कारण मत्स्य विभाग से जुड़े अधिकारियों ने मत्स्य किसानों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण की व्यवस्था की,जो काफ़ी सफल रहा।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से जुड़े मत्स्य पालकों को आज के प्रशिक्षण के बारे में पिछले लगभग एक महीने से लगातार सूचित किया जा रहा था। इस ऑनलाइन प्रशिक्षण में पूरे बिहार से लगभग 80 मत्स्य किसानों ने भाग लिया।
मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र,पटना के व्याख्याता भारतेन्दु जायसवाल ने मिश्रित मत्स्यपालन विषय पर मत्स्य किसानों को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कम जगह में ज़्यादा उत्पादन के लिए एक ही तालाब में विभिन्न प्रजाति की मछलियों का कैसे पालन करें। जिसमें मुख्य रूप से तालाब की तैयारी से लेकर तैयार मछली को बाज़ार तक पहुँचाने की जानकारी दी गई।
प्रशिक्षण के बाद मत्स्य पालकों ने भारतेन्दु जायसवाल से कई जानकारियाँ प्राप्त की।
एक किसान के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया की – सबसे पहले तालाब की तैयारी की जाती है।जिसके लिए तालाब से खर-पतबार को निकाला जाता है। खर-पतबार को कई विधियों से निकाला जा सकता है,जैसे – मज़दूर के द्वारा, रसायन के द्वारा तथा एक ख़ास प्रजाति की मछली ( ग्रास कार्प) को तालाब में डालने के बाद वो सभी प्रकार के खर-पतबार को खा जाती है। यदि तालाब में हिंसक (जिन्हें स्थानीय भाषा में खाऊ कहा जाता है) मछलियाँ हैं तो उन्हें भी निकाल दिया जाता है। इन हिंसक मछलियों को निकलने के लिए दो विधि हैं – एक तो तालाब को सुखा दें और दूसरा तालाब में ज़हर ( मछली मारने के लिए इस्तेमाल की जानेवाली दवा) डालकर।
मत्स्य पालन में सबसे ख़ास ध्यान पानी का रखना पड़ता है। मत्स्य पालक को पानी की गुणवत्ता को समय समय पर जाँचते रहना चाहिए। तालाब की सफ़ाई के बाद पानी में चूना,गोबर और खाद एक नियमित अनुपात में डाला जाता है ताकि पानी में PH तथा ऑक्सिजन की मात्रा व्यवस्थित रहे । पानी का PH और ऑक्सिजन मछलियों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है।
अब बारी आती है मछलियों को तालाब में डालने की। इस पर भारतेन्दु जायसवाल ने बताया की मिश्रित मत्स्यपालन में तालाब को मुख्यतः तीन भाग में बाँट दिया जाता है जिसमें सबसे ऊपर के सतह को सरफ़ेस, बीच की सतह को कॉलम तथा निचली सतह को बॉटम कहा जाता है। तालाब के ऊपरी भाग में कतला मछली, मध्यम भाग में रेहू और ग्रासकार्प तथा सबसे निचले सतह में नैनी मछली का पालन होता है। मछलियों की संख्या या अनुपात के बारे में उन्होंने बताया की 3:4:3 या 4:3:3 के अनुपात से मछलियों का पालन करना लाभकारी होता है।
मछलियों के खान-पान के बारे में जानकारी देते हुए बताया की वैसे तो बाज़ार में मछलियों के लिए कई क़िस्म के कृत्रिम फ़ीड उपलब्ध हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से सरसों खल्ली,राइस ब्रांड,मिनरल मिक्स्चर तथा विटामिन सी का इस्तेमाल मछली के आहार के रूप में की जाती है। मछली को भोजन देने की प्रक्रिया के बारे में उन्होंने बताया की मछली को भोजन देने का सर्वोत्तम विधि है बैग फ़ीडिंग। इस विधि से तालाब की सभी मछलियों को बराबर मात्रा में भोजन मिलता है और उनका विकास भी निरंतर होता है। मछलियों के औसत वजन के हिसाब से वजन का ५ प्रतिशत भोजन नियमित रूप से देते रहना चाहिए।
इस प्रशिक्षण से सभी मत्स्य पालक काफ़ी संतुष्ट और खुश थे। मत्स्य पालकों ने भारतेन्दु जायसवाल को धन्यवाद दिया। सभी जानकारियाँ देने के बाद भारतेन्दु जायसवाल ने सभी मत्स्य पालकों को भविष्य में किसी भी तरह की जानकारी हासिल करने के लिए अपना मोबाइल नंबर देते हुए धन्यवाद दिया और फिर अगले प्रशिक्षण में मिलने की बात कही।