Wednesday, May 15, 2024
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झारखंड के संघर्षशील जनप्रिय नेता जगरनाथ महतो का  जाना……

जगरनाथ महतो जिस इलाके में जाते थे, वहां किस-किस घर में कितने  बच्चे  इस वर्ष मैट्रिक की परीक्षा दे रहे हैं। वे उन सबों के घर पर दस्तक देते थे। वे उन परीक्षार्थियों से पढ़ने को कहते थे ।

विजय केसरी:

झारखंड के जुझारू कर्मठ संघर्षशील जनप्रिय नेता जगरनाथ महतो का असमय जाना इस प्रांत के लिए अपूरणीय क्षति। उनका संपूर्ण जीवन झारखंड की शिक्षा और  राजनीति को गति देने में बीता था। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते थे।  वह एक रहम दिल इंसान थे। बतौर शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने शिक्षा  के क्षेत्र में सुधार लाने का जो काम किया, सदा याद किया जाता रहेगा। कोरोना से संक्रमित होने के पश्चात उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट देखा गया था। उनका लंग्स का भी ट्रांसप्लांट हुआ था।  वे पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो पाए थे, इसके बावजूद शिक्षा विभाग का काम जीवन पर्यंत देखते रहे थे। वे कुछ ही दिन पूर्व अस्वस्थ  हो गए थे। वे चेन्नई के एक अस्पताल में भर्ती थे। वहां उनका इलाज चल रहा था। इलाज के दौरान ही उनकी अकस्मात् मृत्यु हो गई। शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के निधन पर प्रांत के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘हमारे टाइगर जगरनाथ दा नहीं रहे! आज झारखण्ड ने अपना एक महान आंदोलनकारी, जुझारू, कर्मठ और जनप्रिय नेता खो दिया। चेन्नई में इलाज के दौरान आदरणीय जगरनाथ महतो जी का निधन हो गया। परमात्मा दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।

 झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के अकस्मात् निधन  से  पूरा राज्य शोकित है। उनके चाहने बाले यूं तो अनेकों है।  परन्तु बहुत कम लोगों को उनके जीवन की  कहानी का पता होगा।  उन्होने  एक मजदूर के रूप में अपना सफर शुरू कर झारखंड के विधानसभा तक पहुंच थे। वे जीवन पर्यन्त गरीबों  के लिए लड़ते रहे थे। अर्थात उनका जीवन गरीबों के उत्थान में लगा रहा था। झारखंड का  एक  छोटा सा क्षेत्र डुमरी से निकलकर यह नौजवान अपने संघर्ष से विधानसभा पहुंच कर शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य का भार संभाला था।

जगरनाथ महतो जेएमएम के एक तेज-तर्रार नेता थे । उनका अपने क्षेत्र में  अच्छी पकड़ थी । जगरनाथ महतो की  छवि जमीन से जुड़े एक  नेता की थी।‌  उनका जन्म 1967 में बोकारो के अलारगो गांव में हुआ था।‌ जगरनाथ महतो ने जीविका के लिए शुरुआती दौर में मजदूरी का रास्ता चुना था।  नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहने कारण उनकी   पढ़ाई आगे तक नहीं हो पाई।  उनकी पढ़ाई की लालसा मन में ही दबी रह गई थी। बिना रुके उन्होने समाज में बदलाव का बिगुल फूंका था।  

जगरनाथ झारखंड आंदोलन से उपजे नेता थे।  वे अपनी आंदोलनकारी छवि की वजह से कई बार जेल जा चुके थे । शिक्षा के प्रति पूर्ण सर्मपण के बावजूद जगरनाथ महतो मैट्रिक तक की ही पढ़ाई कर पाए थे । इन  विपरीत परिस्थितियों के बीच वे  झारखंड आंदोलन से जुड़कर झारखंड में अपनी राजनीतिक पहचान कायम किए  थे ।‌ समय के साथ परिस्थितियों में बदलाव आया।   झारखंड अलग राज्य गठन के बाद साल 2000 में वे पहली बार डुमरी सीट से विधानसभा चुनाव लड़े थे। परंतु वे लालचंद महतो से हार गए थे। इसके बाद 2005 में वे दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़े और इस बार उन्हें जीत हासिल हुई थी।

जगरनाथ महतो इस जीत के साथ ही पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्हें फिर जीत हासिल हुई थी। जेएमएम ने 2014 लोकसभा चुनाव में उन्हें गिरिडीह से लोकसभा का टिकट दिया था।  इस चुनाव में वे  दूसरे स्थान पर रहे थे। यह थी उनकी जनप्रियता।  2014 विधानसभा चुनाव में वे  फिर डुमरी से लड़े थे। उन्होंने डुमरी विधानसभा क्षेत्र से  जीत की हैट्रिक लगाई थी। 2019 में वे फिर गिरिडीह सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े थे। वे  इस बार भी चुनाव हार गए थे।  2019 विधानसभा चुनाव में वे फिर डुमरी विधासभा सीट से जीते थे। इस जीत के बाद उन्हें हेमंत सोरेन मंत्रिमंडल में  शिक्षा मंत्री बनाया गया था। वे अपने विभाग के  कार्य के प्रति पूरी तरह  समर्पित रहा करते थे । वे घूम-घूमकर अपने क्षेत्र के बच्चों को सुबह जगाते थे।  शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो  स्वयं ब्रह्म मुहूर्त में मैट्रिक के परीक्षार्थियों को जगाने के लिए  निकलते थे । खासकर मैट्रिक की परीक्षा के दौरान जगरनाथ महतो अपने विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में सुबह घूम-घूमकर बच्चों को नींद से जगाते और पढ़ने को कहते थे थे।

जगरनाथ महतो को अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी रहती थी।

 जगरनाथ महतो जिस इलाके में जाते थे, वहां किस-किस घर में कितने  बच्चे  इस वर्ष मैट्रिक की परीक्षा दे रहे हैं। वे उन सबों के घर पर दस्तक देते थे। वे उन परीक्षार्थियों से पढ़ने को कहते थे । जगरनाथ महतो को  बच्चों को पढ़ाना बहुत ही पसंद था। वे सिर्फ बच्चों को मैट्रिक की परीक्षा के दौरान जगाते ही नहीं थे बल्कि जब भी उन्हें समय मिलता था, वे बच्चों को पढ़ाने का मौका नहीं छोड़ते थे ।

   वर्ष 2020 में बच्चों को पढ़ाने के दौरान ही उन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ था।  उसके बाद से उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गयी थी। झारखंड टाइगर के नाम से जाने जाने वाले जगरनाथ महतो की हिम्मत ने उन्हें टूटने नहीं दिया था। हालांकि जगरनाथ महतो खुद मैट्रिक पास थे ।  वे  निजी जिम्मेदारियाों और  राजनीति में आने की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाये थे।  वे चाहते थे कि समाज का हर बच्चा शिक्षित हो । 

वे  झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे ।‌ जगरनाथ महतो की अपनी एक अलग पहचान थी ।‌वे अपने जुझारूपन की वजह से टाइगर कहे जाते थे। शिक्षा  मंत्री जागरनाथ महतो की लोकप्रियता यूं ही नहीं  थी, उनका लोकप्रिय होने के पीछे  सबसे बड़ी वजह क्षेत्र की जनता के प्रति उनका समर्पण रहा था।

 वे अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता के प्रति चौबीसों घंटे तत्पर रहते थे।  जागरनाथ महतो ने डुमरी विधानसभा क्षेत्र में विकास के लिए कई काम किया था। उनका जो इलाका है, नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का गढ़ है। जहां विकास की योजनाओं को संचालित करना प्रशासन के लिए चुनौती रही थी,उस इलाके में सड़क-शिक्षा के साथ साथ अन्य व्यवस्था को दुरुस्त करने में उनकी भूमिका सदा याद की जाती रहेगी।

जगरनाथ महतो को पूर्ण विश्वास था कि शिक्षा से ही बदलाव लाया जा सकता है। वे झारखंड की वर्तमान साक्षरता दर से बहुत खुश नहीं थे। इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच जगरनाथ महतो बतौर  शिक्षा मंत्री के रूप में जो काम किया, अन्य मंत्रियों के लिए अनुकरणीय है।  उन्होंने  अपने क्षेत्र में कई उच्च विद्यालय, कॉलेज को स्थापित करवाया था। वे  संपूर्ण झारखंड को शिक्षा का एक बेहतर हब बनाना चाहते थे।  वे चाहते थे कि उच्च शिक्षा के लिए यहां के बच्चे बाहर नहीं जाएं बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा इसी प्रदेश में प्राप्त करें। इस दिशा में वे लगे हुए थे, लेकिन आसमय उनकी मृत्यु ने उनके सपनों  ग्रहण लगा दिया। वे शिक्षा के विकास पुरुष के नाम से भी जाने जाने लगे थे। जगरनाथ महतो का इस तरह असमय जाना झारखंड प्रांत के लिए अपूरणीय क्षति है।

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