राँची:
राज्य सरकार अब अस्पताल में इलाज के नाम पर मनमानी करनेवालों पर सख़्त रुख़ करनेवाली है। मरीज़ों के इलाज के नाम पर उनसे मनमानी फ़ीस वसूली और भेदभाव करना अस्पतालों और निजी क्लिनिक को संकट में डाल सकता है। प्राइवेट हॉस्पिटल-क्लिनिक और नर्सिंग होम वालों की मनमानी के अमानवीय खबरें अक्सर सुनने को मिलती रहती है। खबरों में पाया जाता है कि ये सभी अलग-अलग सर्विस के लिए मरीज़ों से अपने हिसाब से फ़ीस वसूलते हैं। लेकिन राज्य सरकार ने अब इन सभी प्राइवेट हॉस्पिटल-क्लिनिक और नर्सिंग होम की मनमानी को रोकने के लिए सख़्त कदम उठाया है। स्वास्थ्य विभाग ने इससे संबंधित आदेश पिछले हफ्ते ही जारी कर दिया था। स्वास्थ्य विभाग के आदेशानुसार सभी प्राइवेट अस्पताल, क्लिनिक और नर्सिंग होम को अपने यहां डिसप्ले बोर्ड लगाना है जिसमें अस्पताल, क्लिनिक या नर्सिंग होम में दी जाने वाली सेवाओं और उससे संबंधित शुल्क भी दर्शाया जाएगा। ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग सख़्त कार्रवाई करेगा। गड़बड़ी या आदेश का उल्लंघन करते पाए जाने पर अस्पताल पर विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी और उनका लाइसेंस भी कैंसिल किया जा सकता है।
क्या है क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट?
- राज्य में किसी भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल के संचालन के लिए क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।
- क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट के तहत सभी अस्पताल या नर्सिंग होम को प्रत्येक वर्ष लाइसेंस को रिन्यूअल कराने की अनिवार्यता है।
- अस्पताल, क्लिनिक या नर्सिंग होम में दी जाने वाली सुविधाओं और उसके शुल्क से संबंधित डिस्प्ले बोर्ड लगाने की अनिवार्यता।
- सेवाओं से संबंधित शुल्क के बारे में डिस्प्ले बोर्ड ऐसी जगह पर लगाई जाय जिससे कि रजिस्ट्रेशन नंबर और सेवा शुल्क की जानकारी स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
इसके बावजूद ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल इस आदेश को मानने से परहेज़ करते दिख रहे हैं। आदेश के एक सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी किसी अस्पताल में कोई सेवा शुल्क डिस्प्ले बोर्ड नहीं लगा है जिससे आनेवाले मरीज़ों को अस्पताल में दी जाने वाली सेवाओं और उसके शुल्क की जानकारी मिल सके।
स्वास्थ्य विभाग के पास राज्य के सभी अस्पताल, क्लिनिक और नर्सिंग होम की नहीं है जानकारी।
सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति शर्मा ने 2019 में स्वास्थ्य विभाग से क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्टर्ड अस्पतालों की जानकारी मांगी थी। इसके बाद उन्होंने कई बार रिमाइंडर भी भेजा था। लेकिन आजतक उन्हें कुछ जिलों को छोड़ बाकि जिलों के अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन की जानकारी उपलब्ध नहीं करा पाई है। जबकि प्राइवेट व सरकारी अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन की मॉनिटरिंग का जिम्मा सिविल सर्जन का है। इसे लेकर कई बार अस्पतालों के खिलाफ शिकायत भी की गई है। लेकिन अब तक अस्पतालों पर कार्रवाई के नाम पर केवल ख़ानापूर्ति ही हुई है।