Friday, May 10, 2024
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अवसाद, परेशानियां और कड़वाहट से मुक्त करती है रतन वर्मा की कविताएँ

अवसाद' पर प्रहार करती 'मन में है, आकाश कम नहीं'

विजय केसरी

प्रख्यात कथाकार, कवि रतन वर्मा की कविता ‘मन में है, आकाश कम नहीं’ की पंक्तियां लोगों के जीवन में आए अवसाद, परेशानियां और कड़वाहट पर जबरदस्त ढंग से प्रहार करती हैं। पंक्तियां लोगों में जीवन जीने की एक नई उत्साह और ऊर्जा भरती हैं । विभिन्न समस्याओं को लेकर युवाओं, छात्राओं, किसानों सहित कई अन्य लोगों में कुंठा बढ़ती चली जा रही है । इसी कुंठा के कारण हर वर्ष हजारों लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं। यह समाज के लिए बेहद चिंता की बात है। इस विकट और बदली परिस्थिति में रतन वर्मा की “मन में है, आकाश कम नहीं’ जैसी कविता की पंक्तियां लोगों को अवसाद से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
‘मन में है, आकाश कम नहीं’ कविता की पंक्तियां व्यक्ति के जीवन को संवारने की प्रेरणा देती हैं। आज लोगों का जीवन भागम भाग भरा हो चुका हैं। जहां लोग सिर्फ पैसे, पद, नाम और यश के पीछे भागते नजर आते हैं। ईश्वर प्रदत्त इस जीवन को हम सब पैसे,पद, नाम और यश के पीछे गंवा देते हैं । जीवन में थोड़ी सी परेशानी आने पर लोग अवसाद से ग्रसित हो जाते हैं और इस बहुमूल्य जीवन को खत्म करने पर उतारू हो जाते हैं। जबकि यह जीवन बहुत ही बहुमूल्य और महत्वपूर्ण है। हिन्दू धर्म ग्रंथों की माने तो कई जन्मों के पुण्य – प्रताप से मनुष्य जीवन मिलता है। हम सब इस बहुमूल्य जीवन को यूं ही नष्ट कर देते हैं। कविता की बताती हैं कि जीवन और समय दोनों बहुमूल्य है, जो इस जीवन और समय को बहुमूल्य समझते हैं, वे बहुत ही बेहतर ढंग से जीवन जी पाते हैं ।
आज की बदली परिस्थिति जहां चंहुओर कोलाहाल,अवसाद और आत्महत्या जैसी घटनाओं के बीच रतन वर्मा की ‘मन में है, आकाश कम नहीं’ की पंक्तियां लोगों में जीवन जीने की प्रेरणा और एक नई ऊर्जा भरती हैं।
रतन वर्मा की कविता की चर्चा करूं। इससे पूर्व यह बता देना चाहता हूं कि रतन वर्मा देश के जाने माने साहित्यकार, कथाकार, कवि हैं। अब तक ढाई सौ से अधिक कहानियां लिख चुके हैं। लघु उपन्यास और उपन्यास सोलह के आसपास हैं। चौदह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी चर्चित कहानी ‘नेटुआ’ का ओलंपियाड में नाट्य मंचन भी हो चुका है। इनकी कहानियां नियमित देश की प्रतिष्ठित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। ये बीते चालीस वर्षों से हिंदी की साधना में रत हैं। पिछले दिनों पटना में रतन वर्मा को 2022 का उत्कृष्ट कथा लेखन के लिए ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान’ से अलंकृत किया गया।
इनका रचना संसार बहुत ही विस्तृत है। फिर भी इनकी कलम रुक नहीं रही है। इनकी साहित्यिक यात्रा भी बड़ी दिलचस्प है। ये एक कथाकार के रूप में जाने और पहचाने जाते हैं । लेकिन इनके अंदर कहीं न कहीं एक कवि मन भी निवास करता है। इसी कारण कहानियों के बीच कविताएं भी आकार ग्रहण ले लेती हैं।
रतन वर्मा की जिस कविता पर चर्चा करने जा रहा हूं,उसका शीर्षक है, ‘मन में है,आकाश कम नहीं’। शीर्षक से ही बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि मन एकाग्र होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चले तो बुलंदियों को छुआ जा सकता है।मन चंचल है। इतना गतिशील है कि उसकी गति आवाज और रोशनी से भी कई गुणा अधिक है। आज मनुष्य जीवन तो जी रहा है, लेकिन जीवन में परेशानियां और कड़वाहट बहुत है। कवि अपनी पंक्तियों के माध्यम से यह बताना चाहता हैं कि परेशानियां, कड़वाहट और अवसादो के बीच में रहकर भी जीवन को बहुत ही आनंद के साथ जिया जा सकता है। जीवन में परेशानियां,कड़वाहट चाहे कितनी हो, सिर्फ खुद में परेशानियों और कड़वाहट को सहने की ताकत पैदा करने की जरूरत है । फिर जीवन की दिशा और दशा ही बदल जाएगी। जीवन का मतलब है, संघर्ष कर जीवन का निर्माण करना। महापुरुषों ने संघर्ष के बीच ही कालजई व्यक्तित्व का निर्माण किया, जिसे दुनिया उन्हें बर्षों तलक याद रखती हैं।
अपनी पंक्तियों में कवि कहता है:-

जीवन में अवसाद बहुत, पर / सपनों के सौगात कम नहीं / कंट भरी है राह,परंतु / मन में है, आकाश कम नहीं’।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि जीवन में अवसाद बहुत है, पर सपनों के सौगात कम नहीं है। अवसाद का काम है, आपकी खुशी को खा जाना। इसी जीवन में जीवन जीने के सपने कम नहीं है। बस ! सपनों को सच करने में इस जीवन को लगा दें। अवसाद पल भर में आपके जीवन से दूर हो जाएगा । तब जीवन में आनंद ही आनंद होगा । कवि आगे कहता है, जीवन में संघर्ष रूपी कांटे बहुत हैं। इसी संघर्ष के बीच जीवन को बेमिसाल बनाना है। अब तक जितने भी महापुरुष इस धरा पर आए , उन्होंने इन्हीं उलझनों, परेशानियों और अभावों के बीच एक नया इतिहास गढ़ा। अगर वे अपने जीवन के संघर्ष से घबरा जाते तो आज इतिहास कुछ और होता।

कवि आगे की पंक्तियों में कहता है:-

‘पंछी बन उड़ना जो चाहूं/ पर डैने हैं बोझल बोझल/ नैन पपीहरा चांद निहारे / चंदा दिखता मद्धम मद्धम’।

इन चार पंक्तियों में कवि, पंछी से मनुष्य का मिलान कर कहता है, मनुष्य, पंछी की ही तरह उड़ना चाहता है। लेकिन उसके हाथ पांव बहुत बोझल बोझल से हो गए हैं। पपीहरा चांद निहारे और चंदा मद्धम मद्धम दिखता है। अर्थात आंखें चांद की ओर निहारती हैं, चंदा मद्धम मद्धम दिखाई पड़ती है। यह मनुष्य के स्वभाव का प्रतीकात्मक परिचय है, जो मनुष्य के जीवन में घटित होते रहता है। इन्हीं परिस्थितियों के बीच मनुष्य अपनी जीवन यात्रा को पूरा करता है।

मनुष्य के जीवन के संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए कवि कहता है:-

‘चलना चाहूं, पकड़ उंगली/ उसमें भी झटकार कम नहीं/ कंट भरी राह, परंतु, /मन में है, आकाश कम नहीं’।

मनुष्य अपने स्वभाव के अनुरूप अग्रज की अंगुली पकड़कर आगे बढ़ना चाहता है। लेकिन अपनों के असहयोग उसे अपनी मंजिल से दूर कर देता है। मनुष्य का जीवन कांटो से भरा जरूर है। अगर मन में सपने हैं। मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा है।

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