Wednesday, May 8, 2024
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बिहार के मत्स्य पालकों और उनके फैसले को देशपत्र सलाम करता है।

सरकार के सहयोगात्मक निर्देश के बावजूद भी मत्स्य पालकों ने देश हित में काफी अहम फैसला लिया और उन्होंने लॉक डाउन अवधि 14 अप्रैल तक बाजार का रुख न करने का निर्णय लिया। हालांकि सरकार ने मत्स्य पालकों के लिए सभी सुविधा मुहैया करा रखा है। मत्स्य पालकों को तालाब से बाजार तक आने जाने के लिए वाहन सहित पास की व्यवस्था दी गई है।

अभी समस्त विश्व पर आपातकाल का गंभीर साया मंडरा रहा है और ऐसे में अपना एवं अपने देश के नागरिकों के हित की बात ही देश के हर एक नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। हालांकि लोकहित में यह ख्याल रखते हुए की देश के किसी भी नागरिक को ऐसी विकट परिस्थिति में खाने-पीने की परेशानी ना हो इसलिए सरकार ने खाद्य सामग्री से जुड़ी वस्तुओं की खरीद बिक्री पर पाबंदी नहीं लगाई है। साथ ही मांस और मछली की बिक्री को भी लॉक डाउन के दायरे से मुक्त रखा गया है। सरकार के सहयोगात्मक निर्देश के बावजूद भी मत्स्य पालकों ने देश हित में काफी अहम फैसला लिया और उन्होंने लॉक डाउन अवधि 14 अप्रैल तक बाजार का रुख न करने का निर्णय लिया। हालांकि सरकार ने मत्स्य पालकों के लिए सभी सुविधा मुहैया करा रखा है। मत्स्य पालकों को तालाब से बाजार तक आने जाने के लिए वाहन सहित पास की व्यवस्था दी गई है।


मत्स्य अनुसंधान संस्थान के सहायक निदेशक श्री विपिन शर्मा ने कहा कि किसी भी मत्स्य पालकों को यदि किसी तरह की भी परेशानी होती है तो वे उनसे संपर्क कर सकते हैं। जिले के मत्स्य पालकों की परेशानी को दूर करने के लिए उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रुप बना रखा है ,जिस पर किसी भी तरह की परेशानियों का समाधान सुलभ उपलब्ध कराया जा रहा है। विपिन शर्मा ने भी जिले के सभी मत्स्य पालकों से इस विकट परिस्थिति में लॉक डाउन अवधि का संभवतः शत-प्रतिशत पालन करने का आग्रह किया है। जिसका मत्स्य पालकों ने भी तहे दिल से स्वागत किया और आर्थिक नुकसान को दरकिनार करते हुए लोकहित में लॉक डाउन के दिशा निर्देशों का पालन करने का वचन दिया।मत्स्य पालक का कहना है कि यदि १४ अप्रैल तक हमलोग अनावश्यक गतिविधि को रोक देते हैं तो कोई खास परेशानी नहीं आ जाएगी। लेकिन जरा सी लाभ के कारण यदि संभावित आपदा के गिरफ्त में आ गए तो बड़ी संकट की संभावना है जो स्वयं के साथ साथ समाज को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

हालांकि इन मत्स्य पालकों के परिवार का भरण-पोषण पूर्णतया इसी कारोबार पर निर्भर है। जिले में लगने वाली मंडी में मत्स्य पालक अपने तालाब की तैयार मछलियों को ले जाकर बेचते हैं और इससे प्राप्त पैसों से उनका घर परिवार चलता है। फिर भी आर्थिक नुकसान को झेलने के बावजूद भी अपने राष्ट्र धर्म को तरजीह देते हुए इन्होंने काफी सराहनीय कदम उठाया है।

लोकहित में लिए गए इस फैसले को देशपत्र सलाम करता है।

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