झारखंड की पत्रकारिता जगत में अपने अनुभव का नायाब रास देनेवाला एक चर्चित नाम ‘ गुंजन सिन्हा ‘ . जब वे झारखण्ड में पत्रकारिता करते थे तब आज के कई मशहूर पत्रकार उनसे सीखा करते थे। गुंजन सिन्हा भी सबको निडर और ईमानदार पत्रकारिता की सिख दिया करते थे। आज भी कई बड़े संस्थानों में गुंजन सिन्हा का नाम काफी सम्मान से लिया जाता है।
झारखंड से ज्यादा जुड़ाव होने के कारण रांची प्रेस क्लब में हो रही हलचल की खबर इन तक भी पहुँच गई और चूँकि इन्होंने अपने जीवन का बहुमूल्य समय झारखण्ड को दिया था ,इसलिए रांची प्रेस क्लब विवाद पर अपनी पीड़ा को फेसबुक के माध्यम से बयां कर दिए। जिसे इन्होंने शीर्षक दिया है ‘रांची प्रेस क्लब -तीसरा पक्ष ‘
गुंजन सिन्हा के फेसबुक वॉल से ,
“एक पक्ष (रांची प्रेस क्लब) ने दूसरे पक्ष (कृष्ण बिहारी मिश्र) के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाई है। कृष्ण बिहारी ने प्रेस क्लब में पत्रकारों और गरीबों के मुफ्त भोजन इंतजाम को अपने पोर्टल में अपमानजनक बताया। एक तीसरा पक्ष है, जो इन दोनों से क्षुब्ध है। इसी बारे में – एक पत्रकार घटिया हरकत करता है तो सबकी गरिमा प्रभावित होती है। ऐसी हरकत संस्था करती है, तो गरिमा कई गुना कलंकित होती है। पेशेवर संस्था की गतिविधि से हर व्यक्ति परिभाषित होता है।
रांची प्रेस क्लब प्रतिनिधि संस्था है, कृष्ण बिहारी मिश्र या मैं, या कोई अन्य सिर्फ एक व्यक्ति हैं। व्यक्तिगत प्रतिक्रिया और संस्था की प्रतिक्रिया में वजन का अंतर वैसा ही है, जैसा वकील के कथन और अदालत के फैसले में होता है। प्रेस क्लब के स्टैंड को उतना ही वजन दिया जाना अपेक्षित है, जितना अदालत के फैसले को दिया जाता है, लेकिन यह अपेक्षित है। दिया जा सकेगा या नही, यह उस फैसले/स्टैंड की शुचिता पर निर्भर है। प्रेस क्लब की प्रतिक्रिया/कार्रवाई/गतिविधि इस क्लब के सभी सदस्यों की ओर से मानी जाएगी, जब तक कि कोई सदस्य आपत्ति न करे। हालांकि मैं प्रेस क्लब का सदस्य नही हूँ, स्थिति पर बहैसियत भूतपूर्व पत्रकार, मेरी आपत्ति यूँ है –
क्या प्रेस क्लब का काम राशन बांटते हुए मूर्ख नेताओं की तरह फोटो खिंचवाना, छोटे से दान का प्रचार करना है? आप ये कैसा मॉडल रख रहे हैं? तालाबंदी में उन पत्रकारों को दिक्कत होती होगी जो अकेले रहते हैं, ढाबे में खाते हैं। ढाबे बंद रहने की स्थिति में क्लब ने पत्रकारों के भोजन का इंतजाम किया तो गलत नही है। श्री मिश्र की तरह जिनके अपने घर हैं या जिनके ऐसे मित्र हैं जो अपने घर भोजन कराएं, उन्हें ये दिक्कत महसूस नहीं होगी, लेकिन जो खबर छपी है, वह ऐसी किसी ज़रूरत का जिक्र नही करती।
उससे यही ध्वनि निकलती है, कि पत्रकारों के लिए दान के भोजन का इंतजाम किया गया। इस पर कृष्ण बिहारी मिश्र ने आपत्ति की है। प्रश्न है कि क्लब के अधिकारियों को अपनी, क्लब की और पेशे की छवि का ख्याल यह विज्ञप्ति देते समय क्यों नही आया? किस समझ से ऐसा फोटो छपा रहे हैं? ज़रुरतमंद को भोजन देने की फोटो मेरी समझ से अश्लील है। समाजसेवा में उत्सर्ग नहीं, यह फोटो सिर्फ एक पोर्नोग्राफ है। ज्यादा अश्लीलता, कि नेता नहीं, पत्रकार पेश कर रहे हैं।
प्रेस दावा करता है कि आलोचना उसके अस्तित्व का आधार और जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन हास्यास्पद विडंबना है कि अपनी आलोचना पर प्रेस की सर्वमान्य संस्था थाने में रिपोर्ट लिखाने पहुँच गई! थोड़ी भी अकल का इस्तेमाल क्लब अधिकारी नहीं कर पाए? समझ में नही आया कि अपनी छड़ी किसी बाहरी को थमा रहे हैं? आपसी अहम् की लड़ाई में क़ाज़ी उसे बना रहे हैं, जिसके खिलाफ आप लिखते रहते हैं? राशन बांटने, फोटो खिचाने, पत्रकारों को दान-दाता से मुफ्त भोजन दिलाने, ऐसी सस्ती हरकतों को खुद ही छपाने, अपनी आलोचना पर थाने में रिपोर्ट लिखाने जैसे कार्यों से क्लब ने अपनी गरिमा का स्वयं भारी नुकसान किया है। सारी क्रिया प्रतिक्रिया बचकानी, सस्ती और मूर्खतापूर्ण है.
प्रकरण में कृष्ण बिहारी मिश्र की नाराज़गी वाजिब है, लेकिन भाषा असंतुलित, आम पत्रकारों के लिए अपमानजनक और अहंकारी है। रांची प्रेस क्लब ने पत्रकारों की गरिमा को सलीब पर टांग दिया तो श्री मिश्र ने उस सलीब में चार कीलें और ठोक दीं। वे निर्भय ऐसे सवाल उठाते हैं, जिनसे मीडिया कतराती है। ईमानदारी बरतना, समझौतावादी नही होना अच्छे गुण हैं, लेकिन तभी तक जब तक वह भावुक अहंकार न बन जाए। ग्रीक त्रासदी का कारण होता है – हमर्शिया। इसका अर्थ वे और आप सब स्वयं जानते होंगे, अन्यथा देख लें।”