Friday, May 17, 2024
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मातृभाषा हिंदी है हमारी कृती प्रकृति और संस्कृति:- अनंत धीश अमन

गया । हिंदी का इतिहास भारत में 1000 साल पुराना है यह भारत की सिर्फ भाषा ही नहीं बल्कि इसमें झलकती है हमारी कृती प्रकृति और संस्कृति। इस भाषा के द्वारा संस्कृत भाषा को जीवंत रखते आए हैं साथ ही 17 बोलियां और सैकड़ों उप बोलियां को हिंदी के द्वारा जीवंत रखने का काम हुआ है और उर्दू एवं अंग्रेजी को अपने में समाहित कर हिंदी भाषा श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करती है।
मां भारती के बिंदी बन जन-जन तक हिंदी फैली है परंतु इस मनीषियों के देश में ही लड़ाइयां लड़ती रही है हमारी मातृभाषा हिंदी और इसे सिर्फ राजभाषा घोषित कर सत्ताधारियों ने राजनीति की है।
हिंदी से किसी भी भाषा को डरने की जरूरत हीं नहीं है क्योंकि सभी भाषाओं को संरक्षित एवं संवर्धित करती रही है हम सबकी मातृभाषा हिंदी।
मानव जीवन में भाषा व तत्व है जिसके द्वारा मानव संसार में श्रेष्ठ कहलाने के गौरव को प्राप्त करता है भाषा हमारी संस्कृति का वाहक है और हमारे संस्कार की सृजनकर्ता है इसलिए हिंदी हम सबकी माँ है।
मधुर भाषा सुनने मात्र से जीवन के कष्ट और दुख का नाश हो जाता है और हिंदी इस चरित्र के कसौटी पर घिस कर रंगारंग हो जाती है और हिंदी के कारण हीं अनेकता में एकता को बल मिलता है यह भाषा के साथ साथ भारत के विभिन्न संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधती है। इसलिए हिंदी भाषा भारत की संस्कृति की प्रतिक बन चूकी और इसका सरंक्षण और संवर्धन करना हमारा मूल कर्तव्य है।

       "मानव- जिवनस्य संस्करणं संस्कृति"                            

अर्थात मानव जीवन का संस्करण अथवा परिष्कार (संवारना, दोष आदि दूर करके उतम बनाना) करना संस्कृति है।
हिंदी भाषा ने समस्त भारतवर्ष एकजुट करनें में और गुलामी के बेङियों को तोडने में राष्ट्र के प्रति समर्पित होने में राष्ट्र के तेजस्वी व्यक्तित्वों के ज्ञान का सागर भरने में अनमोल योगदान दिया है।

             " संस्कारजन्मा संस्कृति"

अर्थात विभिन्न संस्कारों के परिणाम स्वरूप प्राप्त हुई अवस्था संस्कृति कहलाती है।
हिंदी हर अवस्था में समस्त भारतवर्ष के लिए गौरव का विषय रही है और भारत को गौरवान्वित करती रही और सदैव ममत्व की छाया प्रदान करती रही है यह हम सब का दायित्व है कि इस भाषा के प्रति आदर आभार और प्रेम सदैव बनाए रखें।
किंतु आज हम अपने संस्कृति और मातृभाषा का त्याग होते देख रहे हैं आज बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने के लिए परिजनों का भीङ लगा हुआ है जहां हमारी संस्कृति एवं भाषा का आत्मदाह प्रत्येक दिन हो रहा है और यह सिर्फ विद्यालय में ही नहीं बल्कि हिंदी फीचर फिल्म में भी संस्कृति और मातृभाषा को ताक पर रख दिया गया है और सारे फिल्म जगत के लोग भोग विलास के जिंदगी को बढ़ावा दे रहे हैं जिससे समाज में नैतिकता और संस्कृति का अभाव दिख रहा है।
जो कि एक स्वस्थ समाज के लिए खतरा का विषय है स्वामी विवेकानंद का एक वाक्य हमें स्मरण रखने की जरूरत है “हमें विकसित नहीं एक सांस्कृतिक भारत चाहिए”
क्योंकि भारत में संसाधनों की कमी नहीं और अगर हम अपनी मातृभाषा और संस्कृति का विकास कर लिए हमारे समाज की उन्नति होगी और राष्ट्र प्रगति के केन्द्र में दिखेगा और वह अपने मूल स्वरूप को साकार करने में सक्षम होगा। यह काम भाषा और संस्कृति के संवर्धन से हीं होगा हिंदी भाषा के साथ साथ संस्कृति भी है इसलिए इसके वैभव बढने से भारत परम वैभव और यशस्वी भारत के पूर्ण स्वरुप में दिखेगा।

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