Friday, May 3, 2024
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चारा घोटाला और लालू प्रसाद यादव, जानिए पूरी दास्तान

आजादी के बाद देश में कई बड़े - बड़े घोटाले हुए, जिसकी चर्चा कुछ वर्षों तक चली भी थी, लेकिन बाद के दिनों में चर्चा भी बंद हो गई । चारा घोटाला ही एक ऐसा मामला सामने आया , जिसकी चर्चा बीते बीस वर्षों से लोगों के बीच जारी है ।


विजय केसरी
चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद यादव को सीबीआई न्यायालय ने पांचवी बार भी सजा ही सुना दी। इस बार सीबीआई न्यायालय ने उन्हें साठ लाख रुपए का जुर्माना और पांच साल जेल की सजा सुनाई है। लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को उम्मीद थी कि लालू जी की बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य के मद्देनजर न्यायालय सजा को कुछ कम कर देगी, लेकिन न्यायालय ने चारा घोटाले की गंभीरता को ध्यान में रखकर वही फैसला सुनाया, जो उसे सुनाना चाहिए था । देश की आजादी के बाद देश में कई बड़े – बड़े घोटाले हुए, जिसकी चर्चा कुछ वर्षों तक चली भी थी, लेकिन बाद के दिनों में चर्चा भी बंद हो गई । चारा घोटाला ही एक ऐसा मामला सामने आया , जिसकी चर्चा बीते बीस वर्षों से लोगों के बीच जारी है ।
लालू प्रसाद यादव देश के एक लोकप्रिय नेता के रूप में सामने आए। वे खुद को सामाजिक न्याय के एक पुरोधा के रूप में अपनी पहचान बनाने में बहुत हद तक सफल भी हुए । उनकी जनप्रियता का आलम रहा कि वे देश के जिस भी कोने में गए । उनको देखने और सुनने वालों की भीड़ लग जाती । वे पिछड़ी जातियों की आवाज़ बन गए । उनका यह जादू आज भी बरकरार है । उनका बोलने का स्टाइल, बाल का स्टाइल, उन्हें अन्य नेताओं से अलग करता है । वे बिहार की राजनीति से शुरूआत कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में सफल रहे । उनकी लोकप्रियता देश के अलावा विदेशों में भी है । लालू प्रसाद यादव हमेशा समाज के अंतिम व्यक्ति के विकास की बात करते रहे हैं । लालू प्रसाद यादव बिहार के निम्न परिवार से आते हैं । वे छात्र जीवन से ही सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं । वे लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते रहें हैं। इसी संघर्ष के रास्ते उनका राजनीति में प्रवेश हुआ । 1970 में वे पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव चुने गए थे । इस पद में रहकर उन्होंने छात्रों के लिए बहुत कुछ किया था ।
जे पी आंदोलन से राजनीति में प्रवेश पाई थी

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जब पटना के गांधी मैदान से इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ हुंकार भरी थी, तब इस जनसभा में लालू प्रसाद यादव भी शामिल थे। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार से देश को मुक्ति दिलाने के लिए छात्रों को भी इस संघर्ष में शामिल होने का आह्वान किया था। लालू प्रसाद यादव, जयप्रकाश नारायण के आह्वान का पर आंदोलन में कूद पड़े थे । वे इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार को समाप्त करने के लिए जेपी आंदोलन के सिपाहियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चले थे ।
1977 में आपातकाल की समाप्ति की घोषणा बाद लालू प्रसाद यादव लोकसभा का चुनाव जीते थे। तब उनकी उम्र मात्र 29 वर्ष की थी । वे एक आम आदमी के प्रतिनिधि के रूप में लोकसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी । वे लोकसभा में सामाजिक न्याय, समाज के पिछड़े और अंतिम लोगों के विकास से संबंधित बातें उठाया करते थे । उनकी बातों में दम होता था । उनके वक्तव्य को लोग ध्यान से सुनते थे। उनके वक्तव्य में यथार्थ का परिचय होता था ।धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धि बढ़ती चली गई । 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य भी बने । इसी दरमियान उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में रहकर अपनी महती भूमिका अदा की थी । उनकी लोकप्रियता का यह आलम था कि उनकी सभाओं में जमकर भीड़ जुटती थी ।

सत्ता की ताकत ने लालू यादव को धृतराष्ट्र बना दिया

वे 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। प्रारंभिक दिनों में उनकी कार्य करने की शैली बिल्कुल अलग थी । मुख्यमंत्री के पद पर रहकर भी उनकी बातें हमेशा आम आदमी के हित में होती थी। मुख्यमंत्री रहकर उन्होंने चरवाहा विद्यालय की शुरुआत की थी । उनकी लोकप्रियता राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई थी। लेकिन सत्ता की ताकत ने उन्हें धृतराष्ट्र बना दिया था। लोगों का जीवन स्तर उठाने के साथ ही वे खुद के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में जुड़ गए। इस क्रम में उन्होंने कुछ ऐसा काम कर दिया, जिसकी सजा आज तक भोग रहे हैं। उनके ही कार्यकाल में चारा घोटाला का उदय हुआ था। एकीकृत बिहार के विभिन्न जिलों के कोषागारों से करोड़ों रुपए की निकासी हुई थी। यह एक जघन्य आर्थिक अपराध है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहकर इससे संबंधित याचिकाओं पर खुद हस्ताक्षर किया था। उनके वकील ने भी स्वीकार किया है कि इससे संबंधित कागजों पर लालू प्रसाद यादव के हस्ताक्षर मौजूद है। इससे प्रतीत होता है कि लालू यादव को चारा घोटाला की पूरी जानकारी थी । उनकी हैसियत में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होता चला जा रहा था । जब लालू प्रसाद यादव 1970 में पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव बने थे । तब उनकी हैसियत बहुत ही कमतर थी। 1990 तक पहुंचते-पहुंचते उनकी हैसियत में आसमान और जमीन का फर्क आ गया था । अब सवाल यह उठता है कि उनकी आर्थिक हैसियत इतना कैसे बढ़ी ? ये धन कहां से उनके पास आए कहां से ? उनके खिलाफ आवाजें उठने लगी । लालू यादव ने खिलाफ में उठने वाली हर आवाज को बंद करने का पूरी कोशिश की थी। उन्होंने यहां तक कहा कि मुझे एक राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। मैंने कोई भी चारा घोटाला नहीं किया । सिर्फ राजनीतिक कारणों के चलते विरोधी पार्टियां मुझे फंसा रही है । आज भी न्यायालय में उन्होंने यही कहा कि मुझे राजनीति के तहत फंसाया जा रहा है।
सजा के बाद अपनी पत्नी को बनाया मुख्यमंत्री

वे लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं । यूपीए सरकार पांच वर्षों तक रेल मंत्री भी रहे। रेल मंत्री रहते हुए उन पर कोई रेल मंत्रालय के घोटाला का मुकदमा नहीं हुआ। लेकिन जब वे बिहार के मुख्यमंत्री थे , तभी चारा घोटाला हुआ। तभी उन पर आरोप लगे। लालू प्रसाद यादव स्वयं को समाज सामाजिक न्याय के नेता कहते हैं । लेकिन उनका सामाजिक न्याय है ? जब न्यायालय ने उनके विरुद्ध सजा सुना दी तब उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर लोकतांत्रिक परंपरा का गला ही घोट कर रख दिया था। राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर उनके ही पार्टी के नेताओं ने आवाज उठाई थी । लेकिन लालू यादव ने अपने विरूद्ध उठती आवाज को बहुत ही शक्ति के साथ कुचल दिया था। लालू प्रसाद यादव जिस वर्ग से आते हैं । एक समय उस वर्ग को उन्होंने एक स्वर दिया था। उन्हें एक पहचान दी थी। उन्हें समाज में सबके साथ चलने की ताकत दी थी। लेकिन चारा घोटाला में खुद को शामिल उन्होंने सब पर पानी फेर दिया था ।

भारतीय इतिहास में संसद की सदस्यता गंवाने वाले लोकसभा के पहले सांसद

लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड के नेता जगदीश शर्मा को चारा घोटाले मामले में जब दोषी करार दिया था। तब उन्हें लोकसभा से अयोग्य ठहरा दिया गया था। वे रांची के जेल में सजा काट रहे थे। तब लालू प्रसाद यादव की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी। चुनाव के नए नियम के अनुसार लालू प्रसाद यादव अब 11 साल तक लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। लोकसभा के महासचिव ने लालू प्रसाद यादव को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने की अधिसूचना जारी कर दी थी । इस अधिसूचना के बाद उन्हें संसद की सदस्यता गवानी पड़ी थी। संसद की सदस्यता गंवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में लोकसभा के पहले सांसद हो गए।
चारा घोटाला के सभी मामलों में सजा होने पर लालू को कई जन्म लेने पड़ेंगे

चारा घोटाला के कई अन्य मामले भी सीबीआई के विभिन्न न्यायालयों में विचाराधीन है। अगर सभी फैसले आ जाए , अगर पांच-पांच वर्ष भी सजा सुनाई जाती है, तब लालू प्रसाद यादव को कई जन्म लेने पड़ेंगे । लालू प्रसाद यादव की राजनीति पीड़ितों को न्याय दिलाने से शुरू हुई थी। इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण आंदोलन के संघर्ष में उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। फिर वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने सामाजिक न्याय के एक बड़े नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। लेकिन उन्होंने चारा घोटाला कर अपनी तमाम राजनीतिक उपलब्धियों पर पानी फेर दिया । वे राजनीति में जितना सफल रहे, अगर वे चाहते तो समाज को इसका बहुत ही बड़ा फायदा दे सकते थे । लेकिन खुद की आर्थिक हैसियत बढ़ाने में उन्होंने ऐसा आर्थिक अपराध कर दिया कि उनकी राजनीति लीला ही समाप्त हो गई । इस कारण उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। दिन-ब-दिन उनका स्वास्थ्य गिरता चला जा रहा है। न्यायालय के रूख देखकर प्रतीत होता है कि उन्हें सजा से आजीवन मुक्ति नहीं मिलेगी।

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