Tuesday, May 14, 2024
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पारस अस्पताल ने 105 वर्षीय वृद्धा की जान बचाई 

महिला मरीज को लिवर हाइडेटिक सिस्ट हो रखा था और सिस्ट इतना बड़ा रूप ले चूका था की लिवर का  80% हिस्सा सिस्ट में बदल गया था।

राँची:

राँची के पारस अस्पताल ने हज़ारीबाग निवासी 105 वर्षीय महिला, जिनके पेट में एक सिस्ट यानी कीड़े वाला ट्यूमर जैसा पाया गया था । जिसके कारण पीड़ित महिला को असह्य दर्द हो रही थी।

महिला मरीज ने कई चिकित्सकों से संपर्क किया किन्तु बीमारी की गंभीरता और महिला की असह्य पीड़ा को देखते हुए चिकित्सकों ने अपने हाथ खड़े  कर दिए।

चिकित्सकों के पास चक्कर लगते हुए लगभग ३ महीना से महिला इस दर्द को झेल रही थी। दर्द के कारण महिला इतनी कमजोर हो चुकी थी की उनका चलना फिरना पूरी तरह  बंद हो गया था | बावजूद इसके बीमारी से संबंधित जाँच भी नहीं  हो पायी और सिस्ट (कीड़े वाला ट्यूमर) ऐसा बड़ा रूप ले रहा था की पेट से चीरते हुए बाहर निकल रहा हो | तत्पश्चात् महिला मरीज के घरवालों ने पारस एच इ सी , रांची के डॉक्टर (मेजर) रमेश दास से संपर्क किया। अस्पताल पहुँचकर डॉक्टर (मेजर) रमेश दास से मिले और डॉक्टर से राय ली। डॉक्टर (मेजर) रमेश दास ने सी टी स्कैन रिपोर्ट को देखा और पाया की महिला मरीज को लिवर हाइडेटिक सिस्ट हो रखा है और सिस्ट इतना बड़ा रूप ले चूका था की लिवर का  80% हिस्सा सिस्ट में बदल गया था। परिणाम ये था की सिस्ट पेट के चमड़े को फाड़ते हुए बाहर निकल रहा था | 

डॉक्टर (मेजर) रमेश दास ने महिला मरीज़ के परिजनों से सलाह कर ऑपरेशन के द्वारा सिस्ट को निकालने की तैयारी शुरू कर दी। महिला मरीज के ऑपरेशन के लिए सबसे बड़ी  समस्या थी उनको एनेस्थेसिआ दिए जाने को लेकर। क्यूँकि महिला की उम्र काफ़ी ज़्यादा थी और इस उम्र के मरीज़ों को एनेस्थीसिया देना बहुत बड़ी चुनौती थी। कभी कभी इस उम्र में एनेस्थीसिया ख़तरनाक भी साबित हो जाता है। लेकिन एनेस्थीसिया हेड डॉ. संजय वर्मा एवं उनकी टीम ने एक बहुत बड़ा और गंभीर निर्णय लिया और 105 वर्षीय महिला मरीज को एनेस्थेसिआ देने का फैसला किया |

डॉक्टर (मेजर) रमेश दास एवं डॉ. ओम प्रकाश  ने महिला मरीज की सफल सर्जरी की और सिस्ट को महिला के शरीर से बाहर निकाला।महिला अब खतरे से बाहर है। महिला अब सहज महसूस कर रही थी और घर जाने को तैयार थी। महिला ने इस असह्य पीड़ा से निजात दिलाने हेतू पारस अस्पताल एवं चिकित्सकों का आभार व्यक्त कर कहा कि- मुझे तो विश्वास नहीं था कि मैं अब बच पाऊँगी, लेकिन पारस अस्पताल में उन्हें नयी ज़िंदगी मिल गई । अस्पताल से उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है।

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