अयोध्या में ‘भगवान रामलला प्राण प्रतिष्ठा’ कार्यक्रम को लेकर संपूर्ण देश ‘अयोध्या धाम’ के रूप में तब्दील हो उठा है। राम राम के नारों से देश गुंजायमान हो रहा है। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम ने संपूर्ण देश को एक सूत्र में बांध दिया है । देश के हर हिस्से में प्राण प्रतिष्ठा को हमेशा के लिए यादगार बनाने की तैयारियां पूरी हो गई हैं। आज पूरा देश अलग रूप में दिखाई देगा। अयोध्या में भगवान रामलला के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से बेश कीमती उपहार पहुंच चुके हैं। खबर यह भी आई है कि सौ फीट के महावीर झंडे से अयोध्या नगर खिल उठा है। । देश भर से हजारों की संख्या में लोग पैदल यात्रा कर अयोध्या पहुंच चुके हैं। अयोध्या में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में विभिन्न धर्मावलंबी भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा को लेकर खबरें सिर्फ देश की मीडिया में ही नहीं बल्कि विश्व मीडिया में भी इसकी व्यापक चर्चा हो रही है। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का सीधा प्रसारण लगभग 161 देश में किया जाएगा।
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भगवान राम ने राजा और प्रजा के भेद को मिटा दिया
भगवान राम ने अपना संपूर्ण जीवन एक जनतांत्रिक राजा के रूप में जिया था। उन्होंने राजा और प्रजा के भेद को मिटा दिया था। समाज का स्वरूप कैसा होना चाहिए ? एक राजा का अपने प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए ? प्रजा का अपने राजा के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए ? इन तमाम मुद्दों को उन्होंने न करके दिखाया बल्कि जिया भी था। हम सब को 22 जनवरी को भगवान राम की मर्यादा के अनुकूल कार्य करना चाहिए । भगवान राम का संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत हैं । जिस उम्र में उन्हें अयोध्या का सम्राट बनना चाहिए था । उस उम्र में उन्हें वन गमन करना पड़ा था । पिता की बात को सच साबित करने के लिए उन्होंने राजतिलक का त्याग कर वन गमन स्वीकार किया था । वन गमन के उनके निर्णय पर माता सीता, अनुज भ्राता लक्ष्मण ने भी उनके साथ वन गमन का निर्णय लेकर एक मिसाल पेश की थी । अनुज भ्राता भरत को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने स्वयं को अयोध्या का सम्राट बनने से इनकार किया था । प्रभु राम के आदेश पर भरत ने जमीन पर बैठकर ही उन्होंने सत्ता का संचालन किया था। आज थोड़े से धन के लिए एक भाई दूसरे भाई को मारने के लिए उतारू है। सकल समाज को भरत और भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए ।
भगवान राम ने त्याग, समर्पण और परोपकार की सीख दी
इधर भगवान राम ने वन गमन के दरमियान ऋषि-मुनियों को दानवों के अत्याचार से मुक्त करवाया था । लंकाधिपति रावण द्वारा माता सीता का अपहरण करने पर भगवान राम ने वानर सेना की मदद से लंका पर आक्रमण किया था। फलस्वरुप लंकाधिपति रावण को भगवान राम के हाथों सद्गति प्राप्त हुई थी । इस युद्ध में भगवान राम विजय हुए थे । भगवान राम ने लंका का शासन लंकाधिपति के भाई विभीषण को सौंप कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसके पूर्व ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है । वनवास से वापस आने के बाद भरत ने भगवान राम को गले लगाया और अयोध्या का सिंहासन उन्हें समर्पित कर दिया था ।भगवान राम सत्य के प्रतीक है । उन्होंने संपूर्ण देशवासियों को त्याग, समर्पण और परोपकार की सीख दिया है । उन्होंने मिलजुल कर रहने का संदेश दिया है । उन्होंने समाज में व्याप्त छोटे बड़े के भेद को मिटाने की बात बताई है । रामराज्य अर्थात सब ओर सुख ही सुख हो । जिस राज्य में कोई दुखी ना हो । राजा और प्रजा में कोई भेद हो । सभी प्रजा को समान अधिकार और समान न्याय मिले । यही रामराज्य है ।
सनातन धर्म के सभी बड़े गुरु पहुँचे अयोध्या
अयोध्या में भगवान रामलला के बाल रूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। सनातन धर्म के सभी बड़े गुरु अयोध्या पधार चुके हैं। जिन लोगों को रामतीर्थ ट्रस्ट द्वारा निमंत्रण प्राप्त हुआ , वे अयोध्या पधार चुके हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के मुख्य यजमान होंगे। वे शास्त्र सम्मत नियम का पालन पिछले दस दिनों से कर रहे हैं। भारत के लिए यह प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम एक ऐतिहासिक महत्व का आयोजन बन गया है । जिसकी गूंज सदियों तक सुनाई देगी। समस्त देशवासी भगवान राम के बाल रूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उत्साहित है। हर ओर प्रभु राम के बाल रूप मूर्ति के विराजमान होने के मंगल गीत गाए जा रहे हैं। यह तिथि सदा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। भगवान राम का जन्म 8,80,100 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल नवमी के दिन अयोध्या में हुआ था। प्रभु राम के जन्मदिन की यह तिथि जिस प्रकार भारतीय जनमानस के दिलों में सदा सदा के लिए अंकित हो गई । ठीक उसी प्रकार 22 जनवरी की तिथि भी करोड़ों देशवासियों के दिलों में अंकित हो गई है।
प्रभु राम के बाल रूप को आकार दिया है, मूर्तिकार अरुण योगीराज ने
प्रभु राम के जन्म के समय अयोध्या में जैसी उत्साह रही थी, आज उनके बाल रूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में उत्साह देखी जा रही है। श्याम शीला से निर्मित प्रभु राम के बाल रूप की मूर्ति को आकार दिया है, कर्नाटक के एक विलक्षण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने। करोड़ों देशवासी भगवान राम के इस विग्रह बाल रूप मूर्ति का दर्शन करने के लिए लालायित हो उठें। लगभग पांच सौ बरसों की लंबे संघर्ष के बाद प्रभु राम अपने गर्भगृह पर विराजमान होने जा रहे हैं। प्रभु राम भारतीय संस्कृति और जनमानस के एकता के सूत्रधार के रूप में जाने जाते हैं।
प्रभु राम के स्मरण मात्र से मन प्रसन्न चित हो उठता है। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्रभु राम, भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाने जाते हैं। प्रभु राम का प्रादुर्भाव असत्य पर सत्य का परचम लहराने के लिए हुआ था । त्रेतायुग में सत्य को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रभु राम को कठिन संघर्ष से गुजरना पड़ा था। राजतिलक से कुछ घंटे पूर्व प्रभु राम को चौदह बरसों के लिए वनवास का आदेश प्राप्त हुआ था। पिता दशरथ के वचन का पालन करते हुए माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए निकल पड़े थे। त्याग का ऐसा उदाहरण विश्व के किसी भी शास्त्र में देखने को नहीं मिलता है। प्रभु राम ने अपने चौदह वर्षों के वनवास के दौरान सत्य प्रतिष्ठित करने के लिए जो कुछ भी किया था, सदा भारतवासियों को गौरवान्वित करता रहेगा।