Friday, May 3, 2024
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बंगाल : देश की चिंता छोड़ सत्ता हथियाने चले थे,माया मिली न राम।IMA ने मोदी को कोरोना सुपरस्प्रेडर बताया।

देश भर में मेडिकल से जुड़े लोग सभी को कोविड के नियम कानून समझाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं। तो वहीं देश के प्रधानमंत्री बिना इन सब की परवाह किए हुए महामारी से संबंधित गाइडलाइंस को हवा में उड़ाते हुए बड़ी बड़ी चुनावी रैलियां करने से कोई परहेज नहीं किया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ नवजोत सिंह दहिया ने देश के सामने यह सच उजागर कर दिया है। डॉ दहिया ने कहा कि वे खुद सुपरस्प्रेडर यानी तेजी से कोरोना संक्रमण फैलाने वाले हैं।

भारत में कोरोना किसी और से नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैलाया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ नवजोत सिंह दहिया ने देश के सामने यह सच उजागर कर दिया है। डॉ दहिया ने कहा कि वे खुद सुपरस्प्रेडर यानी तेजी से कोरोना संक्रमण फैलाने वाले हैं। डॉ दहिया ने नरेंद्र मोदी की लापरवाही का मामला उठाते हुए कहा कि देश भर में मेडिकल से जुड़े लोग सभी को कोविड के नियम कानून समझाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं। तो वहीं देश के प्रधानमंत्री बिना इन सब की परवाह किए हुए महामारी से संबंधित गाइडलाइंस को हवा में उड़ाते हुए बड़ी बड़ी चुनावी रैलियां करने से कोई परहेज नहीं किया। चुनावी रैलियों के साथ ही कुंभ पर सवाल खड़े करते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा कि कोरोना जैसे गंभीर संकट के बावजूद चुनावी रैलियां हुईं, हरिद्वार में कुंभ जैसा बड़ा धार्मिक आयोजन हो गया। इससे पता चलता है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार कोरोना को लेकर कितनी गंभीर है।

डॉ दहिया ने कहा कि ऑक्सीजन की कमी से कई लोगों की मौत हो गई जबकि इसी मोदी सरकार के पास सालों से ऑक्सीजन प्लांट लगाने की फाइलें अटकी पड़ी हैं। इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। देश के हर शहर के श्मशान घाट लाशों से भरे पड़े हैं, अस्पतालों के बाहर एंबुलेंस की लाइनें लगी हुई हैं। डॉ दहिया ने यहां तक कह दिया कि जब देश में कोरोना की पहली लहर आई तो यही प्रधानमंत्री नमस्ते ट्रंप और पता नहीं क्या क्या कर रहे थें। इस नमस्ते ट्रंप में भारी संख्या में लोग इकट्ठे हुए। सभी गाइडलाइंस को तोड़ा गया। जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो बजाय कि उस पर काम करने के, ये प्रधानमंत्री बंगाल में चुनाव प्रचार करने लगें. बड़ी बड़ी रैलियां करने लगें. भीड़ जुटाने लगें।

मालूम हो कि दुनिया भर की कई महत्पूर्ण संस्थाओं और संगठनों ने भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हरकतों की आलोचना की है।

कड़ी मेहनत और कूटनीति के बावजूद भी भाजपा को नही मिली सत्ता

पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को मिली प्रचंड जीत ने ममता बनर्जी पर राज्य की जनता के विश्वास को प्रमाणित कर दिया है और पीएम नरेंद्र मोदी के ‘असल परिवर्तन’ वाले नारों को ख़ारिज कर दिया । राज्य में टीएमसी के खाते में जहां 200 से भी अधिक सीटें आई हैं तो बीजेपी को 100 से भी कम सीटों पर संतोष करना पड़ा है। वह भी तब जब बीजेपी ने बंगाल फतह करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। खुद पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल की कमान संभाली थी और ताबड़तोड़ रैलियां तक कीं। 

साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन और आक्रामक चुनावी अभियान के बाद कई राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि राज्य में बीजेपी और टीएमसी के बीच कांटे की टक्कर होगी। हालांकि नतीजे सबके सामने हैं और टीएमसी की आंधी के आगे कोई भी पार्टी टिक नहीं सकी है। कांग्रेस-लेफ्ट का तो सूपड़ा ही साफ हो गया है। दीदी की इस प्रचंड जीत के पीछे भी कुछ कारण हैं। ये वही कारण हैं जिन्हें भांपने में बीजेपी चूक गई और नतीजा उनकी अपेक्षा से एकदम उलट दिखा।

मुस्लिम वोटों की एकजुटता

बीजेपी को उम्मीद थी कि अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट की वजह से मुस्लिम वोट का एक बड़ा हिस्सा ममता के खाते में नहीं रहेगा। हालांकि, इससे उलट अल्पसंख्यक समुदाय ने एकजुट होकर ममता बनर्जी के लिए वोट दिया। बीजेपी के सत्ता में आने का अल्पसंख्यकों में इतना डर था कि उन्होंने इस कदर एक होकर मतदान किया जिससे लेफ्ट-कांग्रेस दोनों का ही बंगाल के राजनीतिक नक्शे से सफाया हो गया। ममता ने सफलतापूर्वक मुस्लिमों का वोट पाया। 
यहां तक कि कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले मालदा और मुर्शीदाबाद (दोनों ही जिले अल्पसंख्यक समुदाय के दबदबे वाले हैं) में भी ममता को ही वोट पड़े। दूसरी तरफ हिंदू वोट तृणमूल और बीजेपी के बीच बंट गए। 

बंगाली पहचान एवं संस्कृति
तृणमूल ने अपना चुनावी अभियान बंगाली पहचान के इर्द-गिर्द ही रखा। टीएमसी ने न सिर्फ बीजेपी को ‘बाहरियों की पार्टी’ करार दिया बल्कि ऐसे नारे दिए जिनमें ममता को राज्य की बेटी बताया गया। ममता और टीएमसी दोनों ने ही जनता को विश्वास दिलाया कि वे ‘गैर-बंगालियों’ के खिलाफ नहीं हैं। हालांकि, यह प्रचार जरूर किया गया कि बीजेपी बंगाल की संस्कृति को बर्बाद कर देगी। इसके अलावा कोरोना से निपटने के लिए तृणमूल की ओर से केंद्र पर लगाए भेदभाव के आरोपों ने भी बंगाली लोगों का ममता पर भरोसा बढ़ाया।

दलबदलू नेता बोझ बनकर रह गए
बीजेपी को उम्मीद थी की टीएमसी छोड़कर आए नेता ममता बनर्जी और तृणमूल के अन्य नेताओं की कमजोरियों को भुनाने में कामयाब होंगे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। राजीब बनर्जी, बैशाली डालमिया, रबींद्रनाथ भट्टाचार्य, प्रबीर घोषाल सहित टीएमसी के अन्य कई दिग्गज बीजेपी के लिए बोझ साबित हुए। बीजेपी ने ऐसे कई टीएमसी नेताओं को शामिल कर लिया जिनसे उनके क्षेत्र की जनता पहले से नाराज थी।

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