Tuesday, April 30, 2024
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मानवता की प्रतिमूर्ति हैं धैर्यवान दयानंद

हर वर्ष पुत्र की पुण्यतिथि और जन्मदिन पर मानव सेवा की करते हैं मिसाल पेश

पटना/बख्तियारपुर : संसार मे पुत्र शोक से बड़ा कोई शोक नही होता। अक्सर पुत्र की मौत और पुत्र वियोग से लोग टूट जाते हैं।जिसे भी इस दुखद परिस्थिति से गुजरना पड़ता है,उन्हें खुद व अपने परिवार को संभाल पाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनमे धैर्य धारण करने की असीम क्षमता होती है।ऐसे ही एक दम्पति ने अपने एकलौते पुत्र को खोने के बाद असीम धैर्य व दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए टूटने व बिखरने के बजाय उसकी पुण्यतिथि व जन्मदिन के दिन पीड़ित मानवता की सेवा का संकल्प लिया। मुफ्त चिकित्सा कैम्प व खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन कर अपने पुत्र की याद को जीवंत बना रखा है। मानवता की प्रतिमूर्ति इस शख्स का नाम दयानन्द शर्मा है। श्री शर्मा बख़्तियारपुर गांव के निवासी हैं। वे देना बैक से रिटायर्ड हैं। उनकी पत्नी इंदु देवी उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापिका से सेवानिवृत्त हुई हैं। उनकी तीन बेटियां है। जबकि उन्हें एकमात्र पुत्र ऋषिराज था।वह मुंबई इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्ययनरत था।पढ़ाई के दरम्यान ही वर्ष 2006 में 19 अगस्त को डेंगू से उनकी मौत हो गयी। एकलौते पुत्र की अकस्मात मौत की सूचना ने दयानन्द शर्मा व उनकी पत्नी इंदु देवी को झकझोर कर रख दिया। अपने एकलौते पुत्र खोने के बाद दोनो पति-पत्नी डिप्रेशन में चले गए. बमुश्किल इस अत्यंत पीड़ादायी परिस्थिति से स्वयं को बाहर निकालते हुए श्री शर्मा ने अपनी पत्नी को भी संभाला।तदुपरान्त दोनो पति-पत्नी ने अपने पुत्र की मौत पर मातम मनाने के बजाय उसके पुण्यतिथि व जन्मदिन के मौके पर पीड़ित मानवता के सेवार्थ कल्याणकारी कार्य करने का निश्चय किया। तब से आज तक दोनो पति-पत्नी व ऋषिराज की तीनों बहनें, जो अब शादी-शुदा हो चुकी है,ऋषिराज के पुण्यतिथि 19 अगस्त व जन्मदिन 30 जनवरी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष नि:शुल्क चिकित्सा शिविर, खेलकूद प्रतियोगिता आदि का आयोजन कर अपने पुत्र की स्मृति को जीवंत बनाकर समाज के सामने एक नजीर पेश करते हैं। इस वर्ष भी 30 जनवरी को नेत्र चिकित्सा कैम्प का आयोजन कर 210 मरीजों के आंखों की न केवल मुफ्त जांच की गई,बल्कि इनमें से 95 रोगियों को ,जो मोतियाबिंद से पीड़ित है,उनका पटना के श्री साईं लायन्स नेत्रालय में ऑपरेशन के साथ ही मुफ्त दवा व लेंस आदि की भी व्यवस्था की गई है। पुत्र के खोने के उपरांत भी मातम मनाने के बजाय उसके पुण्यतिथि व जन्मदिन पर जरूरतमन्दो की सेवा करने का उनका जज्बा काबिले तारीफ है। उनका यह कदम समाज के लिए अनुकरणीय भी है।

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