प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ का पर्व नारी शक्ति की महत्ता दर्शाता है। शास्त्रों में स्त्री को शक्ति का स्वरूप माना गया है। उन्हें जगत जननी भी कहा गया है। यह भी सर्वविदित है कि पुरुष का उत्कर्ष और दांपत्य जीवन स्त्री शक्ति पर टिका हुआ है। करवा चौथ स्त्री शक्ति की सुखद अनुभूति कराता है। हम ईश्वर के प्रति ध्यान लगाते हुए जब भी उन्हें साकार रूप में देखते हैं, तो स्त्री और पुरुष दोनों रूपों में ही उन्हें पाते हैं। जैसे भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी को देखते हैं। भगवान शिव के साथ पार्वती को देखते हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ सदैव सीता को देखते हैं। जब हम भगवान को याद करते हैं, तो पहले स्त्री शक्ति का ही नाम आता है। जैसे सीता-राम, राधा-कृष्ण,गौरी -शंकर आदि। इन नामों का शुभारंभ स्त्री शक्ति से ही होता है। इन्हीं नामों से हम भगवान का स्मरण किया करते हैं।
इसी प्रकार करवा चौथ का पर्व भी स्त्री शक्ति की महत्ता दर्शाता है। साथ ही यह पर्व हमें इस बात का भी अहसास कराता है कि दांपत्य जीवन में स्त्री का प्रेम पूर्ण आचरण और परिवार के प्रति उसका दायित्व कितना अनमोल और महत्वपूर्ण है।
करवा चौथ के अवसर पर पत्नियां अपने पति की मंगल कामना के साथ निर्जला उपवास रखती हैं। दुल्हन की तरह श्रृंगार करती हैं। यह पर्व सभी हिंदू और विवाहित महिलाओं के लिए खासा महत्व रखता है। इस पर्व के संबंध में मान्यता है कि पत्नियों द्वारा अपने पति
की मंगलकामना के लिए करवा चौथ का व्रत रखने से पति की समृद्धि, दीर्घायु होना सुनिश्चित होता है। इस पर्व के संबंध में पारंपरिक प्रचलित कहानी भी हमें नारी सशक्तिकरण का बोध कराती है। करवा चौथ व्रत का संबंध महाभारत काल से भी बताया जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि द्रौपदी ने भी इस व्रत का पालन किया था। इस संबंध में एक कहावत प्रचलित है कि एक बार अर्जुन तपस्या के लिए नीलगिरी पर्वत पर चले गए। शेष पांडवों को उनकी अनुपस्थिति में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रोपदी ने निराश और हताश होकर वैसे में भगवान कृष्ण का स्मरण किया और उनसे सहायता मांगी। भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि एक बार जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से ऐसी ही विकट परिस्थितियों में सहयोग मांगा था, तो उन्हें करवा चौथ के व्रत का पालन करने की सलाह दी थी। द्रोपदी ने भी निर्देशों का पालन किया और करवा चौथ का व्रत रखा। फलस्वरूप पांडवों को समस्याओं से छुटकारा मिल सका।
करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन इससे संबंधित पौराणिक कथाओं को बड़े चाव और ध्यान से सुनती हैं। इससे संबंधित प्रचलित कहानियों में सावित्री और सत्यवान की कहानी भी एक है, जो एक पवित्र स्त्री के संघर्षों और जुझारूपन को दर्शाती है। इस पर्व के माध्यम से महिलाएं प्रेम व स्नेह का उदाहरण भी प्रस्तुत करती हैं। आपस में हंसती-बोलती और नकारात्मक विचारों से मुक्त रहती हैं। व्रत के दौरान एक दूसरे से सहानुभूति भी साझा किया करती हैं। हम कह सकते हैं कि करवा चौथ के व्रत ने नारी सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त किया है। हम सभी जानते हैं कि मानव जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का सबसे शक्तिशाली स्रोत स्नेह और प्रेम होता है और इसी स्नेह का संदेश करवा चौथ के मूल में समाहित है।
स्त्री शक्ति की महत्ता को दर्शाता है करवा चौथ का पर्व : पूनम सिंह
Sourceनवल किशोर सिंह