Monday, April 29, 2024
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‘बॉलीवुड’ का पुराना गौरव वापस लाने के लिए एक साहसिक पहल की जरूरत है

बॉलीवुड ने अपने बारह दशकों के लम्बे फिल्मी सफर में एक से एक बेहतरीन फिल्मों को आम दर्शकों तक पहुंचा पाने में सफल रहा है। इन फिल्मों का भारतीय जनमानस पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है। इसे हम सब को स्वीकार करना चाहिए।

बॉलीवुड को अपने पुराने गौरव को वापस लाने के लिए एक साहसिक पहल की जरूरत आन पड़ी है।‌ भारतीय चलचित्र से भारतवासियों का गहरा रिश्ता है। सिनेमा का हमारे सामाजिक परिवेश पर गहरा असर पड़ता है। सच्चे आर्थों में सिनेमा हमारे सामाजिक परिवेश का यथार्थ बन चुका है । समाज में घटित हो रही घटनाओं पर बॉलीवुड सिनेमा की पैनी नजर रहती है । जिस तरह एक कथाकार अपनी कहानियों के माध्यम से हमारे समाज के यथार्थ से रूबरू कराता है, ठीक उसी तरह सिनेमा भी सामाजिक यथार्थ से दर्शकों को रूबरू कराता है। जिस दौर से हमारा समाज गुजर रहा होता है, सिनेमा उस दौर का आईना माना जाता है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक घटनाओं पर बॉलीवुड अपने स्थापना काल से ही चलचित्र बनाता आ रहा है। बॉलीवुड ने अपने बारह दशकों के लम्बे फिल्मी सफर में एक से एक बेहतरीन फिल्मों को आम दर्शकों तक पहुंचा पाने में सफल रहा है। इन फिल्मों का भारतीय जनमानस पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है। इसे हम सब को स्वीकार करना चाहिए।

देश की एक बड़ी पूंजी चलचित्र निर्माण में लगती है

भारत में दूरदर्शन के आगमन के बाद भारतीय सिनेमा सुदूर गांव तक पहुंच गया है। बॉलीवुड सिनेमा के साथ ही देश के कई राज्यों में भी चलचित्र का निर्माण प्रारंभ हुआ था। दक्षिण भारत का क्षेत्र इस दिशा में बहुत आगे निकल गया है। आंकड़े बताते हैं कि भारतवर्ष में बॉलीवुड सहित देश के अन्य राज्यों में बनने वाली फिल्मों की कुल संख्या सालाना लगभग दो हजार के आसपास है। चलचित्र निर्माण में सालाना अरबो रुपए इन्वेस्ट होते हैं। अर्थात देश की एक बड़ी पूंजी चलचित्र निर्माण में लगती है। लाखों की संख्या में फिल्म इंडस्ट्री ने लोगों को रोजगार दिया है। देश की एक बड़ी जनसंख्या चलचित्र निर्माण से जुड़ी हुई है। बॉलीवुड सिनेमा के साथ साउथ की फिल्म इंडस्ट्री काफी तेज गति से आगे बढ़ी है। वही बंगाल की फिल्म इंडस्ट्री भी बॉलीवुड की तरह लोकप्रिय हो चुकी है । बिहार में बनने वाली भोजपुरी भाषा की फिल्मों को अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित करने के लिए एक लंबे संघर्ष से गुजरना पड़ा है। बीते कुछ समय से झारखंड में भी फिल्मों का निर्माण शुरू हो गया। इस दौरान नागपुरी और खोरठा भाषा की बनी कई फिल्मों का प्रदर्शन हुआ लेकिन इन फिल्मों को जो सफलता मिलनी चाहिए थी, अब तक नहीं मिल पाई है। तमिल, कन्नड़ ,ओड़िआ भाषा की फिल्में भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहुंच स्थापित करने पर सफल हो रही हैं। इन फिल्मों की खासियत यह है कि इनमें माटी की खुशबू मिलती है। इन क्षेत्रीय भाषाओं की बनी फिल्में जब अपने क्षेत्र में हिट हो जाती हैं, तब हिंदी में डब होकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रदर्शित की जाती है। जहां कम लागत की बनी ये फिल्में काफी कमाई अपने निर्माता को दे जती हैं ।

बॉलीवुड फिल्म निर्माण इंडस्ट्री के समक्ष कई चुनौतियां

आज बॉलीवुड फिल्म निर्माण इंडस्ट्री के समक्ष कई नई चुनौतियां उत्पन्न हो गई है। बॉलीवुड को क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों से मुकाबला करना है। वहीं बॉलीवुड विदेशी फिल्मों की नकल के कारण अपनी प्रतिष्ठा धीरे-धीरे खोती चली जा रही है। अगर बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री अपने वास्तविक स्वरूप में वापस नहीं लौटता है, तब आने वाले समय में उसकी पहचान और लोकप्रियता और भी कम होती चली जाएगी। यह बॉलीवुड फिल्म निर्माण इंडस्ट्री के लिए अच्छी बात नहीं है। बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े निर्माताओं और निर्देशकों को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

माफियाओं की बड़ी पूंजी बॉलीवुड फिल्म निर्माण में

इस विषय पर विचारणीय यह है कि अच्छी कहानी, अच्छे निर्देशन और गीत संगीत के बल पर दक्षिण भारत की फिल्में देशभर में लोकप्रिय हो रही हैं। दक्षिण भारत की बनी फिल्में दर्शकों की पहली पसंद बनती चली जा रही है । यह इसलिए हुआ कि बॉलीवुड विदेशी नकल के चक्कर में फसता चला गया है। और यहीं से शुरू होती है, बॉलीवुड का पतन। बॉलीवुड फिल्म निर्माण में माफियाओं का जोड़ना इस इंडस्ट्री को अंदर से खोखला बना दिया है। माफियाओं की बड़ी पूंजी बॉलीवुड फिल्म निर्माण में लग चुकी है। बॉलीवुड की निर्माणाधीन अधिकांश हिट फिल्मों में माफिया के पैसे लगे होते हैं । साथ ही ज्यादातर फिल्में विदेशों की नकल पर बनी होती हैं। प्रारंभिक दौर में ऐसी फिल्में सफल जरूर हुईं थीं,लेकिन भारतीय दर्शकों को ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाईं। जिसका परिणाम सामने है।

दादा साहब फाल्के ने बॉलीवुड की स्थापना की

बॉलीवुड की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था। आज उसकी दिशा पूरी तरह बदल चुकी है । बॉलीवुड के बदलते स्वरूप के कारण ही उसका ये रूप हमारे सामने है। दादा साहब फाल्के ने मुंबई में बॉलीवुड की स्थापना की थी। उस कालखंड की बनी फिल्में बिना आवाज की होकर भी दर्शकों की पहली पसंद हुआ करती थीं । फिल्में सिनेमाघरों में लगने के साथ ही दर्शकों की भारी भीड़ जुट जाया करती थी। भारतीय फ़िल्म उद्योग का एक लंबा सफर रहा है। बॉलीवुड फिल्म का एक गौरवशाली इतिहास भी रहा है। इस सफर ने मुंबई फ़िल्म उद्योग को जमीन से आसमान तक पहुंचा दिया। भारतीय दर्शकों ने बॉलीवुड को सर आंखों पर लिया।

विदेशी नकल ने बॉलीवुड को बिगाड़ दिया है

1970 के बाद जिस प्रकार फिल्म माफिया का प्रवेश बॉलीवुड फिल्म निर्माण में हुआ, तब से बॉलीवुड की बनी फिल्मों से अच्छी कहानियां , संवाद लेखन पटकथा, निर्देशन आदि गायब ही हो गए हैं। वहीं कर्णप्रिय गीत भी गायब होते चले जा रहे हैं। एक जमाना था। जब बॉलीवुड फिल्मों के लिए कालजई गीत लिखे जाते थे। ऐसे गीतकारों की खोज देशभर में होती थी। राज कपूर साहब अपनी फिल्मों के गीतों के लिए गीतकार शैलेंद्र के साथ कई दिनों तक साथ रहते थे। फिल्म के गीत पर चर्चा होती थी। तब गीत तैयार होते थे। फिर नौशाद आदि म्यूजिशियन के साथ मिल बैठकर उस गीत पर धूम बनाए जाते थे । कई बैठकों के बाद गीत तैयार हो पता था। वह लगन अब कहां देखने को मिल पाता है ? इन गीतों में देश की माटी की सोंधी महक हुआ करती थी । विदेशी नकल ने बॉलीवुड की शक्ल को ही बिगाड़ कर रख दिया है।

क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों में भी नकल

पुरानी फिल्मों के गीत बरसों बाद भी श्रोताओं और दर्शकों के लिए पहली पसंद बनी हुई हैं। जैसे-जैसे माफिया फिल्मों के निर्माण से जुड़ते चले गए, बॉलीवुड की बनी फिल्में के स्तर गिरते चले गए,जो अनवरत जारी है। वहीं दूसरी ओर साउथ की बनी फिल्में घर-घर में लोकप्रिय होती चली जा रही है। इन दिनों क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों में भी नकल की बू आ रही है । क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्में अगर इस नकल से अपने को बचा नहीं पाईं तो उनके सामने भी कई नई संकट उत्पन्न हो जाएंगे।

फिल्मों के माध्यम से समाज में नवजागरण

इसके साथ ही विचारणीय यह है कि कम बजट की फिल्में भी अच्छी कहानी, अच्छी पटकथा और कर्णप्रिय गीतों के कारण दर्शकों की पहली पसंद बन जाया करती हैं और करोड़ों की कमाई कर लेती हैं। इसलिए बॉलीवुड के फिल्मों के निर्माण से जुड़े निर्माताओं को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है । दादा साहब फाल्के ने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए चलचित्र का निर्माण मुंबई में किया था । उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुनः अच्छी कहानियां, अच्छी पटकथा, कर्णप्रिय संगीत और अच्छे निर्देशन को वापस लाना होगा। तभी बॉलीवुड की पहचान और लोकप्रियता आम दर्शकों के बीच बनी रहेगी। इस प्रसंग के साथ मैं अपनी बात को जोड़ना चाहता हूं कि आखिर दादा साहब फाल्के ने बारह दशक पूर्व मुंबई में फिल्म निर्माण की स्थापना क्यों की थी ? उनका उद्देश्य था कि फिल्मों के माध्यम से समाज में नवजागरण पैदा किया जाए। सामाजिक कुरीतियों को मिटाया जाए। देश के महापुरुषों की जीवनियों फिल्में बनाकर आमजन को जानकारी दी जाए। लेकिन ये सामाजिक नवजागरण का काम धीरे-धीरे समाप्त सा हो गया।

भारत के गौरवशाली इतिहास हो फ़िल्म निर्माण

भारत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। जिस पर सभी भारतीयों को गर्व है। यहां विविध, धर्म, संस्कृति, भाषा के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं। हमारे गौरवशाली वेद, पुराण, उपनिषद तथा विविध धर्म ग्रंथो में ऐसे ऐसे पात्र हैं, जिन पर हजारों वर्ष फिल्मों का निर्माण हो तो भी कहानियों का अंत नहीं होगा। इतने पुराने गौरवशाली इतिहास मौजूद रहने के बावजूद हम सब विदेशी फिल्मों का नकल क्यों कर रहे हैं ? बॉलीवुड को माफिया के पैसों से बनने वाली फिल्मों को पूरी तरह मुक्त करना होगा । बॉलीवुड को भारत की रीति रिवाज, संस्कृति, भाषा को अछुन्न बनाए रखने के लिए उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण के लिए आगे बढ़ना होगा। तभी बॉलीवुड अपनी गौरवशाली पहचान और लोकप्रियता को बचा पाएगा।

Vijay Keshari
Vijay Kesharihttp://www.deshpatra.com
हज़ारीबाग़ के निवासी विजय केसरी की पहचान एक प्रतिष्ठित कथाकार / स्तंभकार के रूप में है। समाजसेवा के साथ साथ साहित्यिक योगदान और अपनी समीक्षात्मक पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं।
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