पूरी राँची झमाझम बारिश में नहा रही है। घंटों से हो रही लगातार बारिश ने राँची का मिज़ाज ही बदल दिया है। रिमझिम बारिश की बूँदों की शीतलता यहाँ के जीवों के मन को शीतल कर रही है। हल्की बारिश और शीतल हवाएँ आनंद-विभोर कर रही हैं। प्रकृति के इस आनंद का रस लीजिए बस।
मौसम हुआ सुहाना
अभी अश्विनी काल चल रहा है। अश्विनी काल का अपना एक अलग महत्व है। अश्विन भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की आज द्वितीया तिथि है। पितृपक्ष की भी शुरुआत हो चुकी है। लगभग 20 वर्ष पहले की यादें ताजा हो आई है। राँची को एक ठंढा प्रदेश कहा जाता रहा है। राँची का आज का मौसम किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा की राँची जैसा मौसम कहीं भी नहीं हो सकता। लेकिन बीते कुछ वर्षों में जंगलों की कटाई और मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने की जद्दोजहद ने यहाँ की मूल वातावरण को लील लिया था। यह भी विडंबना ही है की जब राँची को विकास के नाम पर नोचा जाने लगा तो प्रकृति ने अपना क्रोध ज़ाहिर करते हुए कोरोना नामक त्रासदी को पृथ्वी पर भेजा। कोरोना ने मनुष्यों को प्रकृति का महत्व समझाते हुए कड़ा दंड दिया। जिसके परिणामस्वरूप पूरी पृथ्वी आज प्रकृति के महत्व को समझते हुए प्रकृति के क़रीब जाकर उसका आनंद लेना चाह रही है।
मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज के मौसम का आनंद पृथ्वी के सभी प्राणी ले रहे होंगे। शायद ही कोई जीव होगा जिसे आज परम आनंद की प्राप्ति नहीं हुई होगी।
बरसात अपने अंतिम विदाई की तैयारी में है। ये रिमझिम वारिश जाते जाते सभी जीवों को तृप्त करते हुए विदा होना चाह रही है।
दुर्गा पूजा भी क़रीब आने को है। यह बरसात जाने से पहले शरद ऋतु को प्रवेश देकर जाएगा। राँची में रहनेवाले ज़्यादातर लोग तो घर में बंधे रज़ाई और कंबल निकाल भी लिये हैं। शरद ऋतु को फूलों का मौसम भी कहा जाता है। दिल से स्वागत कीजिए फूलों के मौसम का। धरती की गोद में सजेगी फूलों की सेज। जो निःस्वार्थ आपके मन को आनंद देगा।