पटना : तोक्यो पैरालिंपिक में एथलीट शरद कुमार ने हाई जंप टी63 स्पर्धा में 1.83 मीटर की कूद लगाकर यह साबित कर दिया कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती. शरद की इस उपलब्धि पर उनके परिवार के सदस्य गौरवान्वित हैं. आपको बता दे शरद का जन्म मुजफ्फरपुर के मोतीपुर प्रखंड के कोदर कट्टा गांव में वर्ष 1989 में हुआ. जन्म के 18 महीने के बाद ही शरद को पोलियो का अटैक हुआ, जिससे उनका बायां पैर डैमेज हो गया. लेकिन, शरद ने अपनी इस कमजोरी को ही अपनी ताकत बनायी और कभी मायूस नहीं हुए. शरद के माता-पिता पटना में रहते हैं. पिता सुरेंद्र कुमार ने बताया कि कक्षा पांचवीं से ही वह स्पोर्ट्स में बेहतर करते आ रहा है. शरद स्पोर्ट्स के साथ-साथ पढ़ाई में भी उत्कृष्ट रहे. उन्होंने संतपॉल से 10वीं की पढ़ाई की. इसके बाद प्लस टू की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली स्थित मॉर्डन स्कूल से किया और उन्होंने किरोड़ीमल कॉलेज से पॉलिटिकल सायंस विषय में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की.इसके अलावा उन्होंने जेएनयू से एमए की डिग्री हासिल की. शरद के पिता बताते हैं कि पढ़ाई के साथ-साथ उसने कड़ी मेहनत और लग्न के साथ अपनी स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस भी जारी रखा. उन्होंने बताया कि स्पोर्ट्स में बेहतर ट्रेनिंग के लिए वे यूक्रेन गये जहां उन्हें इंटरनेशनल स्तर की ट्रेनिंग मिली. वहीं शरद कुमार ने मैडल जीतने के बाद बताया कि कांस्य पदक जीतकर अच्छा लग रहा है. मुझे सोमवार को अभ्यास के दौरान चोट लगी थी. मैं पूरी रात रोता रहा और नाम वापिस लेने की सोच रहा था. मैंने कल रात अपने परिवार से बात की. मेरे पिता ने मुझे भगवद गीता पढ़ने को कहा और यह भी कहा कि जो मैं कर सकता हूं , उस पर ध्यान केंद्रित करूं न कि उस पर जो मेरे वश में नहीं है. मैंने चोट को भुलाकर हर कूद को जंग की तरह लिया. बारिश में कूद लगाना काफी मुश्किल था. हम एक ही पैर पर संतुलन बना सकते हैं और दूसरे में स्पाइक्स पहनते हैं. मैंने अधिकारियों से बात करने की कोशिश की कि स्पर्धा स्थगित की जानी चाहिए. लेकिन अमेरिकी ने दोनों पैरों में स्पाइक्स पहने थे. इसलिए स्पर्धा पूरी करायी गयी.