Tuesday, April 30, 2024
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भारत का राष्ट्रवाद, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ से प्रेरित है

भारत का राष्ट्रवाद न संकीर्ण है, न स्वार्थी है और ना ही आक्रामक है । यह सत्यम, शिवम, सुंदरम के मूल्यों से प्रेरित है।' यहां सत्यम, शिवम सुंदरम का अर्थ है, वसुधैव कुटुंबकम। इसे समझने की जरूरत है।

भारत का राष्ट्रवाद, ‘वसुधैव कुटुंबकम् ‘ से प्रेरित है। वसुधैव कुटुंबकम् सनातन ‌धर्म  का मूल संस्कार तथा विचारधारा है, जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है, धरती ही परिवार है । विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जो वसुधैव कुटुंबकम् की आधारशिला पर स्थित है।

भारत का राष्ट्रवाद सांप्रदायिक नहीं हो सकता

जब भारत, संपूर्ण विश्व को अपना परिवार और अपनी धरती मानता है, तब भारत का राष्ट्रवाद सांप्रदायिक कैसे हो सकता है ? देशवासियों को यह जानना चाहिए कि ‘वसुधा एव कुटुम्बकम्’ … यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में अंकित है। भारतीय संसद भारत का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक मंदिर है। विपक्ष के लगभग तमाम बड़े नेतागण केंद्र की सरकार पर राष्ट्रवादी होने का आरोप लगाते रहते हैं । उनसे निवेदन यह है कि पहले राष्ट्रवाद के मायने समझें। नित भारत के राष्ट्रवाद पर प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं । कई तरह के वक्तव्यों के माध्यम से भारत के राष्ट्रवाद पर जोरदार हमले किए जा रहे हैं। भारत के राष्ट्रवाद पर हो रहे हमले पर भारत सरकार ने विपक्षी नेताओं को स्पष्ट जवाब दिया है। एक ओर केंद्र सरकार राष्ट्रवाद को मजबूती के साथ देश में स्थापित करना चाहती है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी नेतागण लगातार भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र पर देशवासियों को गुमराह कर रहे हैं ।

भारत का राष्ट्रवाद सत्यम, शिवम, सुंदरम से प्रेरित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक अमर उक्ति को कोड करते हुए कहा कि’ हमारा लोकतंत्र किसी भी मायने में वेस्टर्न इंस्टिट्यूशन नहीं है। यह ह्यूमन इंस्टिट्यूशन है। भारत का इतिहास लोकतांत्रिक संस्थानों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। प्राचीन भारत में 81 गणतंत्रों का वर्णन मिलता है। भारत का राष्ट्रवाद न संकीर्ण है, न स्वार्थी है और ना ही आक्रामक है । यह सत्यम, शिवम, सुंदरम के मूल्यों से प्रेरित है।’ यहां ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ का अर्थ है, वसुधैव कुटुंबकम। इसे समझने की जरूरत है।

लंबे संघर्ष के बाद भारत को स्वाधीनता मिली

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने यह बात उस समय कही थी, जब उन्होंने स्वयं को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में घोषित किया था। उनका यह वक्तव्य कोई साधारण वक्तव्य नहीं है । मेरी दृष्टि में नेताजी सुभाष चंद्र की यह युक्ति भारत में राष्ट्रवाद की स्थापना से प्रेरित है। भारतवासी देश को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त करना चाहते थे। देश कई छोटे-छोटे रजवाड़ों में बटा हुआ था। सभी रजवाड़ों पर ब्रिटिश सरकार की हुकूमत थी । सभी भारतवासी होते हुए भी कई रजवाड़ों में बंटे हुए थे। भारत एक राष्ट्र के रूप में जरूर नामित था। लेकिन कई रजवाड़ों में बटा हुआ था । भारत का स्वाधीनता आंदोलन ब्रिटिश हुकूमत को देश से बाहर उखाड़ फेंकने के साथ सभी रजवाड़ों को एक करने का भी था। देश के सभी रजवाड़ों को अखंड भारत में शामिल करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यह युक्ति मील का पत्थर साबित हुई । भारतीय स्वाधीनता आंदोलन समस्त देशवासियों को एक करने में सफल भी हुआ था। एक लंबे संघर्ष के बाद भारत को स्वाधीनता मिली थी।

भारत का राष्ट्रवाद पूरे विश्व को एक मानता है

आज फिर से ऐसी शक्तियां देश में सक्रिय हो गई हैं, जो भारत के राष्ट्रवाद पर चौतरफा हमले कर रही हैं। देश की एकता और अखंडता को तोड़ने में लगी हुई हैं। देश में स्थापित भाईचारा को नष्ट करने में लगी हुई हैं। देश में ऐसी राजनीति चलाई जा रही है, जिससे लोगों के बीच नफरत और विद्वेष की भावना बढ़े। यह एक तरह से हमारे राष्ट्रवाद पर गहरा हमला है। हमें सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि भारत का राष्ट्रवाद क्या है ? नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने वर्षों पूर्व कहा था कि ‘भारत का राष्ट्रवाद सत्यम, शिवम, सुंदरम के मूल्यों से प्रेरित है। जहां न किसी तरह की कोई संकीर्णता है, न स्वार्थ है और न ही आक्रामकता है।’ तब फिर कैसे भारत का राष्ट्रवाद संकीर्ण, स्वार्थी और आक्रामक हो गया ? राष्ट्रवाद का मायने है। देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखना। जहां सभी भारत मां की संतान है। न कोई छोटा है। न कोई बड़ा है। सभी को समान अधिकार प्राप्त है। इस बात की गारंटी हमारा भारतीय संविधान भी प्रदान करता है। भारत में रहने वाले सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त है । सभी को एक समान मौलिक अधिकार प्राप्त है। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो भारत का राष्ट्रवाद सत्य पर आधारित है। भगवान शिव के जगत कल्याण से प्रेरित है। यह सर्वदा सुंदर है । भारत का राष्ट्रवाद सभी को मिलजुल कर आगे बढ़ने की बात कहता है। पूरे विश्व की धरती को एक मानता है । इस धरती में निवास करने वाले सम्पूर्ण मानव जाति को एक ही परिवार के सदस्य के रूप में मानता है। भारत आजादी के बाद से इसी नीति पर आगे बढ़ता चला जा रहा है ।

सभी धर्म, पंथ और विचार को आजादी

भारत में रहने वाले, चाहे किसी भी धर्म, विचार अथवा पंथ के लोग हों, सभी समान रूप से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं । सभी लोगों के बीच बेहतर तालमेल हैं । लोग एक दूसरे को आदर की निगाहों से देखते हैं । सभी देशवासी मिलजुल कर एक दूसरे के पर्वों को मनाते हैं। दूसरे के उत्सव को अपना उत्सव मनाते हैं । भारत का राष्ट्रवाद सांप्रदायिक सौहार्द का सीख प्रदान करता है । यहां राम भी मूल्यवान है। रहीम भी मूल्यवान है। ईसा मसीह भी मूल्यवान है। भारत में हर धर्म, पंथ और विचार के लोग अपनी बातों को पूरी आजादी के साथ रखते हैं। मिलजुल कर अपने – अपने कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं । अन्य देशों की तुलना में भारत में निवास करने वाले लोगों को ज्यादा स्वतंत्रता वे अवसर प्राप्त है।

भारत के राष्ट्रवाद यहाँ की संस्कृति मजबूती देती है

भारत विश्व के प्राचीन गणतंत्र देशों में एक है। भारत का इतिहास लोकतांत्रिक संस्थानों के उदाहरणों से भरा पड़ा है । चाहे रामराज्य हो। चाहे कृष्ण राज्य हो । महाराजा दशरथ का राज्य हो । महाराजा जनक जी का राज्य हो। सब में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की गई । हमारा इतिहास लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित रहा है। प्राचीन भारत में 81 गणतंत्रों का वर्णन मिलता है । अर्थात हमारे राष्ट्रवाद की आधारशिला लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है । जहां सत्यम, शिवम और सुंदरम है। भारत के राष्ट्रवाद पर हमला करने वाले विदेशी साजिशकर्ता खुद अपने देश में खुलेआम लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर रहे हैं । दूसरी तरफ भारत पर उंगली उठा रहे हैं। भारत की विश्व भर में बढ़ती लोकप्रियता से कई देश खासे नाराज हैं। भारत की चट्टानी एकता उन देशों को भा नहीं रही है। फलस्वरूप वे भारत को कमजोर करने के लिए कई तरह की साजिशें रच रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि भारत के अपने ही कई भाई – बंधु ऐसी विदेशी ताकतों के बहकावे में आकर राष्ट्रवाद को लेकर भारत के ही लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। अर्थात वे देश की जिस डाली पर बैठकर राजनीति कर रहे हैं, उस डाली को काटने में तुले हुए हैं। फलस्वरूप देश की एकता और अखंडता प्रभावित हो रही है। यह देश तभी एक मजबूत राष्ट्र रहेगा, जब यहां निवास करने वाले सभी लोग एक दूसरे का हाथ मजबूती के साथ पकड़े रहेंगे। हमारी इस मजबूती को ऐसी शक्तियां तोड़ने में लगी हुई हैं। भारत के राष्ट्रवाद की तस्वीर, देश की रीति – रिवाज, रहन – सहन, भाषा, पर्व त्यौहार की बुनावट मिलती है। ये सभी मिलकर भारत के राष्ट्रवाद को मजबूती के साथ बांधे हुए हैं।

भारत एक मजबूत लोकतांत्रिक देश

भारत के राष्ट्रवाद पर हमारे कई ज्ञानी जनों ने भारत सरकार को पुरस्कार वापस कर दिया। उन्होंने भारत सरकार पर राष्ट्रवाद का आरोप लगाया। उन्होंने यहां तक कहा कि राष्ट्रवाद के नाम पर इस देश में एक खास धर्म को आगे बढ़ाया जा रहा है। जबकि यह बात पूरी तरह बेबुनियाद है। भारत का राष्ट्रवाद न कभी संकीर्ण था, न है और न रहेगा। भारत का राष्ट्रवाद न स्वार्थी था, न है और न रहेगा । भारत का राष्ट्रवाद न आक्रामक था, न है और न रहेगा। भारत का राष्ट्रवाद विश्व बंधुत्व की बात को अग्रसारित करता है। जिसमें सभी राष्ट्रों की मंगल कामना निहीत है। तब भारत का राष्ट्रवाद कैसे संकीर्ण, स्वार्थी और आक्रमक हो सकता है ? यह सभी आरोप उसी विदेशी साजिश की राजनीति है। भारत एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरा है । भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था के मुकाबले तेज गति से आगे बढ़ती जा रही है । भारत की वैश्विक पहचान एक मजबूत राष्ट्र के रूप में हो रही है। भारत एक मजबूत लोकतांत्रिक देश के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहा है।
भारत का लोकतंत्र, राष्ट्रवाद की नींव पर आधारित है। भारत के राष्ट्रवाद पर जिस तरह हमले हो रहे हैं, साजिश कर्ताओं के हमले को नाकाम करना भी राष्ट्रवाद है ।भारत का राष्ट्रवाद सबो की मंगल कामना की भावना से प्रेरित है ।

Vijay Keshari
Vijay Kesharihttp://www.deshpatra.com
हज़ारीबाग़ के निवासी विजय केसरी की पहचान एक प्रतिष्ठित कथाकार / स्तंभकार के रूप में है। समाजसेवा के साथ साथ साहित्यिक योगदान और अपनी समीक्षात्मक पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं।
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