Saturday, May 4, 2024
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देश की सत्ता-पलट का केंद्र रहा है पटना, जयप्रकाश की धरती क्या इस बार भी देश की दिशा बदलेगी?

बिहार पहले भी विपक्षी एकता का प्रमाण दे चुका है। वर्षों पहले पटना में हुए विपक्षी एकता सम्मेलन के परिणामस्वरूप ही केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ी थी।

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पूरा विपक्ष रोडमैप तैयार करने में जुट गया है, ताकि अगले चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी को सत्ता से बाहर किया जा सके। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पराजित करने के उद्देश्य से आज बिहार की राजधानी पटना में 15 विपक्षी दलों एकजुट हो रहे हैं । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर विपक्ष के नेता पहुँच चुके हैं। जिनमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्ष के दिग्गज नेता शामिल हैं। देश में ये पहली बार नहीं है जब केंद्र कि सत्ता को बेदख़ल करने के लिए विपक्षी एकजुट हो रहे हों। बिहार पहले भी विपक्षी एकता का प्रमाण दे चुका है। वर्षों पहले पटना में हुए विपक्षी एकता सम्मेलन के परिणामस्वरूप ही केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ी थी।

देश में पहली बार सत्तारूढ़ सरकार को बेदख़ल करने का श्रेय बिहार को ही जाता है। पहली बार साल 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन की नींव पटना में रखी गई थी। जिसका परिणाम हुआ था कि वर्ष 1977 में पहली बार देश में गैर- कांग्रेसी सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी थी। उस समय पटना में हुए विपक्षी एकता सम्मेलन में दलों की सीमाएँ टूट चुकी थी।

साल 1967 में केंद्र की सरकार के खिलाफ डॉ राम मनोहर लोहिया ने छोटे दलों को एकजुट किया था। इसी का असर हुआ था कि बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में क्रांति दल जैसी सीमित जनाधार वाली पार्टी के महामाया प्रसाद से बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री चुनाव हार गये थे। संयुक्त समाजवादी दल (संसोपा) के नेता कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री बनाये गये थे। वो मात्र 3 सीट जीतकर सरकार में आये थे और महामाया प्रसाद सीएम बन गये थे।

1974 में उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रेरित होकर कई दलों का विलय करके 23 जनवरी 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ था। जिसके बाद, चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था । 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में बिहार की 54 लोकसभा सीटों में से 52 पर भारतीय लोकदल, 01 पर जनता कांग्रेस और 01 पर निर्दलीय ने जीत हासिल की थी।

1989 में भी कांग्रेस की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के खिलाफ जनता दल ने अकेले बिहार की 54 में से 32 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा ने पहली बार 8 सीटें जीती थीं। कांग्रेस महज 4 सीटों पर सिमट गई थी। वाम दलों ने भी 5 सीटें जीती थीं जिसने केंद्र में नई बनी वीपी सिंह सरकार को समर्थन दिया था।

आज की विपक्षी बैठक और 1974 का वो विपक्षी एकता सम्मेलन, दोनों का मक़सद एक ही है। केंद्र से सत्ताधारी पार्टी को बेदख़ल करना। उस दौरान जयप्रकाश नारायण ने महंगाई, बेरोजगारी और लोकतंत्र की रक्षा जैसे मुद्दों पर आंदोलन की शुरूआत की थी। यह एक बड़ा संयोग है कि इस बार भी विपक्षी दलों का मुद्दा यही है। एक बार फिर बिहार केंद्र की सत्ता के खिलाफ सियासी प्रयोग की जमीन बनता दिख रहा है। बिहार एक बार फिर विपक्षी एकता का केंद्र बन गया है। चार राज्यों के मुख्यमंत्री बिहार पहुंचे है। इनमें बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन, पंजाब के सीएम भगवंत मान और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शामिल हैं।

एक तरफ़ बिहार में देश के तमाम विपक्षी दल भाजपा को चुनौती देने के लिए एकजुट हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पटना में हो रहे विपक्षी दलों की बैठक पर तंज कसते हुए कहा कि आज पटना में एक फोटो सेशन चल रहा है। शाह ने विपक्ष के सभी नेताओं को चुनौती देते हुए कहा है कि आप चाहे कितने भी हाथ मिला लें एक साथ नहीं हो सकते हैं। यदि आप सब एक हो भी गए तो 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी जी को फिर से पीएम बनने से नहीं रोक सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि बीजेपी एक बार फिर 300 से ज्यादा सीटों के साथ केंद्र में अपनी सरकार बनायेगी।

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