बख़्तियारपुर/पटना:
“आपदा में अवसर” , पिछले कुछ समय से यह नारा हर किसी की ज़ुबान पर एक न एक बार ज़रूर आया होगा। चूँकि पिछले लगभग दो वर्षों से पूरा विश्व लगातार आपदाओं से जूझ रहा है। इन आपदाओं से लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। लाखों जानें गई और लाखों लोग जान बचने के बावजूद भी बेजान जीवन जीने को मजबूर हो गए हैं। लोगों के बदलते जीवनशैली और विकास की बेमतलब रफ़्तार ने प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण दे दिया है।
पूरे विश्व की सरकारें इन आपदाओं में आम जन जीवन को सुविधाएँ मुहैया करा सहारा बन रही है। भारत में भी केंद्र और राज्य सरकार आम जन को हर सम्भव मदद उपलब्ध करा रही है।
कोरोना से अभी पूरी तरह निजात भी नहीं मिल पाया था कि बिहार में बाढ़ ने तबाही मचाना शुरू कर दिया है। बिहार की पवित्र नदी गंगा अपने विकराल रूप में आ गई है। गंगा तट पर बसे गाँवों के लोग बाढ़ की जद में आ गए हैं।बिहार सरकार भी लगातार बाढ़ की स्थिति पर नज़र रखे हुए है और प्रभावित लोगों तक हर संभव मदद पहुँचाई जा रही है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है की इस दुःख की घड़ी में भी कुछ लोग व्यक्तिगत लाभ के अवसर तलाश ले रहे हैं । वैसा अवसर जिसकी नींव बाढ़ प्रभावित लोगों के आंसुओं और आह पर टिकी है। सरकार की जन हितकारी योजनाओं पर कुछ मतलब परस्त और भ्रष्ट लोगों की निगाहें टिकी हुई है। समाज के तथाकथित जन-प्रतिनिधि गरीब और सीधे साधे लोगों को सीढ़ी बनाकर सरकारी जन योजनाओं के पैसे को हड़प ले रहे हैं, और ज़रूरतमंद जनता निस्सहाय होकर सरकार को कोसती रह जाती है।
बाढ़ आपदा को लेकर ताज़ा मामला पटना ज़िले के बख़्तियारपुर प्रखंड की है। वैसे तो पूरा पटना ही बाढ़ से प्रभावित है। लेकिन बख़्तियारपुर प्रखंड से जो खबर आ रही है वह काफ़ी शर्मनाक और मानवता के नाम एक धब्बा है।
जानकारी के अनुसार बख़्तियारपुर के आसपास गंगा नदी उफान पर है और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर चुका है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए बिहार सरकार ने राहत मद की घोषणा की है। जैसा कि हमने पहले भी बताया की सरकार की जन हितकारी योजनाओं पर भ्रष्ट लोगों की पैनी नज़र रहती है,तो बाढ़ राहत मद कैसे इनकी नज़र से बच सकता था।
बख़्तियारपुर प्रखंड में एक पंचायत है – करनौती। जिसके एक तरफ़ गंगा नदी है और दूसरे तरफ़ धोबा नदी। लेकिन करनौती की भौगोलिक संरचना इतनी सुरक्षित है कि आसपास के क्षेत्रों के पूरी तरह से डूब जाने के बाद ही करनौती पंचायत का करनौती गाँव बाढ़ की जद में आ सकता है।
जन प्रतिनिधियों के झाँसे में आकर ग्रामीण पहुँचे प्रखंड कार्यालय
दिनांक 18 अगस्त को करनौती पंचायत के सैकड़ों ग्रामीण अचानक बख़्तियारपुर प्रखंड पहुँचकर बाढ़ राहत मद की राशि की माँग करने लगे और बख़्तियारपुर अंचलाधिकारी पर दबाव बनाने लगे। ग्रामीणों की माँग थी की उन्हें बाढ़ आपदा की सहायता राशि मुहैया कराई जाए। आपको बता दें की बाढ़ आपदा की राशि उन लोगों को मिलती है जिनका गाँव या पंचायत कम से कम सात दिनों तक पानी से घिरा हो और बाहरी क्षेत्रों से सम्पर्क टूट गया हो। जबकि वास्तविकता यह है की करनौती पंचायत में केवल फसल को नुक़सान हुआ है जिसके मुआवज़े के लिए अधिकारी प्रयासरत हैं और जिनके फसल को नुक़सान हुआ है उन्हें नियमानुसार फसल क्षति की राशि भी दी जाएगी। लेकिन प्रखंड का घेराव कर रहे लोगों का कहना था की दूसरे गाँवों की तरह उन्हें भी GR राशि दी जाय। बाढ़ राहत की GR राशि की माँग करने वाले ग्रामीणों की अगुआई पंचायत समिति सदस्य सहित स्थानीय जन प्रतिनिधि कर रहे थे। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पंचायत के गरीब ग्रामीणों को जन प्रतिनिधियों ने यह कहकर प्रखंड ले गए की वहाँ सभी को बाढ़ राहत की राशि के रूप में 6000 का भुगतान होगा। गरीब बेचारा क्या करता? उनके लिए 6 हज़ार एक बड़ी राशि होती है जिसे कमाने में महीना भर लग जाता है। सीधे साधे ग्रामीण उनके झाँसे में आ गए और आनन फ़ानन में जन प्रतिनिधियों के द्वारा मुहैया कराए गए गाड़ियों में बैठकर प्रखंड पहुँच गए। लेकिन झूठ तो आख़िर झूठ ही होता है। और बाढ़ कोई घर में छुपाने की चीज़ तो है नहीं।
बख़्तियारपुर अंचलाधिकारी एक बार तो इतनी भीड़ देखकर सकते में आ गए और पुलिस को सुरक्षा के लिए इसकी सूचना दे दी। ग्रामीणों से बातचीत के क्रम में जब उन्हें मामले की जानकारी हुई तो मुआवज़े की नियम का हवाला देते हुए आश्वासन दिया की सभी बाढ़ प्रभावितों को सहायता दी जाएगी और तत्काल उन्होंने ने सम्बंधित जन प्रतिनिधियों को राहत राशि के आवंटन के लिए सूची बनाने सम्बंधित पत्र भी जारी कर दिया।
बख़्तियारपुर अंचलाधिकारी ने कहा की पहले बाढ़ प्रभावितों का निरीक्षण किया जाएगा फिर इसकी सूची बनाई जाएगी और GR की राशि उपलब्ध कराई जाएगी। अंचलाधिकारी के द्वारा समझाने पर सभी ग्रामीण अपना उदास चेहरा लेकर बैरंग वापस लौट गए।
ज़िलाधिकारी ने प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्देश दिया
स्थानीय मीडिया के माध्यम से जब मामला उच्चाधिकारियों के पास पहुँचा तो पटना के ज़िलाधिकारी ने प्रखंड परिसर में हंगामा करने तथा अंचल अधिकारी पर अनावश्यक दबाव बनाने वाले लोगों पर सख़्त कार्रवाई करने का निर्देश बख़्तियारपुर अंचलाधिकारी को दिया। ज़िलाधिकारी ने बताया की बाढ़ आपदा की राशि नियमानुसार प्रभावित लोगों को दी जा रही है।बाढ़ आपदा राशि के लिए वार्ड एवं पंचायत अनुश्रवण समिति के द्वारा एक सूची बनाकर अंचलाधिकारी को दी जाती है। जिसके बाद जाँच कर प्रभावित लोगों को राशि मुहैया करा दी जाती है। हंगामा करनेवालों ने अनुचित दबाव बनाया है। जिसपर सख़्त कार्रवाई की जाएगी।
प्राथमिकी नहीं दर्ज कराई जाएगी : अंचलाधिकारी
अंचलाधिकारी ने बातचीत में बताया की ग्रामीणों के द्वारा कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया गया है। ग्रामीणों को समझा दिया गया है। ज़िलाधिकारी ने प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्देश दिया है लेकिन प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद उन्हें कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ेगा।इस कारण प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई है।
राहत राशि पहले भी अवैध रूप से ली जा चुकी है
ग़ौरतलब है कि ठीक इसी तरह का मामला करनौती पंचायत में वर्ष २०१६ के बाढ़ आपदा में हुई थी। उस समय भी बाढ़ प्रभावित नहीं होने के बावजूद भी पंचायत के लोगों ने बाढ़ आपदा की सहायता राशि अवैध रूप से ली थी। करनौती पंचायत के एक एक घर में लगभग ५ से अधिक लाभुकों ने बाढ़ राहत की राशि ली थी। उक्त मामले में लोकायुक्त के यहाँ मामला दर्ज हुआ था । लोकायुक्त ने मामले पर सुनवाई करते हुई प्राथमिकी का आदेश दिया था साथ ही मामले में नीलामपत्रवाद भी दायर किया गया है। उक्त मामले में पंचायत के वर्तमान मुखिया के पति पर भी आरोप लगे हैं।
ग्रामीण सूत्रों के अनुसार बिहार में पंचायत चुनाव होने को है। क़यास लगाए जा रहे हैं की यह मामला भी पंचायत चुनाव को लेकर जिसे लेकर उम्मीदवार तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं ताकि वोटरों को अपने ओर कर सकें। वोटरों को लुभाने के लिए मौक़ापरस्त तथाकथित जन नेता किसी भी हद तक जा सकने को तैयार हैं। आपदा में अवसर तलाशने में माहिर ये जन नेता आसानी से मासूम जनता को अपने बातों में फँसा लेते हैं और ग़ैर क़ानूनी काम करवा बैठते हैं।
अभी चुनाव को लेकर उम्मीदवार अपने ख़ास मक़सद के तहत काम करते हैं जैसे :
- चाहे कितना भी बुरा नीति बनानी पड़े अपने प्रतिद्वंदियों को नीचा दिखाना
- भले ही जीवन में कभी किसी की सहायता न की हो लेकिन जनता का सेवक कहलाना
- भले ही समाज के साथ साथ अपने पड़ोसियों की भी बुरा ही चाहता हो , फिर भी मतदाताओं का शुभचिंतक कहलाना
- अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है की इस तरह के मामले से प्रखंड और ज़िला स्तर पर करनौती की कैसी छवि बनेगी।
- क्या जन नेताओं के द्वारा अपने ही पंचायत की छवि ख़राब करने की कोशिस नहीं की जा रही है?
- सरकार में बैठे अधिकारी की नज़र में करनौती की कैसी तस्वीर बनेगी?
- अपने क्षणिक लाभ के लिए वर्षों की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं हो रही?
- अभी तक घोटालों के दाग से बचे इस गाँव के लोगों के सम्मान को चोट नहीं पहुँचेगी?
एक शिक्षित समाज के रूप में प्रतिष्ठित इस गाँव के लोगों को गम्भीर होकर सोचना चाहिए।