Monday, May 6, 2024
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रुस-यूक्रेन युद्ध की वजह क्या है? जानिए मिन्स्क समझौते को …..

मिन्स्क समझौते यूक्रेन की सेना और रूसी समर्थक विद्रोहियों के बीच लड़ाई खत्म करने के लिए हुए थे। हालांकि, ये कभी पूरी तरह लागू नहीं हुए।

रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 11वें सत्र में रूसी राजदूत वैसिली नेबेन्ज़िया ने आरोप लगाया कि इस शत्रुता की शुरुआत रूस ने नहीं यूक्रेन ने की है। रूसी राजदूत ने दावा किया कि यूक्रेन की सरकार ने इस संकट की जड़ रोपी है और उसने 2015 के मिंस्क समझौते का पालन नहीं किया। रूस और यूक्रेन में जारी तनाव के बीच Minsk II समझौते का जिक्र भी होने लगा है।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस को यूक्रेन से पूर्वी यूक्रेन में रूसी-वार्ताकारों द्वारा अलगाववादी युद्ध को समाप्त करने के लिए डिजाइन किए गए 2014 और 2015 के मिन्स्क में हस्ताक्षरित समझौतों पर लौटने का आग्रह किया है।

क्या है मिन्स्क समझौता ?

दरअसल, 2014 और 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रुस और यूक्रेन के बीच समझौते हुए थे। इसे मिन्स्क समझौता (Minsk Agreeement) कहा जाता है। 2014 में जो समझौता हुआ उसे Minsk I और 2015 के समझौते को Minsk II का नाम दिया गया। 

ये समझौते यूक्रेन की सेना और रूसी समर्थक विद्रोहियों के बीच लड़ाई खत्म करने के लिए हुए थे। हालांकि, ये कभी पूरी तरह लागू नहीं हुए।

मिन्स्क-I समझौता (Minsk Agreeement I)

फरवरी 2014 में यूक्रेन से रूसी समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को विरोध के बाद देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद रूसी समर्थक विद्रोहियों ने यूक्रेन के क्रीमिया पर हमला कर दिया। कई दिनों तक संघर्ष चलता रहा और रूस ने 18 मार्च 2014 को क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया। इसके बाद भी दोनों देशों के बीच संघर्ष चलता रहा। मामला शांत कराने के लिए यूरोपीय देश आगे आए।यूक्रेन और रूसी समर्थित अलगाववादियों ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में 12-सूत्रीय संघर्ष विराम समझौते पर सहमति व्यक्त की थी। इसमें कैदियों की रिहाई और हथियारों की वापसी की बात भी शामिल थी।

  • इसके प्रावधानों में कैदियों का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता और भारी हथियारों को हटाना आदि शामिल थे।
  • यह समझौता दोनों पक्षों द्वारा उल्लंघन के साथ जल्दी टूट गया था।

हालांकि, दोनों देशों के उल्लंघन के कारण ये समझौता टूट गया।

मिन्स्क-II समझौता (Minsk Agreeement II)

फरवरी 2015 में एक बार फिर रूस, यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि साथ आए।

रूस, यूक्रेन, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (Organisation for Security and Cooperation in Europe: OSCE) के प्रतिनिधियों और दो रूसी समर्थक (डोनेत्स्क और लुहंस्क के अलगाववादी) नेताओं ने फरवरी 2015 में मिन्स्क में 13-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए।

  • फ्रांस, जर्मनी, रूस और यूक्रेन के नेता उसी समय वहां एकत्र हुए और समझौते के लिए समर्थन की घोषणा जारी की।
  • इस समझौते ने सैन्य और राजनीतिक पहलों की एक शृंखला निर्धारित की, जो अभी तक लागू नहीं हुई हैं।

क्या थे 13 मुद्दे?

  1. तत्काल युद्ध विराम।
  2. दोनों पक्ष भारी हथियारों की वापसी करेंगे।
  3. ऑर्गनाइजेशन फॉर सिक्योरिटी एंड को-ऑपरेशन इन यूरोप (OSCE) पूरी निगरानी करेगा।
  1. यूक्रेन के कानून के अनुसार डोनेत्स्क और लुहंस्क में अंतरिम सरकार का गठन होगा।
  2. लड़ाकों को माफ किया जाएगा।
  3. बंधकों और कैदियों का आदान-प्रदान होगा।
  1. दोनों देश एक-दूसरे की मानवीय सहायता करेंगे।
  2. पेंशन समेत सामाजिक-आर्थिक संबंधों की बहाली होगी।
  1. यूक्रेन अपने देश की सीमा पर नियंत्रण बहाल करेगा।
  2. विदेशी सैनिकों और हथियारों की वापसी होगी।
  3. यूक्रेन के संविधान में सुधार होगा और इसमें डोनेत्स्क और लुहंस्क के लिए अलग से जिक्र होगा।
  1. डोनेत्स्क और लुहंस्क में चुनाव कराए जाएंगे।
  2. रूस, यूक्रेन और OSCE के प्रतिनिधि मिलकर काम करेंगे।

2013 से ही यूक्रेन में धुआँ उठने लगा था

यूक्रेन में राजनीतिक उथल पुथल दिसंबर 2013 में शुरू हो चुकी थी। अप्रैल 2014 में पूर्वी यूक्रेन में राजनीतिक गतिरोध ने हिंसा की शक्ल ले ली। इसी वर्ष पूर्वी यूक्रेन का क्रीमिया अलग होकर रूस में शामिल हो गया। यूक्रेन ने इसका कड़ा विरोध किया। वहीं मॉस्को ने इसे क्रीमिया के लोगों के जनमत संग्रह का सम्मान बताया। क्रीमिया के बाद रूस समर्थक इलाकों लुहांस्क और डोनेत्स्क में यूक्रेन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू हो गया।

पूर्ण स्वायत्ता की मांग

यूक्रेन का आरोप था कि रूस विद्रोहियों को हथियार और सैन्य मदद दे रहा है। विद्रोही पूर्ण स्वायत्ता की मांग कर रहे थे। विद्रोह की आग का शिकार मलेशियन एयरलाइंस की फ्लाइट एमएच 17 भी हुई थी । जुलाई 2014 में हुए उस हादसे में विमान में सवार सभी 298 लोग मारे गए थे। इसके बाद भी संघर्ष जारी था। एक तरफ यूक्रेन की सेना थी तो दूसरी तरफ रूस समर्थक अलगाववादी। उस संघर्ष में कम से कम 6000 लोगों की मौत हुई थी। हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा था।

फिर भी क्यों खत्म नहीं हुआ रूस-यूक्रेन में तनाव?

मिन्स्क II समझौते ने सैन्य और राजनीतिक कदम निर्धारित किए, जो अभी तक लागू नहीं हुए हैं। एक बड़ी रुकावट रूस भी है। उसका कहना है कि वो संघर्ष का हिमायती नहीं है, इसलिए इस समझौते को मानने के लिए वो बाध्य नहीं है। रूस और यूक्रेन दोनों ही अपनी-अपनी तरह से इस समझौते के बारे में बात करते हैं, इसलिए ये एक पहेली की तरह बन गया है।

तो फिर अब क्यों इसकी बात हो रही?

दरअसल, मिन्स्क II रूस और यूक्रेन को बातचीत की टेबल पर लाने का एक जरिया है। इसके अलावा ये समझौता रूस को इस बात की गारंटी देता है कि यूक्रेन कभी NATO में शामिल नहीं होगा। वहीं, ये समझौता यूक्रेन को अपनी सीमा पर कंट्रोल का अधिकार देता है जिससे अभी के लिए रूस का हमला टल सकता है. हालांकि, एक डर इस बात का भी है कि रूस चाहता है कि यूक्रेन डोनेत्स्क और लुहंस्क को भी विदेश नीति के मामले में वीटो का अधिकार दे। लेकिन यूक्रेन इस बात से इनकार करता है। डोनेत्स्क और लुहंस्क में रूसी समर्थकों की सत्ता है। यूक्रेन में बहुत से लोग मानते हैं कि मिन्स्क II समझौता उन्हें रूसी हमले से बचा सकता है.

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