पटना : बीते वर्ष झारखण्ड में सम्पन हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद जदयू के तेवर काफी सख्त है। बिहार में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जदयू अध्यक्ष और राज्य के मुखिया नीतीश कुमार भाजपा पर दबाव बनाने में जुट गए हैं। उनकी रणनीति दबाव बना कर चुनाव में भाजपा से अधिक सीट हासिल करने की है। इसी रणनीति के तहत झारखंड चुनाव के नतीजे आने के बाद लगातार हमलावर रुख अपना रही जदयू की ओर से उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने चुनाव से बहुत पहले अधिक सीटों की मांग की है। अब देखना ये होगा की क्या भाजपा बड़ा दल होने का दवाब जदयू पर बनाती है या जदयू सीएम नीतीश का चेहरा प्रस्तुत कर भाजपा पर दवाब बनाने में सफल हो पाती है। बीते 2 सालों में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कई राज्य गवाएं है। जिसके कारण भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़ा हो गया है। इन्ही मौके का फायदा उठाने में जदयू फिलहाल लगी हुई है।
दरअसल लोकसभा चुनाव में काफी खींचतान के बाद दोनों दल बराबर सीटों पर लडने पर राजी हुए थे। भाजपा की कोशिश होगी कि विधानसभा चुनाव में भी इसी फार्मूले के तहत लड़ी जाय। इस फार्मूले के तहत अगर विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू से अधिक सीटें जीत ली तो भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ जाएगी। ऐसे में भाजपा की अगुवाई में सरकार बनाने की संभावना भी बनेगी। जदयू ऐसी स्थिति आने नहीं देना चाहती।
यही कारण है कि भाजपा पर हमला बोलने से पहले जदयू ने झारखंड के चुनाव नतीजे का इंतजार किया। राज्य में पार्टी ही हार के बाद भाजपा पर सबसे अधिक हमले जदयू की ओर से किए गए। जदयू ने भाजपा को दिवंगत पीएम वाजपेयी से गठबंधन धर्म सीखने की नसीहत दी। राजग में संवादहीनता होने और भाजपा नेतृत्व द्वारा मनमानी करने के आरोप लगाए। इसके बाद प्रशांत किशोर ने राज्य में जदयू की भाजपा से अधिक सीटों पर दावेदारी जताई।
राज्य का सियासी समीकरण ऐसा है कि जिसमें दोनों दलों को एक दूसरे की जरूरत है। जदयू के पास नीतीश के रूप में मजबूत चेहरा है, मगर पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की फौज नहीं है। समर्थक मतदाताओं की संख्या भी कम है। दूसरी ओर भाजपा केपास कार्यकर्ताओं और समर्थकों की फौज तो है, मगर उसके पास कोई कद्दावर चेहरा नहीं है। नीतीश की बदौलत पार्टी की पैठ पिछड़ा वर्ग मतदाताओं में बढ़ती है।