कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा के विचारों और उनके सिद्धांतों को जमीन पर उतरना होगा। उन्होंने जिस प्रकार से “आदि धर्म ” नामक पुस्तक लिखकर आदिवासियों के धार्मिक एवं संस्कृति पहचान को बचाए रखने के लिए हमेशा जमीनी स्तर पर अग्रणी भूमिका निभाई।
खासकर झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों को “डॉ रामदयाल मुंडा का जो दर्शन थाl “जे नाची से बाची “वह बहुत बड़ी बात कही थी, लेकिन अभी भी झारखंडी के सोसाइटी को यह बात समझ में नहीं आया। उनका कहने का तात्पर्य यह था जो कला संस्कृति से जुड़े रहेंगेl वही समाज जीवित रहेगा यह उनका संदर्भ था।
डॉ रामदयाल मुंडा की ही देन है जो आज पूरे दुनिया में आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने ही संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रस्ताव दिया था। एक दिन आदिवासी दिवस के रूप से मनाया जाए। ऐसे कालजयी और सांस्कृतिक महायोद्धा के विचारों को अनुसरण करके हमें आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा का एक चिंतन था कि आदिवासियों के लिए एक धर्मकोड हो, जो अलग पहचान से जाने जाएं।
आदिवासी जन परिषद के प्रधान महासचिव अभय भुट कुवर ने कहा कि रामदयाल मुंडा एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक विचारधारा थे। पूरे देश के आदिवासियों को एक होकर के आदिवासियों के धर्मकोड लागू करने के लिए जन आंदोलन तेज कराना होगा और जीत हासिल करना ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।
आदिवासी जन परिषद (महिला मोर्चा )कीज्ञकेंद्रीय सदस्य सेलिना लकड़ा ने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा ने झारखंडी कला संस्कृति के विचारों से लैस थे। समाज में कभी किसी को भेदभाव नहीं किए वह अपने आंदोलन में हमेशा गैर आदिवासियों को भी बगैर भेदभाव किए बिना साथ ले चलने का प्रयास कियाजो सराहनीय कदम है।
कार्यक्रम में उपाध्यक्ष उमेश लोहरा आदिवासी जन परिषद महिला मोर्चा की केंद्रीय सदस्य सेलिना लकड़ा, अनूप बड़ाईक, रामदेव लोहरा, डोरंडा प्रमंडलके अध्यक्ष पूर्णिमा मिज सिनी होनहागा, सुप्रिया कच्छप कलारा मिंज, पिंकी तिर्की सहित अन्य मौजूद थे।
आदिवासी जन परिषद के तत्वावधान में कुसई स्थित बड़ा घाघरा में पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती के अवसर पर श्रद्धासुमन अर्पित की गई
Sourceनवल किशोर सिंह