आलोक पुराणिक:
हाल की पुरातत्व -खुदाई में कुछ बहुत पुराने रेकॉर्ड मिले हैं, जिनमें ये नये तथ्य सामने आये हैं-
सती सावित्री की उस कहानी से भिन्न कुछ तथ्य प्रकाश में आये हैं, जिसमें उसने अपने पति सत्यवान की प्राण रक्षा अपनी बुद्धिमता से की।
नयी प्राप्त जानकारी के मुताबिक सत्यवान अस्वस्थ चल रहा था तो उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया गया।
सत्यवान को पृथ्वीलोक से लाने के लिए यमराज निजी अस्पताल के गेट में घुसे ही थे कि सावित्री के रुदन-स्वर यमराज के कानों में पड़े। सावित्री की ओर न देख यमराज अस्पताल के मुख्य अधिकारी की ओर उन्मुख हुए और बोले-हे वत्स सत्यवान की डिलीवरी दो मुझे।
अस्पताल का सीईओ बोला-तीन करोड़ मुद्राओं का भुगतान करो और सत्यवान को ले जाओ।
यमराज बोले-मुझे यह अस्पताल थोड़े ही खरीदना। मुझे इस अस्पताल की कीमत क्यों बता रहे हो।
इस पर निजी अस्पताल का सीईओ बोला-जी सिर्फ सत्यवान के इलाज की कीमत बता रहा हूँ।
यह सुनकर यमराज को मूर्च्छा आ गयी।
3 घंटे बाद यमराज को होश आया।
चतुर सावित्री बोली-हे यमराज, मृत्यु-संहिता के नियमों के अनुसार किसी को हस्तगत करने का एक समय निश्चित होता है। वह समय बीत जाने के बाद आप उसकी डिलीवरी नहीं ले सकते। सत्यवान की डिलीवरी लेने का वक्त तो आपने निजी अस्पताल के सीईओ से बहस करने और मूर्च्छित होने में निकाल दिया है। नियमानुसार अब आप सत्यवान को नहीं ले जा सकते।
यमराज अपना सा मुँह ले कर लौट गये, सत्यवान को उन्हें पृथ्वी लोक में छोड़ना पड़ा।
अश्वत्थामा यूं भटकता है
ऐसा बताया जाता है कि अश्वत्थामा अभी भी कईयों को दिखता है। ऐसी जनश्रुति है कि अश्वत्थामा ने शरीर का त्याग नहीं किया है।
अश्वत्थामा महाभारत में घायल होने के बाद एक निजी अस्पताल में भरती थी।
निजी अस्पताल के पास उन दिनों मरीज कम थे, सो उन्होने अपने सारे टारगेट अश्वत्थामा से ही पूरे करने की सोची। नतीजे में अश्वत्थामा का अरबों का बिल बन गया। बिल ना चुकाये जाने की दशा में अश्वत्थामा की डिलीवरी उसके परिजनों को नहीं की गयी।
परिणाम यह हुआ कि अश्वत्थामा कायदे से शरीर ना त्याग पाया और कई बार कई लोगों को दिखायी दे जाता है।