Monday, April 29, 2024
HomeDESHPATRAविश्व की पहली वीर साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी, जिससे विदेशी आक्रांता ख़ौफ़ खाते...

विश्व की पहली वीर साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी, जिससे विदेशी आक्रांता ख़ौफ़ खाते थे

रानी ने भारत का सनातनी भगवा ध्वज अरब में लहराया था। साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी विश्व की पहली महारानी हैं जिनके नाम का सिक्का निकला था।

सातवाहन ( शालिवाहन ) राजवंश का शासनकाल चक्रवर्ती सम्राट अशोक के बाद लगभग 518 वर्षों तक रहा। इसी वंश की तीसरी पीढ़ी की साम्राज्ञी थी ‘रानी नागनिका’। विश्व के इतिहास में नागनिका पहली महिला शासक मानी जाती है। महारानी नागनिका महारथी त्राणकिया कि पुत्री एवं सम्राट सिमुक सातवाहन की पुत्रवधू तथा महाराज सातकर्णी की रानी थी। युवावस्था में ही महाराज सातकर्णी का निधन हो जाने के कारण रानी के दो अल्पवयस्क पुत्रों ( वेदश्री और सतश्री) को राजसिंहासन पर बैठना पड़ा। लेकिन उनके अल्पवयस्क होने के कारण प्रशासन की सारी बागडोर माँ नागनिका ही सँभाल रही थी। नागनिका का साथ उनके पिता भी दे रहे थे।

विदेशी आक्रांता देश पर हावी थे 

राज्य का शासन क्षेत्र महाराष्ट्र से कर्णाटक-कोंकण तक फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान (पैठण) थी। जब रानी प्रशासनिक बागडोर सम्भाल रही थी तब सीरिया और बेबिलोनिया के आक्रांताओं का चारों ओर प्रभाव था। वे बहुत क्रूर थे, जिस राज्य में प्रवेश करते सबसे पहले वहाँ की महिलाओं को निशाना बनाते थे। वे लाखों की तादाद में आक्रमण करते थे। धन संपत्ति की लूट के साथ संस्कृति का विनाश करना उनका मक़सद होता था।

रानी ने ख़ुद सेना का नेतृत्व किया 

सातकर्णि शालिवाहन सम्राट के निधन के बाद जब पूरा राज्य शोक में था तब इनके हमलों ने सातवाहन साम्राज्य को बहुत नुक़सान पहुँचाया। जब रानी नागनिका को आक्रांताओं के हमले का पता चला तो उन्होंने गर्जना करते हुए कहा -“महामन्त्री सुशर्मा, हम शान्तिप्रिय हैं और हम अहिंसा के पुजारी हैं। इसका कोई, मनमाना अर्थ न निकाल ले। किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए। इसलिए हमें अपने राष्ट्र को सामर्थ्यशाली साधन सम्पन्न बनाना चाहिए। दुष्ट और हिंसक प्रवृत्तियाँ कभी समाप्त नहीं होती हैं और ऐसी प्रवृत्तियाँ विश्व-विनाशकारी सिद्ध होती हैं, इसलिए राष्ट्रसेना सुरक्षित, सुसज्जित और प्रशिक्षित होनी चाहिए। कोई शत्रु कभी हम पर आक्रमण नहीं करेगा। भविष्य में हम अपने राष्ट्र में अन्तरिम और बाह्य कैसे भी विद्रोह अथवा आक्रमण को क्षमा नहीं करेंगे ! आप इस समाचार को त्वरित प्रसारित करने की व्यवस्था कीजिए।”

वीरांगना साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी ने इन क्रूर आक्रांताओं के साथ प्रथम लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने अपनी सेना का ख़ुद नेतृत्व किया और अपनी पहले ही सैन्य अभियान में क्रूर आक्रांताओं को शिकस्त दी। रानी ने आक्रांताओं की विशाल सेना को भारी क्षति पहुँचाई थी। बड़ी संख्या में आक्रांता सैनिक मारे गये थे, कुछ अपनी जान बचाकर भाग गये, बाक़ी जो बचे वे रानी के सामने घुटने टेककर हथियार डाल दिये थे ।

अरब में भगवा ध्वज लहराया 

साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी अतिकुशल राजनीतिज्ञ भी थी उन्होंने राजनीती के बल पर घोर विरोधी राज्य को भी बिना युद्ध लड़े एक छत्र शासन में ले आई थी। रानी ने शालिवाहन साम्राज्य और वैदिक हिन्दू संस्कृति के सूर्य को कभी अस्त नहीं होने दिया। रानी नागनिका का मानना था कि राष्ट्रनिर्माण हो जाने पर राष्ट्रविकास की संकल्पना को पूर्ण करते समय प्रथम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य सीमा रक्षण का होता है जिसमें चूक होना विनाश का बुलावा होता है, राज्य सबल, सुन्दर, विकसित और सम्पन्न तभी हो सकेगा जब राष्ट्र निर्भय होगा। साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी के शासन के दौरान रोम के साथ व्यापार बढ़ा और साम्राज्य समृद्ध हुआ। अंतर्रदेशीय व्यापार में वृद्धि के लिए परिवहन और व्यापार मार्गों में सुधार किया गया, जिससे भारत के उत्तर और दक्षिण के बीच यात्रा आसान हो गई।रानी ने भारत का सनातनी भगवा ध्वज अरब में लहराया था। साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी विश्व की पहली महारानी हैं जिनके नाम का सिक्का निकला था।

आक्रांताओं ने घुटने टेक दिये 

साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी एक कुशल महारानी के साथ-साथ सनातन हिन्दू संस्कृति के संरक्षण के लिए अवतरित हुई एक विलक्षण, रण कौशलिनी, युद्ध के 49 कला से निपुण शासिका थी। रानी शत्रुओं के बल और दर्प (घमण्ड) का अन्त तो करती ही थी, साथ ही साथ अगर ज़रूरत होती थी तो शत्रु का पूर्णरूप से माँ दुर्गा की तरह नाश कर देती थी। साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी विश्व की पहली शासिका थी, जिन्होंने युद्ध में नेतृत्व करते हुए खुद भी युद्ध लड़ी थी असुर दलों के विरुद्ध और अरब तक राज्य विस्तार की थी। विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार “रोबर्ट वालमन” ने अपनी पुस्तक “वर्ल्ड फर्स्ट वारियर” में लिखा हैं “साम्राज्ञी नागनिका सातकर्णी ने अरब तक राज्य विस्तार की थी। उनके तलवार के आगे 157 विदेशी आक्रांताओं ने घुटने टेक दिये थे।”

शत्रुओं में ख़ौफ़ था 

“शुभांगी भदभदे” नाम की इतिहासकार “साम्राज्ञी नागनिका” नामक उपन्यास में लिखती हैं ” जब आक्रांता निरारि पंचम ने अपनी 1,36,000 दानवी सेना के साथ हमला किया था, तब साम्राज्ञी नागनिका की सेना ने अपनी युद्ध कौशल से भारत की पुण्यभूमि से उसे बहुत बुरी तरह खदेड़ दिया था। साम्राज्ञी नागनिका की मृत्यु के पश्चात भी इन आक्रांताओं की हिम्मत नहीं हो पायी दोबारा आर्यावर्त पे आक्रमण करने की। साम्राज्ञी नागनिका बेबीलोनिया, मेसोपोटमिया और अरबी हमलावरों को भारत से ना केवल खदेडती थी, अपितु उनका पूर्णरूप से विनाश कर देती थी। ताकि ये आक्रमणकारी दोबारा भारत पर आक्रमण करने की सोच भी ना सके। यह प्रसिद्ध लड़ाइयाँ कर्णाटक-कोंकण पैठण में लड़ी गयी थी।”

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments