Friday, May 3, 2024
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कांग्रेस ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की 50 वीं वर्षगांठ को शौर्य गाथा के रूप में मनाने का लिया निर्णय

रांची। बंगलादेश मुक्ति युद्ध 1971 की 50वीं वर्षगांठ एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसके ऐतिहासिक महत्व एवं दिवंगत प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में उप-महाद्वीपीय भू-राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। इस बातों से युवा पीढ़ी को अवगत कराने हेतु अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के निर्देशानुसार झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के तत्ववधान में एक महत्वपूर्ण बैठक प्रदेश कांग्रेस अध्य्क्ष डॉ रामेश्वर उरांव की अध्यक्षता में आहूत की गई। बैठक में बंगलादेश युद्ध 1971 के 50वीं वर्षगांठ शौर्य गाथा के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, समिति के चेयरमैन राजेश ठाकुर, समन्वयक संजय लाल पासवान, संयोजक प्रदीप तुलस्यान, सदस्य गीताश्री उरांव, अमुल्य नीरज खलखो, ज्योति सिंह मथारू, ले. कर्नल समित साहा, राणा संग्राम सिंह एवं जय शंकर पाठक, राकेश सिन्हा मौजूद थे।
बैठक की जानकारी देते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने बताया कि सभी जिलाध्यक्षों को यह निर्देश दिया गया कि अपने जिले से भूतपूर्व सैनिकों को चिन्हित करते हुए उसकी सूची प्रदेश कांग्रेस को अविलंब उपलब्ध करायें। ताकि उन्हें जिला एवं राज्य स्तर पर सम्मानित किया जा सके एवं प्रदेश कांग्रेस इस अवसर पर सभी प्रखंडों एवं जिला में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया गया तथा युवा कांग्रेस और एनएसयुआई को यह निर्देश दिया गया कि अपने संगठन के माध्यम से राज्य एवं जिला स्तर पर निबंध प्रतियोगिता करवाने का निर्देश दिया गया है।
बैठक को संबोधित करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सह राज्य के वित मंत्री डाॅ रामेश्वर उरांव ने कहा कि पश्चिमी पाकिस्तान की बर्बरता और रक्तपात से जन्म हुआ मुक्ति वाहिनी का. इसी दौरान पड़ोसी मुल्क की अस्थिरता का असर पड़ा भारत पर. वहां से लोग भाग-भागकर भारत की शरण लेने लगे. माना जाता है कि उसी दौर में लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत आए. भारत ने बॉर्डर खोल दिए थे, प्रवासी कैम्प बनवा दिए थे और शरणार्थियों की देखभाल के लिए काफी आर्थिक-राजनैतिक प्रयास हो रहे थे।
इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ये मामला पहले वैश्विक पटल पर उठाया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। दूसरी ओर जनसंहार जारी था। लगातार विस्थापन और क्रूरता को देखते हुए भारत ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देने का फैसला किया। पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी पाकिस्तानी सैनिकों ने ही मुक्ति वाहिनी का रूप ले लिया था, जो गुरिल्ला युद्ध के जरिए आजादी पाने की कोशिश में था।
पूर्व केन्द्रीय सुबोधकांत सहाय ने कहा कि जनरल मानेक शॉ की अगुवाई में भारतीय सेना मुक्ति वाहिनी के साथ शामिल हुई। भारत की इस घोषणा के बाद 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर हमला बोल दिया, लेकिन भारतीय सैनिकों ने तुरंत ही उन्हें सीमा से खदेड़ दिया। पाकिस्तानी सेना के हमले की प्रतिक्रिया में भारतीय सेना रणनीति के साथ बांग्लादेश की सीमा में घुसी और लगभग 15 हजार किलोमीटर के दायरे को अपने कब्जे में ले लिया। संघर्ष की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों ओर से लगभग 4 हजार सैनिक मारे गए।
आयोजन समिति के चेयरमैन सह प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि 16 दिसंबर को महज 13 दिनों के भीतर पाकिस्तान ने भारत के आगे घुटने टेक दिए। 90 हजार से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बना भारत लाए गए थे, जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया। 16 तारीख को सेना के समर्पण के बाद पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा एक नए देश के रूप में सामने आया, जिसका नाम बंगलादेश हुआ।

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