रांची/इंदौर : शोध-केन्द्रित वैश्विक एकीकृत दवा कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार के लिए सिंगल इनहेलर ट्रिपल थेरेपी एआईआरजेड-एफएफ बाजार में लांच करने की घोषणा की। यह थेरेपी दो ब्रोन्कोडायलेटर्स,ग्लाइकोप्राइरोनियम एवं फॉर्मोटेरोल और इनहेलेशन कॉर्टिकोस्टेरॉइड फ्लूटिकेसोन का कम्बिनेशन है, जो क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के लिए कारगर है।
कंपनी के मुताबिक इस नये ट्रिपल थेरेपी इनोवेशन के कई फायदे हैं। यह महत्वपूर्ण ब्रोंकोडायलेशन (साँस लेना आसान बनाते हुए), गंभीर दौरों के जोखिम को कम करता है और कई इनहेलर्स पर निर्भरता को समाप्त करता है।
एआईआरजेड-एफएफ का भारतीय जनसंख्या में विशेष रूप से अध्ययन किया गया है। गौरतलब है कि सीओपीडी एक बहुत ही सामान्य, गंभीर और दुर्बलता लाने वाली फेफड़ों की बीमारी है, जो उच्च रक्तचाप
या मधुमेह की तरह है और इस रोग में रोगी को जीवन भर व्यक्तिगत उपचार की आवश्यकता होती है।
वर्तमान में भारत में 55.3 मिलियन से अधिक लोग अलग-अलग गंभीरता वाले सीओपीडी से ग्रसित हैं।
अकेले पिछले दशक में यह बीमारी 24% तक बढ़ गई है, जिसका कारण स्वास्थ्य विशेषज्ञ जागरूकता का
निम्न स्तर और रोग के निदान की कम दर बताते हैं। इन ‘कारणों ने मिलकर भारत में सीओपीडी को
बीमारी से होने वाली मौत का दूसरा प्रमुख कारण बना दिया है।
इस संबंध में सुजेश वासुदेवन, प्रेसिडेंट, इंडिया फॉर्मुलेशंस, मिडल ईस्ट एवं अफ्रीका, ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स ने बताया कि कई कारणों से सीओपीडी भारत में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है। जहां
तक उपचार की बात है, तो प्रस्तावित खुराक का रोगी द्वारा दोषपूर्ण तरीके से अनुपालन किये जाने के
कारण दिन भर में कई इनहेलर्स की आवश्यकता पड़ती है। एआईआरजेड-एफएफ की शुरुआत करके, हम एक
ही इन्हेलर में एक साथ तीन प्रभावी उपचार प्रदान करके मरीजों के इस बोझ को कम करने की उम्मीद
करते हैं। उन्होंने कहा कि ग्लेनमार्क में स्वास्थ्य देखभाल समाधानों का आविष्कार करना और इनोवेशन
करना जारी है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर लगभग 35% सीओपीडी रोग के लिए तम्बाकू धूम्रपान जिम्मेदार है। शेष 65% रोग ज्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले गैर-धूम्रपान करने वालों में पाया जाता है। भारत में सीओपीडी के मामलों की बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है। उनमें यह रोग परिवेशी वायु प्रदूषण, व्यावसायिक कारणों से धूल और गैसों के संपर्क में आने, खराब रहन-सहन की स्थिति, बार-बार श्वसन नली के संक्रमण और इनडोर बायोमास स्मोक के संपर्क में आने के कारण है।