गजब उपलब्धियों के दिन हैं, इन दिनों लाकडाऊन, कर्फ्यू के दिन हैं।करोड़ों के मालिक हैं वह, उस दिन शाम को अंटी में चुपके से कुछ दबाये तेज तेज भागे चले जा रहे थे। चाल से लग रहा था कि जैसे स्मगलिंग करके या कुछ गैर कानूनी काम करके दौड़ रहे हैं। मैंने धरपकड़ की और पूछा तो बताया कि वह पान मसाले के एक पैकेट जुगाड़ कर लाये हैं 100 रुपये का, लाकडाऊन में। अगर बायोडाटा बनाना होता, तो इसे वह अपनी उपलब्धि के तौर पर दर्ज करते, घनघोर लाकडाऊन में भी पानमसाला जुगाड़ लाये, इससे उनके नेटवर्क और प्रभाव का पता चलता है।करोड़पति आदमी पान मसाले को ही परम उपलब्धि मानकर प्रसन्न हो रहा है, संतोषधन और क्या होता है। पान मसाला ही परम धन हो लिया है। लाकडाऊन के दिन परम उपलब्धियों के हैं।मैंने खुद एक परम उपलब्धि हासिल की लाक-डाऊन के दिनों में।लंबे लाक-डाऊन की घोषणा के बाद अचानक से तमाम दुकानों पर भारी भीड़ जमा थी, आटे-चावल-राशन के लिए। मैं भी लाइन में था। दुकानदार सबको डपट रहा था कि सिर्फ पांच किलो आटा दूंगा एक बंदे को। मुझे इशारे से समझाया आप कुछ देर बाद आना। उसने मुझे बाद में पंद्रह किलो आटा दिया यह बताते हुए कि आपका फोटू अखबार में छपता है। अखबारों के कालम में फोटू छपने की वजह से उसने मुझे सम्मानित टाइप मान लिया था इसलिए दस किलो आटा अतिरिक्त दे दिया। उससे बातचीत करके साफ हुआ कि अखबार में जिनके फोटू छपते हैं, वो देर सबेर बड़े आदमी हो जाते हैं, उसे यह ना पता था कि लेखक तो लेखक ही रहता है। जिनके फोटू वांटेड फरार की कैटेगरी में छपते हैं अभी, देर सबेर वो मंत्री विधायक हो जाते हैं। इसलिए जिनके फोटू छपते हैं अखबारों में, उनका वह अतिरिक्त सम्मान करता है।10 किलो अतिरिक्त आटा लाकडाऊन के वक्त में जब घऱ पर लौटा, तो मुझे परम उपलब्धि का अहसास हो रहा था। पत्नी को सोने का नैकलेस लाकर देने पर भी जो गौरव-अनुभूति ना हुई थी, वह दस किलो अतिरिक्त आटा लाकर देने में हुई। मुहल्ले में सबको सिर्फ पांच किलो आटा मिला, मुझे पंद्रह किलो मिल गया। पास पड़ोस मुहल्ले में मेरी बड़ी प्रतिष्ठा बढ़ गयी। बड़ी बड़ी कारें, बड़े बड़े महंगे मोबाइल मेरे दस किलो आटे के सामने फीके पड़ गये। मुझे भी कुछ सेलिब्रिटी वाला फील आने लगा। लेखक होने के बदले दस किलो आटा अतिरिक्त लाकडाऊन में मिल जाये, और कोई क्या ले लेगा लेखन से।परम उपलब्धियों के दिन हैं ये। लाकडाऊनी दिनों में कोई आटे से मगन है, कोई पान मसाले के एक पैकेट को परम धन मान रहा है। दूध का एक लीटर का पैकेट ही किसी परम संतुष्ट कर रहा है। कैसे भले से दिन हैं ये।कभी हजारों का डिनर भी सुकून ना देता, कभी पंद्रह किलो आटा ही परम संतोष का भाव भर देता है। वक्त वक्त की बात है। यह वक्त आटा-उपलब्धता को परम उपलब्धता मानने का है। ऐसी उपलब्धियों पर ही बंदा खुश हो जाये, तो कितना सुकून रहेगा सब तरफ। फोकटी की किच-किच भागदौड़ के सिलसिले खत्म हो जायें, बंदा खुश होना चाहे, तो पंद्रह किलो आटा ही खुशी दे सकता है।कोरोना ने सिर्फ बीमार ही न बनाया है, दार्शनिक भी बनाया है जी।