Thursday, May 2, 2024
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हैप्पी बर्थडे फाइटर जिमी अमरनाथ, वेस्टइंडीज जैसे शेर के जबड़े से विश्व कप छीन कर लार्डस में तिरंगा लहराया ।

वेस्टइंडीज के दिग्गज खिलाड़ियों ने अपने बुरे स्वप्न में भी यह नहीं सोचा होगा कि भारत की सामान्य सी लगने वाली टीम उनके इस सपने को चकनाचूर कर देगी।

मोहिंदर अमरनाथ के जन्मदिन विशेष

नवीन शर्मा
25 जून 1983 । क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले इंग्लैंड के लार्डस स्टेडियम में प्रूडेंशियल विश्व कप क्रिकेट का फाइनल मैच हो रहा था। वेस्टइंडीज की टीम क्लाइव लॉयड जैसे ऑल टाइम ग्रेट कैप्टन के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार विश्व कप जीत की हैट्रिक बनाने का लक्ष्य लेकर उतरी थी। वेस्टइंडीज के दिग्गज खिलाड़ियों ने अपने बुरे स्वप्न में भी यह नहीं सोचा होगा कि भारत की सामान्य सी लगने वाली टीम उनके इस सपने को चकनाचूर कर देगी। लेकिन भारतीय खिलाड़ी एक नया इतिहास रचने जा रहे थे। इन्होंने वेस्टइंडीज जैसे शेर के जबड़े से विश्व कप छीन कर लार्डस में तिरंगा लहरा दिया था। वैसे तो यह जीत पूरी टीम की थी लेकिन इसमें सबसे अहम भूमिका जिन दो लोगों ने निभाई थी वे थे कप्तान कपिल देव और उपकप्तान मोहिंदर अमरनाथ। मोहिंदर ने पूरे टूर्नामेंट में जबरदस्त प्रदर्शन किया था। बल्लेबाजी के साथ साथ इन्होंने गेंदबाजी में भी कमाल किया था। मोहिंदर ने आठ मैचों में 29.62 की औसत से 14 चौकों और एक छक्के की मदद से 237 रन बनाए थे। वहीं सधी और कसी हुई गेंदबाजी कर आठ विकेट भी चटकाए थे। इस ओवर अॉल शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें मैन ऑफ द टूर्नामेंट भी चुना गया था।

सेमीफाइनल और फाइनल के मैन ऑफ द मैच

भारत का सेमीफाइनल में इंग्लैंड से सामना होना था जो कि उस समय की सबसे मजबूत टीमों में से एक थी। इस मैच में अमरनाथ ने अपने 12 ओवरों में मात्र 27 रन दिए और डेविड गोवर और माइक गैटिंग जैसे खतरनाक बल्लेबाजों को आउट किया। गेंदबाजी के साथ ही उन्होंने बल्लेबाजी में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 46 रन बना कर भारत को ठोस शुरुआत दी। उनके बेहतरीन प्रदर्शन की वजह से उन्हें मैन ऑफ द मैच बनाया गया।

फाइनल मुकाबला
फाइनल मैच में भारत का सामना उस समय दुनिया की सबसे खतरनाक टीम वेस्टइंडीज से था। भारत की टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए 54.4 ओवरों में मात्र 183 रन बना कर आउट हो गई । इस मैच में अमरनाथ ने 80 गेंदें खेलकर 26 रन बनाए। उनके रन दिखने में कम लग रहे हैं पर वेस्टइंडीज की तूफानी गेंदबाजी के सामने टिक पाना अपने आप में बड़ी बात थी।
छोटे स्कोर और वेस्टइंडीज की बल्लेबाजी क्रम को देखते हुए भारत की हार को पक्की माना जा रहा था।
भारतीय गेंदबाजों ने शानदार खेल दिखाया और वेस्टइंडीज की टीम को 140 रनों पर आउट कर मैच को 43 रन से जीत लिया।

इस मैच में अमरनाथ के अलावा मदनलाल ने भी 3 विकेट लिए।सेमीफाइनल की तरह ही फाइनल मैच में भी अमरनाथ ने एक बार फिर सबसे किफायती गेंदबाज की । उन्होंने अपने 7 ओवरों में केवल 12 रन देकर तीन विकेट लिए, इस शानदार प्रदर्शन के लिए उनको मैन ऑफ द मैच घोषित किया गया।

हर मुश्किल से लड़कर बेहतरीन ‘कमबैक’

मोहिंदर अमरनाथ ने पहला टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ साल 1969 में खेला था। तब वे महज उन्नीस साल के थे और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते थे।
मोहिंदर ने दूसरी इनिंग में उन्होंने दस रन के अंदर ही ऑस्ट्रेलिया के दो बल्लेबाज़ों, ओपनर कीथ स्टैकपोल और इयान चैपल को क्लीन बोल्ड कर दिया था। उस इनिंग में इरापल्ली प्रसन्ना ने छह विकेट लिए और ऑस्ट्रेलिया की पारी डेढ़ सौ रनों के आसपास सिमट गई थी। लेकिन इसके बावजूद भारत वह टेस्ट मैच हार गया क्योंकि उसकी बल्लेबाज़ी दोनों इनिंग में खास नहीं चली. मोहिंदर ने आठवें नंबर पर बल्लेबाज़ी की थी।

मोहिंदर उसके बाद टीम में आते-जाते रहे और यह आने-जाने का सिलसिला तब भी चलता रहा जब वो भारतीय टीम के सफलतम बल्लेबाज़ों में गिने जाने लगे। मोहिंदर बार बार टीम से बाहर होकर भी लौटते रहे क्योंकि उनमें साहस,जुझारूपन और हर नाकामी के बाद लौटने का जज़्बा था।

हर खूंखार गेंदबाज का डट कर किया सामना

मोहिंदर का लगभग आधा करियर उस दौर में गुज़रा है जब बल्लेबाज़ हेल्मेट नहीं पहनते थे और भारत छोड़कर लगभग हर देश के पास खूंखार गेंदबाज़ थे। लिली, थॉमसन, इमरान खान और वेस्टइंडीज़ में एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, वैन डैनियल्स, जोएल गार्नर, मैलकम मार्शल, सिल्वेस्टर क्लार्क जैसे गेंदबाज़ उस दौर में थे। मोहिंदर ने इन सभी तेज गेंदबाजों का डट कर सामना किया था।

हर चोट के बाद मोहिंदर ने की शानदार वापसी

मोहिंदर अमरनाथ जितनी चोटें भी शायद ही किसी बल्लेबाज़ को लगी हों। लेखक रॉब बागची ने ‘द गार्डियन’ में उनके सिर पर लगी कुछ चोटों का ज़िक्र किया है. वे लिखते हैं, ‘रिचर्ड हेडली ने उनके सिर को फ्रैक्चर कर दिया, इमरान खान ने भी उनका सिर चटकाया, मैल्कम मार्शल ने उनके दांत तोड़े,थॉमसन की गेंद ने उनका जबड़ा तोड़ा और माइकल होल्डिंग की गेंद ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया.’। लेकिन इन सभी चोटों ने सिर्फ जिमी के शरीर को ही नुकसान पहुंचाया था। उनका हौसला ये चोट नहीं तोड़ पाईं थी। इसलिए ऐसे में जब
इनमें से किसी भी चोट से किसी बल्लेबाज़ का करियर खत्म हो सकता था लेकिन अमरनाथ इन चोटों के बाद लौट कर आए और कई बेहतरीन पारियां तभी खेलीं।।

कमजोरी को ताकत बनाकर गेंदबाजों को छकाया

अमरनाथ को बार-बार चोट लगने की वजह यह थी कि शुरुआती वर्षों में शॉर्ट गेंद के खिलाफ उनकी तकनीक कुछ कमजोर थी लेकिन धुन के पक्के मोहिंदर ने अपनी इस कमजोरी को दूर किया। इसमें उनकी मदद की पिता लाला अमरनाथ ने।मोहिंदर ने अपने स्टांस में बदलाव किया और घंटों हुक शॉट खेलने का अभ्यास किया। इस बीच क्रिकेट में हेल्मेट आया जो उनके लिए मददगार साबित हुआ।

पाकिस्तान दौरे के सबसे सफल खिलाड़ी

साल 1982 – 83 के पाकिस्तान दौरे पर इमरान खान की टीम के खिलाफ वो भारतीय टीम के सबसे कामयाब बल्लेबाज़ रहे। उन्होंने तीन शतक और तीन अर्धशतक लगाए।

देश से ज्यादा विदेश में सफल रहे

इनका घरेलू टेस्ट मैचों में औसत 30 के आसपास है और देश के बाहर 51 से कुछ ऊपर। ऐसे आंकड़े क्रिकेट इतिहास में किसी के शायद ही होंगे। उनका सबसे अच्छा प्रदर्शन उन देशों में है जिनकी गेंदबाज़ी सबसे अच्छी थी यानी वेस्टइंडीज़, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान जिस वेस्टइंडीज़ के तूफानी आक्रमण के खिलाफ अच्छे-अच्छे बल्लेबाज़ एक अर्द्धशतक बनाने को तरस गए थे उसके खिलाफ उन्हीं के मैदानों पर मोहिंदर ने लगभग 55 के औसत से रन बनाए थे। इससे कुछ बेहतर प्रदर्शन पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनका रहा है।

चोट खाई, अस्पताल गए, फिर मैदान में आकर ठोके 80 रन
उसके बाद भारत का वेस्टइंडीज़ दौरा हुआ जिसमें वेस्टइंडीज़ ने भारत पर विश्वकप हारने का गुस्सा उतारा. उस सीरीज में वेस्टइंडीज़ के गेंदबाज़ आग उगल रहे थे लेकिन अमरनाथ का प्रदर्शन इतना शानदार था, जितना उस पेस अटैक के खिलाफ कभी किसी बल्लेबाज़ का नहीं रहा। उस दौरे पर उन्होंने दो शतक और चार अर्धशतक के साथ 594 रन 66.44 की औसत से बनाए। बार्बाडोस टेस्ट मोहिंदर अमरनाथ के फाइटिंग स्प्रिट की शानदार मिसाल है। मोहिंदर की ठुड्डी पर मैल्कम मार्शल की गेंद लगी और उन्हें अस्पताल जाना पड़ा। तब उन्होंने अठारह रन बनाए थे और भारत का स्कोर था एक विकेट पर 91 रन। अस्पताल से छह टांके लगवा कर मोहिंदर लौटे। भारत के छह विकेट पर 135 रन के स्कोर पर वे फिर बल्लेबाज़ी करने गए और बाउंसरों का मुकाबला करते हुए अस्सी रन बना डाले। उन्होंने दिखाया की चोट से डरना नहीं है बल्कि डट कर सामना करना चाहिए।

उसूलों से समझौता नहीं किया

मोहिंदर ने उसूलों से समझौता नहीं करने का सिद्धांत अपने पिता से पाया था। मोहिंदर चयन समिति मे थे। भारतीय टीम की लगातार हार के बाद उन्होंने महेंद्र सिंह धौनी को हटाना चाहा तो तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के दबाव में उन्हें खुद हटना पड़ा। मोहिंदर जब खेल रहे थे तो इस बात की बड़ी चर्चा हुई थी कि उन्होंने चयनकर्ताओं को ‘ए बंच ऑफ जोकर्स ‘ कहा था. जब वे खुद चयनकर्ता हुए तो उन्होंने साबित किया कि चयनकर्ता को कैसा होना चाहिए। मोहिंदर की एक खास आदत थी वो हमेशा पॉकेट से थोड़ा बाहर निकाल कर लाल रंग का रूमाल रखते थे।

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