Monday, April 29, 2024
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मगध विश्वविद्यालय के राधाकृष्णन सभागार में दर्शनशास्त्र विभाग के द्वारा एक दिवसीयकार्यशाला का किया गया आयोजन

गया । मगध विश्वविद्यालय, बोधगया राधाकृष्णन सभागार में दर्शनशास्त्र विभाग के द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया । जिसका विषय रहा ‘जगद्गुरु श्री शंकराचार्य एवं भारत की एकात्मकता’ l इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में श्री शंकराचार्य मठ के महंत स्वामी विवेकानंद गिरि जी महाराज उपस्थित हुए l कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ, तत्पश्चात विषय प्रवर्तन प्रो. गौतम सिन्हा के द्वारा किया गया l स्वागत भाषण डॉ शैलेंद्र सिंह ने किया । अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो एसपी शाही ने कहा कि आज का दिन बड़ा ही पवित्र और ऐतिहासिक है, जब हम आदि शंकराचार्य जी को एवं भारतीय ज्ञान परंपरा को याद कर रहे हैं l हमें इन जीवन मूल्यों को अपने कर्तव्य के रूप में जीवन में उतारना चाहिए l मुख्य अतिथि स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि आज के समय में आदि शंकराचार्य पर कार्यक्रम करने की क्या उपादेयता है इस पर विचार करना अपेक्षित है l आचार्य शंकर का जन्म वस्तुत: महनीय उद्देश्य के निमित्त हुआ जान पड़ता है l उन्होंने अपने किसी भी ग्रंथ में अपने विषय में उल्लेख नहीं किया l इससे यह सीख मिलती है कि शास्त्र रचना का उद्देश्य केवल ज्ञान की प्रतिस्थापना करना होना चाहिए न कि रचनाकार द्वारा स्वयं की प्रतिष्ठा स्थापित करना l उन्होंने शंकराचार्य के प्रमुख सिद्धांतों एवं विषयों की विस्तृत चर्चा की l विवेक ज्ञान (उचित- अनुचित का बोध) , वैराग्य (आवश्यकता से अधिक के प्रति निर्मोह), षड्संपत्ति (मन पर नियंत्रण), मुमुक्षुता इन चारों को उन्होंने शंकराचार्य के मूल सिद्धांतों के रूप में व्याख्यायित किया l श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन को आचार्य शंकर ने सुख के साधन के रूप में व्यक्त किया है l चार मठ के माध्यम से आचार्य शंकर ने चार कोनों में चार विश्वविद्यालय की स्थापना की , साथ ही पूरे भारत वर्ष को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने का कार्य किया l भारतीय भाषा संस्थान के प्रतिनिधि श्री सुधाकर उपाध्याय ने कहा कि ज्ञान और भाषा दोनों अलग चीजें हैं l भारतीय भाषा में शिक्षा आज की आवश्यकता है l एन ई पी 2020 के आलोक में भारत में भारतीय भाषाओं को मुख्य कड़ी में लाना होगा l आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार हैं l धर्म, पंत, संप्रदाय सब पृथक् हैं, इन्हें समझना होगा तभी उनके सही अर्थ समझे जा सकेंगे l उन्होंने कहा कि शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ किया किंतु किसी का अपमान अथवा निरादर नहीं किया l शंकराचार्य ने दशनामी सन्यास परंपरा आरंभ की , पंचदेव उपासना का आरंभ किया, आगे उन्होंने युवाओं के प्रति अपने संदेश में कहा कि आज के समय में सूचनाएँ मोबाइल में उपलब्ध है किंतु ज्ञान के दिशा निर्देश के लिए गुरुओं की शरण में जाना चाहिए l इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष मुख्य वक्ता प्रो ऋषि कांत पांडेय ने कहा कि चेतना के स्तर पर जाकर हमें जगत् की एकात्मकता सिद्ध करनी होगी l उन्होंने कहा कि शंकराचार्य के मत में ईश्वर ब्रह्म नहीं है, दोनों में भेद है l प्रतिभास, व्यवहार और परमार्थ यह वास्तविकता के तीन स्तर हैंl स्वप्न जब तक है तब तक वो यथार्थ है किंतु नीद टूटने पर वह यथार्थ नहीं रह जाता l यह संसार भी स्वप्न ही है किंतु यह उच्च कोटि का स्वप्न है l आत्मज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार रूप स्वप्न मिथ्या प्रतीत होता हैl सत्य वह है जो तीनों कालों में अबाधित हो l असत्य वो है जो तीनों कालों में न रहे l इसलिए शंकराचार्य ने एक मात्र ब्रह्म की सत्ता मानी है उससे इतर सबकुछ मिथ्या माना गया है l प्रो बी बी शर्मा ने भारत की एकात्मकता पर प्रकाश डाला और शंकराचार्य जी द्वारा सनातन धर्म की पुनर्स्थापना को एक महनीय कार्य बताया , कार्यक्रम में दर्शन शास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो राम सरेख सिंह, प्रो बी बी शर्मा, मगध एवं मुगेर विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति तथा दर्शनशास्त्र विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रो कुसुम कुमारी, डॉ कंचन सक्सेना, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, अध्यापकगण एवं बड़ी संख्या में शोध छात्र- छात्राएँ सम्मिलित हुए l कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन दर्शन शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो जावेद अंजुम के द्वारा किया गया l अतिथियों का स्वागत डॉ प्रियंका, डॉ मीनाक्षी तथा डॉ विनीता के द्वारा किया गया l

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