Tuesday, April 30, 2024
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एक देश में दो निशान और अनुच्छेद ३७० के मुखर विरोधी- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर विशेष

डॉक्टर मुखर्जी अनुच्छेद 370 के मुखर विरोधी थे और चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने और वहां अन्य राज्यों की तरह समान क़ानून लागू हो। उनका कहना था कि "एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।

अमित सिंह

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की १२०वीं जयंती पर पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि – ‘ मैं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी जयंती पर नमन करता हूं। उनके आदर्श देश भर में लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। डॉ. मुखर्जी ने अपना जीवन भारत की एकता और प्रगति के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने खुद को एक असाधारण विद्वान और बुद्धिजीवी के रूप में भी प्रतिष्ठित किया।’

कांग्रेस से मतभेद होने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई १९०१ को कलकत्ता के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था, जो बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में जाने जाते थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद १९२६ में सीनेट के सदस्य बने। साल १९२७ में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की। ३३वें साल में वे कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति बने । कुलपति के रूप में चार साल काम करने के बाद वो कलकत्ता विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे।कांग्रेस से मतभेद होने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया और उसके बाद फिर से निर्दलीय चुनाव जीतकर स्वतंत्र रूप से विधानसभा पहुंचे।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी अंतरिम सरकार में डॉ. मुखर्जी को मंत्री बनाया था। बहुत कम समय के लिए वो मंत्री रहे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से कई वैचारिक मतभेद थे। यह मतभेद तब और बढ़ गए थे जब नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता हुआ। उस समझौते के बाद नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए छह अप्रैल १९५० को डॉ. मुखर्जी ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था ।

राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर से परामर्श लेकर मुखर्जी ने २१ अक्टूबर १९५१ को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की। १९५१-५२ के आम चुनावों में भारतीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक मुखर्जी भी थे। कुछ समय बाद जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया और फिर पार्टी के बिखराव के बाद १९८० में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। डॉक्टर मुखर्जी अनुच्छेद ३७० के मुखर विरोधी थे और चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने और वहां अन्य राज्यों की तरह समान क़ानून लागू हो। उनका कहना था कि “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे“।

नेहरू ने भरे सदन में डॉक्टर मुखर्जी से मांगी थी माफ़ी

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पूर्व संपादक इंदर मल्होत्रा के अनुसार :-

“आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर हो रही थी । इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया था कि वो चुनाव जीतने के लिए “वाइन और मनी” का इस्तेमाल कर रही है।” इस बारे में इंदर मल्होत्रा ने बताया था की – “जवाहरलाल नेहरू समझे कि मुखर्जी ने वाइन और वुमेन कहा है। जवाहरलाल नेहरू ने इस आरोप का उन्होंने खड़े होकर इसका बहुत ज़ोर से विरोध किया।” नेहरु के विरोध करने पर “मुखर्जी साहब ने कहा कि आप आधिकारिक रिकॉर्ड उठा कर देख लीजिए कि मैंने क्या कहा है। ज्यों ही नेहरू ने महसूस किया कि उन्होंने ग़लती कर दी। उन्होंने भरे सदन में खड़े होकर उनसे माफ़ी मांगी। तब मुखर्जी ने उनसे कहा कि माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मैं ग़लतबयानी नहीं करूँगा।”

डॉक्टर मुखर्जी चाहते थे कि कश्मीर में जाने के लिए किसी को अनुमति न लेनी पड़े। तत्कालीन सरकार को चुनौती देते हुए डॉक्टर मुखर्जी १९५३ में ८ मई को वो बिना अनुमति के दिल्ली से कश्मीर के लिए निकल पड़े थे। दो दिन बाद १० मई को जालंधर में उन्होंने कहा था कि “हम जम्मू कश्मीर में बिना अनुमति के जाएं, ये हमारा मूलभूत अधिकार होना चाहिए।” ११ मई को श्रीनगर जाते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।वहां के जेल में कुछ दिन रखने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसे पहले शख्स थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में धारा ३७० का खुलकर विरोध किया था । उनका मानना था कि धारा ३७० की वजह से देश की अखंडता को धक्का लगेगा और ये देश की एकता में बाधक होगा। २२ जून १९५३ को उनकी तबीयत खराब हो गई और २३ जून १९५३ को उनका रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई।

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