Sunday, May 5, 2024
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राहुल गांधी के खिलाफ कोर्ट के फैसले के निहितार्थ

विजय केसरी:

‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी के मामले में कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ सूरत की एक कोर्ट ने दो साल की सजा सुना दी है । इसके साथ ही संसद सचिवालय ने भी राहुल गांधी की पार्लियामेंट की सदस्यता रद्द करने का फरमान जारी कर दिया है। कोर्ट से सजा सुनाए जाने एवं सदस्यता रद्द होने के उपरांत कांग्रेसी कार्यकर्ता सहित विपक्ष के कई बड़े नेता रोड पर संघर्ष करने के लिए उतर गए हैं। न्यायालय के फैसले के थोड़ी ही देर बाद राहुल गांधी को न्यायालय से जमानत मिल गई । लेकिन न्यायालय ने राहुल गांधी के मोदी उपनाम टिप्पणी पर जो फैसला सुनाया है, उसकी देश भर में चर्चा हो रही है। इस फैसले ने देशभर में एक नई बहस छेड़ दिया है। एक जनप्रतिनिधि का आचरण कैसा होना चाहिए ? उसका वक्तव्य कैसा होना चाहिए ? उसकी राजनीतिक गतिविधियां कैसी होनी चाहिए? ऐसे कई सवाल हैं, जो देश के राजनेताओं से करोड़ों देशवासी पूछ रहे हैं।
जनता के वोट से ही ये नेता गण सांसद और विधायक बनते हैं। नेताओं के सांसद और विधायक बनने के बाद, देश की जनता उनके जिम्मे में एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप देती है। यह जिम्मेदारी ग्रहण करने के साथ ही नेताओं के वक्तव्य में भारी विरोधाभास उत्पन्न होने लगता है । यह बेहद चिंता की बात है। नेतागण अपने-अपने वक्तव्य के कारण देशभर में चर्चित जरूर हो जाते हैं। लेकिन ऐसे नेताओं के वक्तव्य के कारण आए दिन फसाद और आंदोलन होते रहते हैं।‌ नेताओं के वक्तव्य का जनमानस पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि समाज में दंगे तक हो जाते हैं। ऐसे वक्तव्य से उत्पन्न दंगे में कई जाने बेवजह चली जाती हैं।
मैं, किसी एक पार्टी के नेता को चिन्हित कर यह बात नहीं कह रहा हूं। बल्कि वर्तमान समय में देश के लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के कमोबेश यही स्थिति है। चाहे वे सत्ता में हों, चाहे वे विपक्ष में हों। देश के नेताओं की टिप्पणियां कुछ इस तरह आए दिन आती रहती है, परिणाम स्वरूप देश में एक नया बखेड़ा उत्पन्न हो रहता है। आज टीवी चैनलों पर होने वाले बहसों पर गौर किया जाए तो बहसों का सिर्फ एक ही मुद्दा होता है, एक राजनीतिक पार्टी के नेता ने विवादित टिप्पणी कर दी , फिर शुरू हो गया उस पर बहस। जबकि टीवी चैनलों पर देश से भ्रष्टाचार कैसे दूर हो ? देश की बुनियादी सुविधाएं मजबूत कैसे हो ? सत्ता का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक कैसे पहुंचे ? महंगाई पर रोक कैसे लगाई जाए ? आदि मुद्दों पर टीवी चैनलों पर बहस होनी चाहिए । जबकि इन टीवी चैनलों पर सिर्फ नेताओं के विवादित बयानों पर बहसें हो रही हैं । देश की संसद और सभी प्रांतों के विधानसभाओं में कमोबेश इसी तरह के नजारे देखने को मिलते है। देश की बड़ी ऊर्जा नेताओं के वक्तव्य के बाद उत्पन्न स्थिति पर बेफजूल बहसों पर खर्च हो जाती है। यह किसी भी स्थिति में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए उचित नहीं है।
राहुल गांधी, अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। इनके पूरे परिवार का एक लंबा इतिहास भारत की आजादी से जुड़ा रहा था। लेकिन राहुल गांधी आए दिन अपने वक्तव्य के कारण विवादों में पड़ते रहते हैं। इनके खिलाफ सूरत की एक न्यायालय ने जो फैसला दिया है, उस पर देश के सभी नेताओं को गौर करना चाहिए। राहुल गांधी के मसले पर भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल के बयान को पूरे मोदी समुदाय का अपमान मानते हुए न्यायालय में मामला दर्ज किया था । तब इस तरह का फैसला आ पाया है। अब सवाल यह उठता है कि अगर भाजपा के विधायक पूर्णेश मोदी राहुल के बयान के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं करते तब राहुल गांधी के खिलाफ कोर्ट को इस तरह के फैसला देने की जरूरत भी नहीं पड़ती । चूंकि उनके खिलाफ भाजपा के विधायक पूर्णेश मोदी ने कोर्ट में मामला दायर कर दिया था। इसलिए न्यायालय को इस तरह का फैसला लेना पड़ा।
राहुल गांधी ने 2019 में कर्नाटक के कोलार की रैली में कहा था कि ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है, चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी’। निःसंदेह इस तरह की टिप्पणी राहुल गांधी को नहीं करनी चाहिए थी। राहुल गांधी ने किस भाववेश में इस तरह की टिप्पणी कर दी ? यह राहुल गांधी ही जाने । राहुल गांधी सहित देश के पक्ष और विपक्ष दोनों के नेताओं को इस तरह की टिप्पणी से बचनी
राहुल गांधी, मोतीलाल नेहरू जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, फिरोज गांधी और राजीव गांधी के विरासत से जुड़े हुए हैं। राहुल गांधी का हर वक्तव्य संतुलित होना चाहिए । राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं । उनके खिलाफ आप सार्वजनिक मंच से टिप्पणी करने जा रहे हैं ।राहुल गांधी की उक्त टिप्पणी को देश सहित विश्व के कई देशों में प्रसारित किया गया होगा । राहुल गांधी की उक्त टिप्पणी को देखकर विदेशियों के मन में भारत के प्रति क्या छवि बनी होगी ? इस तरह के वक्तव्य से भारत के साख विदेशों में गिरती है।
विश्व के विकसित देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल आदि देशों में भी पक्ष और विपक्ष नेता मौजूद होते हैं। उन देशों भी लोकतंत्र है । वहां भी नेतागण जनता की वोट से जीत कर सत्ता की बागडोर संभालते हैं। वहां के नेतागण इस तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी अपने प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ नहीं करते हैं। वहां उन देशों में इस तरह की बातें सुनने को नहीं मिलती है। लेकिन भारत में आए दिन, चाहे किसी भी दल के नेता हों,अपनी टिप्पणी के कारण से सदैव विवाद में बने रहते हैं।
राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने जिस तरह मुकदमा दायर किया, अगर देश के अन्य नेताओं द्वारा आए दिन जो विवादित बयान दिए जाते हैं, उनके खिलाफ मुकदमे होने लगे तो प्रतिदिन सैकड़ों नहीं हजारों की संख्या में मानहानि के मुकदमे दर्ज होंगे। इस तरह के मुकदमे से अपवाद भर नेता ही बच जाएंगे । शेष नेतागण सजा के ही काबिल होंगे ।
भारत का संविधान ने समस्त देशवासियों को अभिव्यक्ति की आजादी दिया है। इसका कतई यह मायने नहीं लगा लेना चाहिए कि किसी के खिलाफ कुछ भी बोला दिया जाए । जेएनयू के तथाकथित युवा नेताओं द्वारा आए दिन देश को तोड़ने वाली बातें कहीं जाती हैं। अगर उनके वक्तव्य पर न्यायालयों में मुकदमे दर्ज होने लगे तब की स्थिति क्या होगी ? इसे समझा जा सकता है । अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करना भी देश के तमाम नेताओं सहित हर एक भारतवासी का कर्तव्य बनता है। खासकर जो राजनीतिक दलों से जुड़े हुए नेता गण है, उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा पूरी कड़ाई के साथ करनी चाहिए।
राहुल गांधी देश के एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं।
‌ पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से उन्होंने देश में प्रेम सौहार्द नारा देकर देशवासियों को जोड़ने के लिए यात्रा की थी । एक तरफ वे पूरे देश को जोड़ने की बात कहते हैं । वहीं दूसरी ओर मोदी उपनाम पर विवादित बयान देकर सजा तक पा जाते हैं।
राहुल गांधी को सूरत की एक न्यायालय द्वारा दो वर्ष की सजा सुनाए जाने के बाद देशभर के नेताओं ने जिस तरह के बयान दर्ज किया है, पढ़ कर बहुत ही अफसोस होता है। इन नेताओं ने न्यायालय की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया है । जबकि न्यायालय ने तीन वर्षों तक गहन अध्ययन, परीक्षण के बाद ही यह फैसला सुनाया। न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ देश के नेतागण अगर आपत्तिजनक टिप्पणी दर्ज कर रहे हैं, टिप्पणी दर्ज करने वालों के खिलाफ भी न्यायालय के फैसले के विरुद्ध बोलने पर मुकदमे दर्ज होने चाहिए । अब सवाल यह उठता है कि ऐसे नेताओं के खिलाफ न्यायालय में मामला कौन दर्ज करें ?
देश के पक्ष और विपक्ष दोनों के नेताओं को एक बार अपने वक्तव्य पर गंभीरतापूर्वक विचार कर ही बयान देना चाहिए । वे कोई ऐसा बयान ना दें, जिससे देश की एकता और अखंडता प्रभावित हो। साथ ही देश के शीर्ष पर बैठे नेताओं की साख पर बट्टा न लगने दें। मेरी दृष्टि में सूरत के इस न्यायालय ने जो फैसला राहुल गांधी के मोदी उपनाम टिप्पणी पर सजा सुनाई है, पूरी तरह न्यायिक प्रक्रिया का निर्वहन है । उक्त कोर्ट ने निःसंदेह न्यायालय की गरिमा और न्यायालय की साख को और मजबूत किया है।

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