Tuesday, April 30, 2024
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‘जस की तस धर दिन्हीं चदरिया’ प्रख्यात पत्रकार सुनील सौरभ के पार्थिव शरीर को घंटों बंधक बनाए रखने के निहितार्थ

सुनील सौरभ संत कबीर की तरह पवित्रता के साथ इस धरा पर आए और उसी पवित्रता के साथ इस दुनिया को अलविदा कह गए।

विजय केसरी:

बिहार के जाने-माने पत्रकार/साहित्यकार सुनील सौरभ के पार्थिव शरीर को पटना के पारस एचएमआरआई अस्पताल प्रबंधन ने घंटों बंधक बनाए रखा। अस्पताल प्रबंधन के इस मानवता विरोधी कृत्य से लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लहूलुहान हो गया है। एक ऐसा पत्रकार जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन हिंदी पत्रकारिता और साहित्य को समर्पित कर दिया। जब वह बीमार होकर अस्पताल में जीवन और मौत से संघर्ष कर रहा था, उस समय उसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं था।
जबकि उनकी पत्नी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आर्थिक मदद के लिए लिखा भी था। अब सवाल यह उठता है कि एक ईमानदार पत्रकार को उसकी ईमानदारी की यह सजा मिली कि मरने के बाद लगभग आठ घंटे तक उसकी लाश को पारस अस्पताल प्रबंधन ने बंधक बनाए रखा। मात्र पंद्रह दिनों में अस्पताल का बिल बारह लाख रुपए थमा दिया गया। जबकि उनकी पत्नी ने छह लाख रुपए भुगतान कर दिया था। इसके बावजूद सुनील सौरभ की लाश को बंधक बनाए रखा गया। इससे प्रतीत होता है कि बड़े-बड़े स्पेशलिटी हॉस्पिटल इलाज के नाम पर किस तरह लूट मचाए हुए हैं। एक ईमानदार पत्रकार के इलाज हेतु आर्थिक मदद के लिए बिहार सरकार की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है।
सुनील सौरभ का असमय जाना हिंदी पत्रकारिता एवं साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति
सुनील सौरभ का असमय संसार को अलविदा कह जाना काफी दुखदायी है। उनका संपूर्ण जीवन हिंदी पत्रकारिता और साहित्य को समर्पित रहा था। वह एक निर्भीक, कर्तव्यनिष्ठ, जुझारू और ईमानदार पत्रकार थे। उन्होंने हमेशा सच का साथ दिया। राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर बिना किसी पक्षपात के अपनी बातें बेबाक कहा करते थे। पत्रकारिता का जुनून उनके सिर चढ़कर बोलता था। लोकतंत्र में एक पत्रकार की क्या भूमिका होती है ? इस वे बखूबी जानते थे। उनकी साफ सुथरी छवि के कारण राज्य के मंत्री, सांसद, विधायक और अधिकारी उन्हें सम्मान करते थे। उन्होंने जो कुछ भी कमाया, खून-पसीने और कड़ी मेहनत से। यही उनके जिंदगी की असली कमाई थी। वे एक संघर्षशील और जुझारू पत्रकार के रूप में जाने जाते थे। सुनील सौरभ को उम्मीद थी कि वह शीघ्र स्वस्थ होकर पुनः पत्रकारिता और हिंदी साहित्य लेखन से जुड़ पाएंगे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई। पत्रकारिता के प्रति उनका जुनून देखते बनता था। उनका यह जुनून जीवन पर्यंत बना रहा।

पैनक्रियाज में संक्रमण से पीड़ित होकर पारस अस्पताल में पांच अप्रैल को हुए भर्ती

सुनील सौरभ पेनक्रियाज में संक्रमण से पीड़ित थे। उनकी गंभीर अवस्था को देखकर डॉक्टरों ने उन्हें आईसीयू में भर्ती किया था। गहन चिकित्सीय जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उनका मल्टी ऑर्गन फेल्योयर हो गया। फिर इलाज के नाम पर उनके परिजनों से पैसों की मांग शुरू हो गई। जबकि अस्पताल के प्रबंधन को यह बताया जा चुका था कि सुनील सौरभ एक पत्रकार हैं। इसके बावजूद पन्द्रह दिनों के अंदर इलाज के नाम पर सुनील सौरभ की पत्नी सुभद्रा सिंह से लगभग छह लाख रुपए जमा करा लिया गया। महंगी चिकित्सीय व्यवस्था के कारण सौरभ के परिजनों को अस्पताल का बिल चुका पाना संभव नहीं हो पा रहा था। सुनील सौरभ पारस अस्पताल में भर्ती थे। इस आशय की खबर बिहार के कई प्रमुख अखबारों में प्रकाशित भी हुए थे। सुनील सौरभ की पत्नी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इलाज हेतु आर्थिक मदद करने के लिए आग्रह भी किया था। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आर्थिक मदद तो दूर, उन्होंने सुनील सौरभ की सुधि लेने से भी परहेज किया। यहां यह उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस क्षेत्र से आते हैं, सुनील सौरभ भी उसी क्षेत्र के निवासी थे। नीतीश कुमार के राजनीतिक संघर्ष के शुरुआती दिनों में पत्रकार सुनील सौरभ ने अपनी कलम से उन्हें एक लोकप्रिय नेता बनाने में महती योगदान दिया था। दूसरी ओर पटना में श्रमजीवी पत्रकार संघ सहित पत्रकारों के अन्य संगठनों ने भी जीवन और मृत्यु से लड़ रहे बीमार सुनील सौरभ से मिलना मुनासिब नहीं समझा। यह बेहद चिंताजनक है कि एक ईमानदार कलमकार जिसने अपना संपूर्ण जीवन हिंदी पत्रकारिता और साहित्य को अर्पित कर दिया था। उसे देखने पत्रकार बिरादरी और पत्रकारों के संगठन से जुड़े लोग भी नहीं पहुंचे।
शनिवार (22अप्रैल) की सुबह सुनील सौरभ सदा सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए। पारस अस्पताल प्रबंधन ने सुनील सौरभ की डेड बॉडी को लगभग आठ घंटे तक रोके रखा था। अस्पताल प्रबंधन ने सुनील सौरभ के परिजनों को स्पष्ट रूप से कह दिया था कि जब तक बकाया साढ़े पांच लाख रुपए नहीं मिल जाते हैं, उनकी बॉडी नहीं दी जाएगी। उनके परिजन गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन पारस अस्पताल प्रबंधन ने अनसुना कर दिया। सुनील सौरभ की पत्नी का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था। अब शेष राशि उनकी पत्नी कहां से व्यवस्था करे?
अंततः उनके परिजनों ने भी कड़ा रुख अख्तियार करते हुए प्रबंधन को स्पष्ट कह दिया कि बकाया राशि नहीं देंगे। क्योंकि परिजनों ने प्रमाण सहित बताया कि सुनील सौरभ की मौत चिकित्सा में लापरवाही के कारण हुई है। यह भी बेहद शर्मनाक है कि पारस अस्पताल के प्रबंध निदेशक डॉ.ए हई के यहां ईद की पार्टी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित बिहार सरकार के कई मंत्री, विधायक और आला अधिकारी शामिल थे। उधर, उसी दिन सुनील सौरभ का पार्थिव शरीर अंत्येष्टि का इंतजार कर रहा था।

ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े और पत्रकारिता पेशे को बनाया कैरियर
पत्रकार सुनील सौरभ का जन्म बिहार के पटना जिले के बख्तियारपुर प्रखंड अंतर्गत करनौती गांव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी। उन्होंने उच्च शिक्षा मगध विश्वविद्यालय से पूर्ण किया था। वे बचपन से ही मेधावी छात्र रहे थे। वे चाहते तो अच्छी नौकरियों में जा सकते थे। लेकिन उन्होंने पत्रकारिता और साहित्य सेवा का ही मार्ग का चयन किया था। वे इस मार्ग पर जीवन पर्यंत चलते रहे थे । सुनील सौरभ विगत चार दशक से बिहार के पटना और मगध प्रमंडल में पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय थे। उन्होंने हिंदुस्तान (हिन्दी दैनिक), राष्ट्रीय सहारा, चौथी दुनिया सहित कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं दी थीं। बीमार होने से पूर्व तक वे संवाद पत्रिका का प्रकाशन कर रहे थे । उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं। पत्रकारिता और साहित्य क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए देश की कई नामी-गिरामी संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित भी किया था। पत्रकार सुनील सौरभ अपने पीछे पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। ‌वह एक पत्रकार, संवेदनशील लेखक के साथ एक कवि भी थे। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों बेमिसाल था। उनकी कई साहित्यिक कृतियां मर्म स्पर्शी हैं। वे संत कबीर की तरह पवित्रता के साथ इस धरा पर आए और उसी पवित्रता के साथ इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनका सादगीपूर्ण जीवन संत कबीर के इन पंक्तियों को स्पर्श करता नजर आता है, ‘जस की तस धर दिन्हीं चदरिया’।
उनका असमय जाना हिंदी पत्रकारिता और साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।

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