Monday, May 6, 2024
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शिव हीं संगीत के रचयिता है…..:-अनंत धीश अमन

गया । संगीत ऐसी सुव्यवस्थित ध्वनि है जो रस कि सृष्टि करती है और इस प्रकृति में जीवन का संचार करती है। वो चाहें सांसों की ध्वनि हो या नदी और समुंदर कि लहरें हो या चिड़ियों कि चहचाहट हो। यह सब इस प्रकृति का सुव्यवस्थित ध्वनि है, जिससे जीवन का रस पल्लवित और पुष्पित होता है। जब यह व्यवस्थित नहीं होता है जीवन का रस फीका पङने लगता है और यह प्रकृति का विनाश हीं करने लगता है। शिव हीं संगीत के रचयिता है वह संसार में जीवन को व्यवस्थित करने हेतु विष को गले में धारण भी करते है तो वह सुर ताल लय व्यवस्थित कर जीवन प्रदान करते है और जब वह अव्यवस्थित करने हेतु आतुर होते है तो तांडव भी करते है जिससे संसार विनाश का ग्रास बन जाता है। संगीत वह जो मन की वेदना को हर लें और तन को स्वस्थ कर दें और परमात्मा को आत्मसात करने में सहायक हो वह हीं संगीत है। संगीत साधना का विषय है जहाँ “अ” अक्षर को साधा जाता है। अ जिसे वेद के ॠचा में बह्म रुप में साक्षात्कार किया गया है जिसे शरीर के नाद रुपी यंत्र से आदिकाल से साधा जा रहा है। संगीतज्ञ संगीत को वाध यंत्रों के द्वारा सुर ताल लय से स्वर में पिरोकर गीत भजन के रुप में हम सबो के समक्ष जिसको सदियों से प्रस्तुत करते आ रहे है उसी के रस का रसास्वादन कर हम जीवन को सरल रुप में व्यतीत करते आ रहे है। संगीत हमारे मन को संयमित और मस्तिष्क को एकाग्र करने में सहायक है साथ हीं ह्रदयस्थ प्रभु के निकटता बढ़ाने में भी संगीत की प्रमुख भूमिका है। यही कारण है कि संगीत इस संसार के प्रकृति के हर क्रियाकलाप में रचा बसा हुआ है जिससे जीवन में संचार बना हुआ है।

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