Monday, April 29, 2024
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कफ़ सिरप: जानलेवा ज़हर, जम्मू से गांबिया तक बना मासूमों की मौत का कारण

जम्मू में 12 और दक्षिण अफ्रीकी देश गांबिया में 70 बच्चों की मौत का ज़िम्मेवार कफ़ सिरप एक भारतीय कंपनी मेडन फ़ार्मास्यूटिकल्स के द्वारा बनाई गई थी।

दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच जम्मू के रामनगर में कम से कम 12 बच्चों की मौत हो गई थी। पिछले साल जुलाई और अक्तूबर के बीच गांबिया में क़रीब 70 बच्चों की मौत हो गई। दवाओं से हो रही मौत के लिए भारतीय कंपनियों के बनाए कफ़ सिरप को ज़िम्मेदार ठहराया गया। हालाँकि कंपनियों ने इन आरोपों को ग़लत बताया है। मामला बढ़ता देख पुलिस ने जम्मू में बच्चों की मौत की जाँच की और मामला अभी अदालत में है। जबकि गांबिया में बच्चों की मौत की जाँच के बाद सरकारी रिपोर्टें जारी कर दी गईं, जिनमें एक भारतीय कंपनी के बनाए कफ़ सिरप को मौत के लिए ज़िम्मेदार बताया गया है। बीबीसी से बातचीत में, जाँच रिपोर्ट बनाने वाली नेशनल एसेंबली की सेलेक्ट कमेटी ऑन हेल्थ के प्रमुख अमाडु कामरा कहते हैं, “हमने उन दवाओं की जाँच की। उन दवाओं में अस्वीकार्य मात्रा में एथलीन ग्लायकॉल और डाइथिलीन ग्लायकॉल (डीईजी) था, उन्हें भारत की मेडन फ़ार्मास्यूटिकल्स ने बनाया और उन्हें सीधा भारत से आयात किया गया था।”

WHO ने जाँच शुरू की 

पिछले साल जुलाई में दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक गांबिया में स्वास्थ्य अधिकारियों को एक्यूट किडनी इंजरी (AKI- मतलब गुर्दे में गड़बड़ी, जिसका असर दूसरे अंगों पर पड़ता है, जिससे जान तक जा सकती है) के मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली। ऐसे मामले पाँच साल से कम के बच्चों में देखे जा रहे थे। बाद में गांबिया की सरकार ने ये जानकारी दी कि इससे 70 बच्चों की मौत हो गई है। गांबिया ने इसकी सूचना WHO को दी जिसके बाद WHO ने जाँच शुरू की।

जानलेवा कफ़ सिरप भारत की मेडन फार्मासूटिकल में बनी 

WHO ने कहा कि ये मामला चार कफ़ सिरप से जुड़ा हुआ है। WHO ने कहा कि उसने भारतीय कंपनी मेडन फ़ार्मासूटिकल्स के बनाए चार कफ़ सिरप के सैंपल की जाँच की और फिर ये निष्कर्ष निकाला कि इनमें तय मानदंड से अधिक मात्रा में डाइइथिलीन ग्लाइकोल और इथिलीन ग्लाइकोल था। ये दोनों ज़हरीले पदार्थ हैं। WHO ने कहा कि इस कारण पेट में दर्द, उल्टी, डायरिया, पेशाब करने में तकलीफ़, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव और एक्यूट किडनी इंजरी हो सकती है जो मौत का कारण भी बन सकती है। WHO ने जिन चार कफ़ सिरप का नाम लिया था, वो हैं प्रोमिथाज़ाइन ओरल सॉल्यूशन, कोफ़ेक्सामलिन बेबी कफ़ सिरप, मेकऑफ़ बेबी कफ़ सिरप और मैगरिप एन कोल्ड सिरप। ये सिरप भारत की मेडन फार्मासूटिकल बनाती है।

भारत सरकार ने भी जाँच शुरू की 

इसके बाद भारत सरकार एक्शन में आई और जाँच शुरू हुई। गांबिया में मौत पर संसदीय जाँच की रिपोर्ट और हाल में ही जारी हुई एक्यूट किडनी इंजरी जाँच रिपोर्ट में भारतीय मेडन फ़ार्मासूटिकल्स कंपनी के बनाए “दूषित” कफ़ सिरप को ज़िम्मेदार ठहराया गया। रिपोर्ट में जानकारों और सबूतों के हवाले से कहा गया कि उसमें एथलीन ग्लाइकॉल और डाइइथिलीन ग्लाइकॉल की इतनी मात्रा थी कि उससे जान चली जाए। भारत सरकार ने आदेश जारी किया है कि निर्यात होने वाली खांसी की दवा को एक प्रमाणपत्र लेना होगा। यह प्रमाण पत्र कड़े परीक्षणों के बाद जारी किया जाएगा और यह जांच एक सरकारी प्रयोगशाला में की जाएगी। व्यापार मंत्रालय ने मई में यह यह निर्देश जारी किया था, जिस पर अमल पहली जून से लागू हुआ।

मेडन फ़ार्मा को बंद करने का दिया आदेश 

मेडन और भारत सरकार ने लगातार इन आरोपों से इनकार किया है। भारत सरकार ने मेडन के कफ़ सिरप सैंपल की जाँच रिपोर्ट में बताया है कि वो स्टैण्डर्ड गुणवत्ता के थे। सरकार ने 01 अगस्त को संसद में एक सवाल के जवाब देते हुए कहा कि गांबिया के मामले में जांच में पता चला है कि गुड मैन्युफ़ैक्चरिंग प्रैक्टिसेज़ का उल्लंघन हुआ है। जिसके बाद भारत सरकार ने मेडन फ़ार्मा को शोकॉज़ नोटिस भेजा गया, और कंपनी को आदेश दिया गया कि वो तुरंत सोनीपत में सभी मैन्युफ़ैक्चरिंग गतिविधि बंद कर दे। ताज़ा जाँच रिपोर्ट में कई क़दमों को उठाने की बात की गई है और ड्रग रेग्युलेटर संस्था मेडिसिंस कंट्रोल एजेंसी के दो शीर्ष अफ़सरों को इस मामले में बर्खास्त कर दिया गया है। भारत सरकार ने फार्मा कंपनियों से कहा है कि वो एक तय समय सीमा के भीतर विश्व स्वास्थ्य संगठन की अच्छी उत्पादन पद्धति का पालन करें।

सिरप पीने के सात दिन में ही 3 साल के लामिन की मौत 

मृतकों में गांबिया की क़रीब पाँच लाख की आबादी वाली राजधानी बैंजुल में रहने वाला तीन साल का लामिन भी था। पिछले साल सितंबर में जब उसे बुख़ार आया, तो डॉक्टर ने जो दवाइयाँ देने को कहा, उनमें कफ़ सिरप भी था। लामिन दवा नहीं पीना चाहता था, लेकिन परिवार चाहता था कि वो जल्द ठीक हो जाए। ड्राइवर का काम करने वाले उसके पिता एब्रिमा सानिया उस क्षण को याद करते हैं, “मैंने लामिन से ज़बरदस्ती दवा खाने को कहा।”एब्रिमा शायद ही उस लम्हे को भूल पाएँ। उस क्षण को याद करके वो रोने लगे। दवा लेने के कुछ समय बाद ही लामिन का खाना और पेशाब कम होने लगा। डॉक्टरी जाँच में पता लगा कि लामिन को गुर्दे की समस्या थी। उसके होठ काले होने लगे थे। एब्रिमा बोले, “लामिन ने मेरी ओर, मेरी आँखों में देखा। मैंने पूछा, लामिन तुम्हें क्या हो गया? मुझे उसका चेहरा, उसकी आँखें हमेशा याद रहेंगी क्योंकि वो मेरी आँखों के भीतर देख रहा था। मैं भी उसकी आँखों में देख रहा था।” परिवार के मुताबिक़ कफ़ सिरप पीने के सात दिनों में ही लामिन की मृत्यु हो गई।

वीडियो कॉल पर 22 महीने की बेटी को बेसुध होकर मरते देखा 

एक पिता ने कहा, “मेरी बेटी लगातार इतना चिल्ला रही थी कि आख़िरकार उसके मुंह से आवाज़ निकलनी बंद हो गई। आख़िरी वक़्त में वो माँ का नाम ले रही थी, जैसे माँ से मदद मांग रही हो।” लामिन के घर के नज़दीक ही 22 महीने की अमीनाटा रहती थी। अमीनाटा के माँ-बाप को भी समझ नहीं आया कि उनके बेटी के साथ क्या हो रहा है। लकड़ी बेचकर गुज़ारा करने वाले अमीनाटा के पिता मोमोदू डैंबेले ने उसे बेहतर, लेकिन महंगे इलाज के लिए पड़ोसी देश सेनेगल तक भेजा। वो याद करते हैं, “उसका शरीर फूल रहा था। वो ख़त्म हो रही थी। हमें समझ नहीं आ रहा था कि उसके शरीर के अंदर क्या हो रहा है।” उन्होंने आख़िरी बार बेटी का चेहरा एक वीडियो कॉल में देखा। अमीनाटा सेनेगल के एक अस्पताल के बिस्तर पर बेसुध लेटी थी। मोमोदू याद करते हैं, “मुझे उसका सिर हिलता दिख रहा था। मैं उसे बताना चाह रहा था कि ये मैं हूँ, उसका पापा।” इस वीडियो कॉल के कुछ ही देर बाद अमीनाटा दुनिया छोड़ चुकी थी।

इतनी मौतों के बाद भी दवाओं के लिए भारत पर निर्भर रहेगा गांबिया 

फार्मासूटिकल्स एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ साल 2022-23 में भारत ने गांबिया को 9.09 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य की दवाइयाँ भेजीं, जबकि उसी साल अफ़्रीका को भेजी दवाइयों का मूल्य 3.646 बिलियन डॉलर था। गांबिया में आयातित दवाओं की जाँच के लिए लैब तक नहीं है और दूसरे अफ़्रीकी देशों की तरह यहाँ भी बड़ी मात्रा में भारतीय दवाएँ पहुँचती हैं। लेकिन गांबिया ही नहीं, बल्कि उज़्बेकिस्तान, इराक़, कैमरून में भी भारतीय कफ़ सिरप से जुड़े मामलों पर रिपोर्टें सामने आने के बाद भारतीय फार्मासूटिकल कंपनियों को लेकर सवाल बढ़े हैं। भारत में क़रीब 3,000 दवा बनाने वाली कंपनियों की क़रीब 10,000 मैन्युफ़ैक्चरिंग फ़ैक्टरियाँ हैं। साल 2030 तक ये इंडस्ट्री 130 अरब डॉलर तक की हो सकती है। बच्चों की मौत ने भारत में बनी दवाओं के बारे में कई लोगों के मन में अविश्वास पैदा किया है। लेकिन जानकारों के मुताबिक़ फ़िलहाल भारत में बनी दवाओं पर गांबिया की निर्भरता जारी रहेगी। भारत में दवा निर्माण का 41 अरब डॉलर का उद्योग है और वह दुनिया के सबसे बड़े दवा निर्माताओं में से है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से भारत का दवा उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादों से जूझ रहा है क्योंकि गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और अमेरिका में भी भारत में बनीं दवाओं के कारण लोगों की जान जाने की खबरें आईं।

अपने बच्चों को खोने वाले कुछ परिवारों ने मेडन फार्मा और स्थानीय आधिकारिक संस्थाओं के ख़िलाफ़ गांबिया की अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है और कहा है कि वे भारतीय और अंतरराष्ट्रीय अदालतों का दरवाज़ा खटखटाने से नहीं हिचकिचाएँगे। न्याय की मांग जम्मू के रामनगर से भी आ रही है, जहाँ 2019 दिसंबर और जनवरी 2020 के बीच पाँच साल से कम उम्र के कम से कम 12 बच्चों की मौत हो गई थी।

ढाई साल के अनिरुद्ध को ब्रेन हैमरेज हुआ 

जम्मू में मरने वालों में ढाई साल का अनिरुद्ध भी था। मौत से तीन दिन पहले रिकॉर्ड किए गए आख़िरी वीडियो में अनिरुद्ध एक अस्पताल के बिस्तर पर निढाल लेटा नज़र आता है।उसके हाथ तार से जुड़े हैं और पीछे मशीन की बीप की आवाज़ सुनाई दे रही है। रुआँसी सी माँ वीना कुमारी चम्मच से उसे खाना खिलाने की कोशिश कर रही हैं। कुछ दिन पहले अनिरुद्ध को बुख़ार और चेस्ट इन्फ़ेक्शन के बाद उसके माता-पिता ने कफ़ सिरप दिया था। ये कफ़ सिरप पास के ही एक केमिस्ट से ख़रीदा गया था। इलाक़े में अच्छा बच्चों का डॉक्टर न होने के कारण कई परिवार इसी केमिस्ट के पास बच्चों को ले जाते थे और उसकी दी हुई दवा बच्चों को देते थे। परिवार के मुताबिक़ कफ़ सिरप पीने के बाद अनिरुद्ध का पेशाब रुक गया, उसके पाँव फूल गए और वो जो भी खाता उल्टी कर देता था। बाद में डॉक्टरों ने बताया कि उसके गुर्दों को बहुत नुक़सान पहुँचा है। अनिरुद्ध के पिता अशोक कुमार ने बताया, “हमारे पैरों तलों ज़मीन खिसक गई कि ऐसा कैसे हो सकता है? उलटी आने से, लूज़ मोशन से किडनी डैमेज नहीं हो सकती।”ज़्यादा वक्त नहीं बीता था, जब अनिरुद्ध को ब्रेन हैमरेज हुआ। अशोक कुमार याद करते हैं, “(उसे) ब्रेन हैमरेज हो गया, नाक में से ख़ून निकल गया. उसके फेफड़े फट गए. डॉक्टर साहब बोलने लगे कि बच्चा 99 प्रतिशत ख़त्म हो चुका है। उस नौ जनवरी को हम कभी नहीं भूलेंगे।”

दो महीने का इरफ़ान रोते-रोते बेहोश हो जाता था 

दो महीने का इरफ़ान, जाफ़रउद्दीन और मुरफ़ा बीबी का पहला बच्चा था। उनके पास इफ़ान की तस्वीर तक नहीं है। उन्होंने बताया कि कफ़ सिरप पीने के 10 दिनों के भीतर ही वो नहीं रहा। मुरफ़ा बीबी बताती हैं, “वो उस वक़्त बहुत परेशान था। जब उसे उल्टी आती थी, तो वो लेट कर रोने लगता था। उसने दूध पीना बंद कर दिया था। वो बेहोश हो जाता था।” जम्मू में स्थानीय एक्टिविस्ट सुकेश खजूरिया रामनगर में बच्चों की मौत पर लगातार लिखते और बोलते रहे हैं। वो कहते हैं, “मरने वाले सब बेमौत मारे गए हैं और जिस कंपनी ने ये दवा बनाई और जो ड्रग्स कंट्रोलर के ऑफ़िसर थे, उन्होंने अपना काम नहीं किया। उन्होंने बिना चेक किए गए अवैध दवा को बिकने दिया। अगर सरकार ने उस वक़्त कॉग्निज़ेंस ली होती, तो गांबिया में ये नहीं होता।”

मानक से 34 प्रतिशत ज़्यादा था डाइथिलीन ग्लाइकॉल

जम्मू और कश्मीर ड्रग सकंट्रोलर लोतिका खजूरिया कहती हैं, “लीगल सैंपल लिफ़्ट करके हमने उसे पहले रीजनल ड्रग लैबॉरेट्री चंडीगढ़ में भेजा। वहाँ से जो रिपोर्ट आई उसके मुताबिक़ उसमें डाइथिलीन ग्लाइकॉल 34 प्रतिशत ज़्यादा था। वो आख़िरी फ़ाइनल रिपोर्ट नहीं थी। हमने फिर सैंपल को CDL कोलकाता ऐपलेट लेबोरेट्री में भेजा। वहाँ से भी वही रिपोर्ट आई कि उसमें 34 प्रतिशत से कुछ ज़्यादा डाइथलीन ग्लाइकॉल है। उसके बाद हमारी जाँच शुरू हुई।”

बच्चों की डॉक्टर भवनीत भारती एक टीम की प्रमुख थीं, जिसने रामनगर में बच्चों की मौत की जाँच की। वो कहती हैं, “टॉक्सिन देने के साथ उनकी किडनी फेल हो गईं। अगर उनके दिमाग़ पर असर होता, तो शारीरिक अक्षमता आ जाती है। उन्हें वेंटिलेशन की ज़रूरत हो सकती है क्योंकि बहुत से बच्चे वेंटिलेटर पर भी चले गए।”

हिमाचल की कंपनी पर भी आरोप 

इस मामले में हिमाचल प्रदेश की दवा कंपनी डिजिटल विज़न नाम की कंपनी पर आरोप लगे थे। लेकिन इसके मालिक परषोत्तम गोयल का दावा है कि बच्चों ने उनकी कंपनी का बनाया कफ़ सिरप पीया ही नहीं। उन्होंने कहा, “हम बच्चे मारने के लिए थोड़े ही बैठे हैं। हम वहाँ किसी के बच्चे को क्यों मारेंगे? हम तो दवा बना रहे हैं, कोई ज़हर थोड़े ही बना रहे हैं। हम भगवान से डरने वाले लोग हैं। हम ऐसा काम करते ही नहीं हैं। हमें क्या ज़रूरत है किसी के साथ इंजस्टिस करने की।” ग़ौरतलब है कि बच्चों की मौत के बाद छह महीने तक इस फ़ैक्टरी को बंद कर दिया गया था, लेकिन अदालत के आदेश के बाद फ़ैक्टरी को दोबारा खोल दिया गया।

एक्टिविस्ट और लेखक दिनेश ठाकुर सिस्टम में पारदर्शिता में कमी का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि- “जब भारतीय कंपनियाँ अमेरिका और यूरोप के लिए दवा बनाती हैं, तो उनके मानक अलग और जब कंपनियाँ भारत या अफ़्रीका में देशों के लिए दवा बनाती हैं, तो उनके मानक अलग होते हैं।”

जो बच्चे बच गए वे अंगों से लाचार हैं 
  • रामनगर में ऐसे भी परिवार हैं, जिन्होंने बताया कि उनके बच्चों ने भी कथित ज़हरीली कफ़ सिरप को पीया और बच गए। पीड़ित पवन के पिता शंभूराम मज़दूरी करके दिन का 400 से 500 रुपया कमाते हैं। शंभूराम बताते हैं, ” जब पवन 15 महीने के थे, तब उन्हें वही कथित ज़हरीली कफ़ सिरप दी गई। पवन तीन महीने अस्पताल में भर्ती रहे और उनका इलाज अब भी जारी है। अभी इसकी आँखों की रोशनी भी कम है और इसका एक कान बिल्कुल ख़राब हो गया है। डॉक्टर ये बताते हैं कि ये बड़ा भी हो जाएगा, तो कोई काम नहीं कर पाएगा. दौड़ नहीं पाएगा, कोई वज़न नहीं उठा पाएगा।”
  • 6 साल का प्रणव 30 दिनों से ज़्यादा वक़्त तक कोमा में रहा। परिवार के मुताबिक़ वो अब न देख पाता है और न सुन पाता है। उनकी माँ प्रिया वर्मा ने बताया, “डॉक्टर बोलते हैं कि इसकी दिमाग़ की, आँखों की, कानों की नसों को नुक़सान पहुँचा है। (ये वापस) आएगी या नहीं, ये पक्का नहीं है। (उन्होंने कहा है कि) भगवान पर छोड़ दो। “प्रनव अकेला नहीं रह पाता। उसके साथ हमेशा किसी का होना ज़रूरी है, नहीं तो वो डरता है कि कहीं उसे अकेला तो छोड़कर नहीं चले गए। परिवार बच्चों के इलाज के लिए सरकारी मदद चाहते हैं ताकि अगर कल को वो न रहें, तो बच्चे अपनी देखभाल खुद कर पाएँ।

दो साल के बन्ना, तीन साल की अंकिता, 11 महीने की जाह्नवी, 10 महीने की आइसाटू, एक साल सात महीने का मूसा और कई नाम हैं।

परिवार चाहते हैं कि क़ानून पूरी सख़्ती से दोषियों के ख़िलाफ़ काम करे और उन्हें पता है कि लंबी चलने वाली ये लड़ाई आसान नहीं होगी।

Disclaimer : यह खबर BBC से साभार है।

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