Monday, April 29, 2024
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सिसोदिया के पास पैसा आने का सबूत दे ED- सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई में कहा

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना ने ED से पूछा की इस केस में सबूत कहां हैं? मनी ट्रेल को साबित करना जरूरी है। एजेंसी सबूत दे कि शराब लॉबी से पैसा आरोपियों तक कैसे पहुंचा। यह पैसा किस रूट से दिया गया। आपका केस आरोपी दिनेश अरोड़ा के बयानों के इर्द- गिर्द है, इसलिए वह सरकारी गवाह बन गया। दूसरा आरोपी भी सरकारी गवाह बन गया। आपके पास दिनेश अरोड़ा के बयानों के अलावा शायद ही कुछ है।

दिल्ली शराब नीति भ्रष्टाचार मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने ED को फटकार लगाते हुए पूछा कि अगर मनी लॉन्ड्रिंग में मनीष सिसोदिया की भूमिका नहीं है तो सिसोदिया आरोपियों में शामिल क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, मनी लॉन्ड्रिंग के लिए अलग से कानून है। आपको साबित करना होगा कि सिसोदिया केस प्रापर्टी में शामिल रहे हैं। आपको बता दें कि सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अब 12 अक्टूबर को सुनवाई करेगा।

सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई

दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ईडी से मनी लॉन्ड्रिंग केस के आधार से जुड़ा सवाल किया। कोर्ट ने पूछा कि अगर PMLA के तहत शराब नीति से एक राजनीति पार्टी को फायदा पहुंचा, तो फिर पार्टी को इस केस में शामिल क्यों नहीं किया गया? अब ED आम आदमी पार्टी को मामले में आरोपी बनाने को लेकर कानूनी सलाह ले रही है। सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अब 12 अक्टूबर को सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट-आरोपियों को पैसा देने का सबूत कहाँ है?

सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस संजीव खन्ना ने ED से पूछा कि, ‘सरकारी गवाह के बयान पर कैसे भरोसा करेंगे?  क्या एजेंसी ने सरकारी गवाह और सिसोदिया के बीच घूस को लेकर चर्चा देखी थी? क्या ये बयान कानून में स्वीकार्य होगा?  क्या ये कही सुनी बात नहीं है?’ दिल्ली एक्साइज पॉलिसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ED से कई सवाल किए। जस्टिस संजीव खन्ना ने ED से पूछा की इस केस में सबूत कहां हैं? मनी ट्रेल को साबित करना जरूरी है। एजेंसी सबूत दे कि शराब लॉबी से पैसा आरोपियों तक कैसे पहुंचा। यह पैसा किस रूट से दिया गया। आपका केस आरोपी दिनेश अरोड़ा के बयानों के इर्द- गिर्द है, इसलिए वह सरकारी गवाह बन गया। दूसरा आरोपी भी सरकारी गवाह बन गया। आपके पास दिनेश अरोड़ा के बयानों के अलावा शायद ही कुछ है।

कहीं राजनीतिक हस्तक्षेप तो नहीं - जस्टिस खन्ना 

ED की ओर से ASG राजू ने कहा कि, वे पॉलिसी बनाने में शामिल थे, इसलिए वे इस केस में आरोपी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, सीबीआई चार्जशीट में आप कहते हैं कि 100 करोड़ दिए गए। ED ने इसे 33 करोड़ रुपये बताया है। यह रुपये कहां और किस तरीके से दिए गए? यह चेन साबित करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी से कहा कि केस में सब कुछ सबूतों के आधार पर होना चाहिए, वरना जिरह के दौरान यह केस दो मिनट में ही गिर जाएगा। जस्टिस संजीव खन्ना ने ये भी कहा कि कभी-कभी नौकरशाह कुछ न कुछ बना देते हैं। कभी-कभी राजनीतिक कार्यकारी कह सकते हैं कि कृपया इसे इस तरह से तैयार करें। उन्होंने कहा कि राजनीतिक कार्यकारी एक नोट भेजकर कह देते हैं कि यह वैसा नहीं है जैसा हम चाहते थे। 

शराब नीति में बदलाव गलत होने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा - सुप्रीम कोर्ट 

ED के बयान “नई शराब नीति कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बनाई गई, टिकट बुकिंग और होटल बुकिंग से पता चलता है कि विजय नायर हैदराबाद गए थे” पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- शराब नीति में बदलाव हुआ है। व्यापार के लिए अच्छी नीतियों का हर कोई समर्थन करेगा। नीति में बदलाव गलत होने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि अगर नीति गलत भी है और उसमें पैसा शामिल नहीं है तो यह अपराध नहीं है। लेकिन इसमें अगर पैसा आ जाता है तो ये भी अपराध हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने ED से पूछा, क्या आपके पास यह दिखाने के लिए कोई डेटा है कि पॉलिसी कॉपी की गई और साझा की गई? यदि प्रिंट आउट लिया गया था, तो डेटा उसे दिखाएगा। इस आशय का कोई डेटा नहीं है। आपके मामले के अनुसार, मनीष सिसोदिया के पास कोई पैसा नहीं आया तो फिर शराब समूह से पैसा कैसे आया?

मनी लाउंड्रिंग एक अलग मामला है - सुप्रीम कोर्ट 

जस्टिस खन्ना ने कहा, पैसा किसी और को मिला, उसका इस्तेमाल भी किसी दूसरे ने किया, सिसोदिया के पास कभी पैसा नहीं आया। यदि यह एक ऐसी कंपनी है जिसके साथ वह शामिल है, तो उनकी परोक्ष देनदारी बनती है, अन्यथा अभियोजन लड़खड़ा जाता है। मनी लॉन्ड्रिंग पूरी तरह से एक अलग अपराध है। हमें दिखाना होगा कि उस संपत्ति पर उनका कब्ज़ा है। आपको प्रावधान के सटीक शब्दों पर जाना होगा और दिखाना होगा कि आप उसे कैसे लाएंगे। कानून में इसे एक निजी शिकायत माना जाता है।

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